लिटरेरी फेस्टिवल सेशन 2- अनूप
'विदेश में स्वदेश, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी'
जब विदेश में कोई अपने देश का मिलता है, तो उस समय जो खुशी होती है इसका अंदाजा किसी प्रवासी से ज्यादा किसी और को नहीं होगा। विदेश में रहकर अपनी कला और संस्कृति को बचाए रखने में जितनी मेहनत विदेश में रह रहे भारतीय मूल के लोग करते हैं उतना तो भारत में रहने वाले भारतीय भी नहीं करते। यह बातें नीदरलैंड से आईं वरिष्ठ लेखिका पुष्पिता अवस्थी ने कहीं।
लखनऊ लिट्रेचर फेस्टिवल में 'विदेश में स्वदेश, फिर भी दिल हैं हिंदुस्तानी' विषय पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहाकि भारत देश में जो कला संस्कृति गायब हो रही है, वही कला साहित्य विदेशों में काफी लोकप्रिय हो रहा है। वहां के भारतीय मूल के लोग इस संस्कृति को बचाए रखे हुए हैं। हालैंड से आए भगवान प्रसाद ने बताया कि विदेश में हम भारतीयों ने अपनी कला साहित्य व संस्कृति को बचाने में काफी मेहनत की है। आज वहां करीब डेढ़ सौ मंदिर हैं, कई पाठशाला है, जहां पर भारतीय मूल के बच्चों को भारतीय संस्कृति और साहित्य के बारे में बताया जाता है। आत्माराम शर्मा ने पुराने चित्रों के माध्यम से विदेश में रह रहे भारतीयों का संघर्ष दिखाया।
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