Tuesday, 5 February 2019

रोस्टर

यूनिवर्सिटी की नौकरियों में अनसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के नए तरीके '13 पॉइंट रोस्टर' को लेकर विरोध शुरू हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 200 प्वाइंट रोस्टर पर मानव संसाधन मंत्रालय (MHRD) और UGC द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटीशन को 22 जनवरी को खारिज कर दिया था. इससे ये साफ़ हो गया है कि 5 मार्च 2018 को जारी 13 पॉइंट रोस्टर अब सभी यूनिवर्सिटी में लागू हो गया है और अप्रैल 2014 से रुकी हुई नियुक्तियां अब इसी आधार पर होंगी. उधर दिल्ली यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में गुरूवार को इसके खिलाफ प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं.सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी के आरक्षण से जुड़े मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया है. हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में यूजीसी के 5 मार्च 2018 के आदेश को सही बताया था. उस आदेश में यूजीसी ने नियुक्तियों में आरक्षण को लेकर मोटे तौर पर दो बड़े बदलाव किए हैं:
1. 200 प्वाइंट वाले रोस्टर सिस्टम को बदल कर 13 प्वाइंट वाला नया रिजर्वेशन फॉर्मूला लागू किया गया है.
2. जो रिजर्वेशन पहले यूनिवर्सिटी के स्तर पर लागू होता था वही अब डिपार्टमेंट या फिर संबंधित सब्जेक्ट के स्तर पर लागू होगा.इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2017 में ये फैसला दिया कि यूनिवर्सिटी में टीचर्स रिक्रूटमेंट का आधार यूनिवर्सिटी या कॉलेज नहीं, डिपार्टमेंट होंगे. इसके बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत काम करने वाली संस्था UGC ने तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी को आदेश जारी कर दिया था कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला तत्काल लागू करें. क्या है 13 पॉइंट रोस्टर ?
अभी तक यूनिवर्सिटी या कॉलेज की नौकरियों के लिए यूनिवर्सिटी या कॉलेज को ही एक इकाई माना जाता था. साथ ही इन भर्तियों के लिए 200 पॉइंट रोस्टर सिस्टम की व्यवस्था थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि रिज़र्वेशन अब डिपार्टमेंट के आधार पर लागू किया जाए. इसके लिए 13 प्वाइंट का रोस्टर बनाया गया है.इस रोस्टर के तहत जो वेकेंसी निकलेंगी उसके तहत शुरूआती तीन पद अनारक्षित, चौथा ओबीसी को फिर 5वां और 6ठा अनारक्षित, 7वां पद अनुसूचित जनजाति को, 8वां फिर से ओबीसी को और 9वां, 10वां, 11वां अनारक्षित, 12वां ओबीसी और 13वां फिर से अनारक्षित जबकि 14वां पद अनुसूचित जनजाति को दिया जाएगा. जानकारों का कहना है कि इस तरह से रिजर्वेशन लागू किया गया तो हद से हद 30% तक ही रिजर्वेशन का फायदा मिल पाएगा जबकि केंद्र सरकार की नौकरियों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए 49.5% रिज़र्वेशन का प्रावधान है.क्यों है विरोध ?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अनीश गुप्ता के मुताबिक इस रोस्टर के तहत रिजर्वेशन लागू होने से कभी भी 49.5% रिज़र्वेशन लागू नहीं किया जा सकता. सबसे पहली दिक्कत तो ये है कि यूनिवर्सिटी की जगह डिपार्टमेंट को इकाई माना गया है जबकि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी भी डिपार्टमेंट में एक साथ 13 या उससे ज़्यादा वेकेंसी निकलें. ऐसे में ओबीसी को कम से कम चार, एससी को सात और एसटी को तो 14 वेकेंसी निकलने का इंतज़ार करना होगा. जबकि इसी दौरान 10 अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी मिल जाएगी. इसके आलावा उनके लिए 10% आरक्षण अलग से भी लागू किया जा रहा है.डीयू में प्रोफ़ेसर सुबोध कुमार के मुताबिक जवाहर लाल विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कई ऐसे विभाग हैं जिसमें मात्र एक या दो या तीन प्रफ़ेसर ही विभाग को संचालित करते हैं. यहां कभी भी आरक्षित वर्गों की नियुक्ति हो ही नहीं सकती है. इसमें बैकलॉग का प्रावधान नहीं है तो हर बार नियुक्ति सामान्य वर्ग से ही होगी.क्या था 200 पॉइंट रोस्टर ?
इस फैसले से पहले सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक पदों पर भर्तियां पूरी यूनिवर्सिटी या कॉलजों को इकाई मानकर होती थीं. इसके लिए संस्थान 200 प्वाइंट का रोस्टर सिस्टम मानते थे. इसमें एक से 200 तक पदों पर रिज़र्वेशन कैसे और किन पदों पर होगा, इसका क्रमवार ब्यौरा होता है. इस सिस्टम में पूरे संस्थान को यूनिट मानकर रिज़र्वेशन लागू किया जाता है, जिसमें 49.5 परसेंट पद रिज़र्व और 59.5% पद अनरिज़र्व होते थे. हालांकि अब इसमें 10% सामान्य वर्ग का आरक्षण भी शामिल कर लिया जाता.इसमें सबसे पहले यूनिवर्सिटी को इकाई माना जाता था. यूनिवर्सिटी के सभी डिपार्टमेंट्स के पदों को A से Z तक एक साथ 200 तक जोड़ लिया जाता था. इसके बाद क्रम के अनुसार पहले 4 पद सामान्य, फिर ओबीसी, फिर एससी/एसटी इत्यादि के लिए पदों की व्यवस्था थी. इस व्यवस्था में सामान्य पदों की जगह आरक्षित पदों से भी नियुक्तियों की शुरुआत हो सकती है और अगर किसी श्रेणी में नियुक्ति नहीं होती है तो उस पद को बाद में, बैकलॉग के आधार पर भरा जा सकता था. इस हिसाब से 200 पॉइंट रोस्टर फ़ॉर्मूले में क्रम वार सभी तबक़ों के लिए पद 200 नंबर तक तय हो जाते हैं.लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर में ऐसा नहीं है.दिल्ली यूनिवर्सिटी में क्यों बेचैनी ?
दिल्ली यूनिवर्सिटी में और इससे जुड़े कॉलेजों के क़रीब 2000 आरक्षित वर्गों के असिसटेंट प्रोफ़ेसर काम कर रहे हैं. इनकी एड-हॉक (अस्थायी) नियुक्तियां हुई थीं जो हर 4 महीने पर की जाती हैं. 13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक होने वाली नियुक्तियों में रिजर्वेशन के नए नियम लागू होंगे जिसके मुताबिक इन सभी शिक्षण पदों को नए सिरे से भर दिया जाएगा. यानी इनमें से ज्यादातर की अस्थायी नौकरी भी जाने का खतरा है.क्या सरकार रोकना चाहती थी ये फैसला ?
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और यूजीसी के नोटिफिकेशन के बाद जब 13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक यूनिवर्सिटी और संस्थाओं ने नौकरी के विज्ञापन आए तो इस सिस्टम का विरोध होने लगा. तब सरकार ने कहा था कि वो इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पेटिशन (एसएलपी) के ज़रिए चुनौती देगी. इसके बाद यूजीसी ने 19 जुलाई 2018 को सर्कुलर जारी कर तमाम भर्तियां रोकने का आदेश जारी कर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की एसएलपी को खारिज कर दिया और ये नया सिस्टम लागू हो गया. हालांकि विरोध के बाद मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कई बार अध्यादेश लाकर इस फैसले को पलटने की बात भी कही थी, लेकिन संसद के आखिरी सत्र तक इस अध्यादेश का कोई ज़िक्र नहीं किया गया.क्या अब भी सरकार के पास कोई विकल्प है ?
सरकार अगर चाहे तो अध्यादेश या सत्र के दौरान बिल लाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट सकती है. इसके आलावा सरकार चाहे तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका या किसी और याचिका के माध्यम के ज़रिए अपील कर सकती है और बड़ी बेंच के सामने सुनवाई के लिए भी अपील कर सकती है.गौरतलब है कि भले ही सरकार ने संविधान संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया हो लेकिन संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन को ही आधार बनाकर शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया था. संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 335, 340, 341, 342 में साफ़ तौर पर आरक्षण देने की वजह बताई गई हैं. हालांकि सरकार ने संविधान में दो नए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़कर आर्थिक पिछड़ेपन को भी आरक्षण का आधार बना दिया है.

क्यों एससी/एसटी की नाराज़गी पड़ सकती है भारी ?
हाल ही में हुए तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. तीनों ही राज्यों के चुनावी नतीजों पर गौर करने से पता चलता है कि एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव का खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा. साल 2013 के विधानसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों की कुल 78 आरक्षित सीटों में से 68 सीटें बीजेपी के पास थी जबकि 2018 में ये आंकड़ा घटकर सिर्फ 31 रह गया है. कांग्रेस के हिस्से उस वक़्त तीनों राज्यों में सिर्फ 5 आरक्षित सीटें आईं थीं. हालांकि 2018 में काफी कुछ बदल गया है और तीनों राज्यों की कुल 78 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 43 पर जीत दर्ज की है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी एससी/एसटी और ओबीसी युवाओं का गुस्सा मोल लेना नहीं चाहेगी.राजनीतिक पार्टियां भी कर रहीं हैं विरोध
कांग्रेस, आरजेडी और आरएसएलपी भी खुलकर इस नए रिजर्वेशन सिस्टम के विरोध में सामने आ गए हैं. पूर्व मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने इसका खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है. कुशवाहा ने एचआरडी मिनिस्टर 23 जनवरी को एक पत्र लिखकर ऑर्डिनेंस के जरिए 200 पॉइंट रोस्टर को फिर से लागू करने की मांग की है. ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के एससी डिपॉर्टमेंट ने भी सरकार को एक औपचारिक पत्र भेजकर 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ ऑर्डिनेंस लाने की मांग की है.अभी क्या है जातीय स्थिति ?
MHRD के ऑल इंडिया सर्वे फॉर हायर एजुकेशन (2017-18) के मुताबिक फिलहाल देश में कुल 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिसमें कुल 11,486 लोग पढ़ाते हैं. इनमें 1,125 प्रोफ़ेसर हैं और इनमें दलित प्रोफ़ेसर 39 यानी 3.47 फ़ीसद जो कि आरक्षण के बाद 15 फ़ीसदी होने चाहिए थे. आदिवासी प्रोफ़ेसर सिर्फ़ 6 यानी 0.7 फ़ीसद जो कि 7.5% होने चाहिए थे जबकि पिछड़े प्रोफ़ेसर 0 जो 27 फ़ीसद होने चाहिए थे. जबकि सामान्य जातियों के 1071 यानी 95.2% हैं जो 50% से अधिक नहीं होने चाहिए थे.अगर असोसिएट प्रोफ़ेसर की बात करें तो 40 संस्थानों में कुल 2620 असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. इसमें 130 यानी 4.96% दलित जो 393 होने चाहिए थे, सिर्फ 34 यानी 1.3% आदिवासी हैं जो 197 होने चाहिए थे. जबकि इसके उलट कुल 3434 यानी 92.9% सामान्य जातियों के प्रोफ़ेसर हैं. असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की बात करें तो 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय में 7741 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इसमें 12.2 % एससी, 5.46% आदिवासी, 14.38% ओबीसी जबकि 66.27% सामान्य वर्ग से हैं.

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