Sunday, 31 January 2021

Friday, 29 January 2021

हारा है? हे राम!

हारा है? हे राम! 
जीता नाथूराम? 
हिंसा की वो टोली,
गांधी खाये गोली।

नेता बोलें बोली,
युवा चालें गोली।
पुनः भक्तराम,
फिर कुहराम।

भ्रमित जवानी
जहर खुरानी
धीरे-धीरे खोती
अहिंसा की वानी।

दावानल ने वन,
बड़वानल  जल
बख्शे हैं कब-कब?
नफ़रत ने नर।

अहिंसा जो चाहो
बुद्ध वीर गाओ
प्रेम दोहराओ
मानव हो जाओ।

Thursday, 28 January 2021

वे सरकार हैं

उनके हाथों में 
बारूद भी है
धूल भी है
वे चाहें तो धूल झोंक दें
वे चाहें तो आग लगा दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में 
लोक है
तन्त्र भी है
वे चाहें तो जीने दें
वे चाहें तो दम घोंट दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में 
स्कूल हैं
वित्त भी है
वे चाहें तो पढ़ने दें
वे चाहें तो दुत्कार दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में
पुलिस है
कानून भी
वे चाहें तो सुरक्षा दें
वे चाहें तो नुचवा दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में
चिकित्सा है
दवा भी है
वे चाहें तो इलाज हो
वे चाहें तो मरवा दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में
बाजार है
पूँजी भी है
वे चाहें तो खरीद सको
वे चाहें तो तरसा दें
वे सरकार हैं।

उनके हाथों में
यातायात है
रास्ते भी हैं
वे चाहें तो चलने दें
वे चाहें तो रोक दें
वे सरकार हैं।
 
हमारे हाथों में
वोट है
विवेक भी है
हम चाहें तो चलने दें
हम चाहें तो बदल दें
हम जिम्मेदार हैं।

गौतमरामहेत
Rg

हंसिया

हाथ को हंसिया चाहिए 


हाथ को हंसिया चाहिए

क्योंकि

हंसिया चलता है तो

हंसी बिखरती है,
तब मंगल मनता है।

लेकिन

देखो तो चारों तरफ
चन्द्रहास उग आया है,
अट्टहास हो रहा है,
हंसी गुम रही है,
अमंगल छा रहा है।

फिर भी उम्मीद है कि

अमंगल छटेगा धुन्ध की तरह,
फिर बोया जायेगा
मंगल खेतों में,
फिर होगा साथ
हाथ और हंसिये का,

और खलिहान में सजेगी

मंगल की फसल।

Thursday, 21 January 2021

नास्म्यहं साधुः

क्रोधं धरामि
यदा शोषणमीक्षे 
नास्म्यहं साधुः।

ये नापि श्रान्ताः
मोहो मे तेषां कृते
नास्म्यहं साधुः।

रतिं मे तेषु
येsपि समदर्शिनः
नास्म्यहं साधुः।

तेभ्यः रायिच्छा
जीवने न समर्थाः 
नास्म्यहं साधुः।

गर्वो मे तेषु
सिद्धिं विना स्थिराः न
नास्म्यहं साधुः।

यशस्वीनां साहित्यकाराणां हीरालालराजस्थानीवर्याणां हिन्दीरचनायाः संस्कृतानुवादः। साभारं तान्नमाम्यहम्।
गौतमरामहेतः

नास्म्यहं साधुः

नास्म्यहं साधुः
यदा शोषणमीक्षे 
क्रोधं धरामि।

नास्म्यहं साधुः
मोहो मे तेषां कृते
ये नापि श्रान्ताः।

नास्म्यहं साधुः
येsपि समदर्शिनः
रतिं मे तेषु।

नास्म्यहं साधुः
जीवने न समर्थाः 
तेभ्यः रायिच्छा।

नास्म्यहं साधुः
सिद्धिं विना स्थिराः न
गर्वो मे तेषु।

गौतमरामहेतः

जख्म

घाव वीरों के अलंकार होते हैं।
कायर जख्म देख-रेख रोते हैं।।
गौतमरामहेत

Tuesday, 19 January 2021

भग्गू लाल

भंग था सर्वसमाज से,
ढोये जाता उनके पाप।
पुंज प्रकाश तिमिर में
लोग भग्गू कह बुलात।

Monday, 18 January 2021

इंसान

चीजें जिन्दा नहीं होतीं
जीवों के काम आती हैं।
इंसान जिन्दा तो होता है 
पर चीज नहीं हो पाता।
गौतम रामहेत 

Wednesday, 13 January 2021

नारी

नर! ते जननी नारी, नारी पुत्र! ते पालिका।
प्रणयिन् ते प्रिया नारी, भो किं ते दम्भकारणम्।।

Sunday, 10 January 2021

आओ साथ लड़ो हमारे

हाँ लड़ाकों की इस भीड़ में 
कुछ निकम्मे भी होते हैं।
स्वार्थी कौओं की भाँति
वीरों की पीठ सवार होते हैं।
गिरते हैं जब योद्धा धरा पर 
नोंच-नोंच वह खाते हैं।
मत देखो कायरों को तुम
वीर! वीरों के साथ आओ।
आओ साथ लड़ो हमारे,
लड़ न सको तो खड़े रहो।
पहचाने जाने का डर है,
पीछे-पीछे धीरे से आओ।
इतना भी नहीं कर सकते,
तो घर रहो और सो जाओ।
पर जो लड़ रहे हैं सड़कों पे,
उनका मनोबल न गिराओ।
सफल हुए तो मान मिलेगा
वर्ना लड़ने का ज्ञान मिलेगा।
मन में मथो बात गौतम की,
समझदारी कुंजी जीवन की।

Friday, 8 January 2021

Badayu kand par kavita

भक्तों वाला देश,  
देश में उत्तम प्रदेश,
वहाँ भी बदायूं,
वहाँ देवालय,
देवालय में सत्यनारायण, 
वहाँ चेले वेदराम और यशपाल, 
दोनों भक्त और गांव मेवली भी, 
महिला मंदिर में और पुजारी भी, 
देवता साक्षी, 
अपराध घटा, 
ईश्वर इच्छा बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता, 
यहाँ इच्छा किसकी? 
ईश्वर की? 
पुजारी की? 
भक्त चेलों की? 
या फिर दलिता की? 
कुँए में कैसे? 
हड्डी-पसली एक किसने की? 
इतना ही नहीं जनाब, 
गांड में डंडा भी तो डाल दिया। 
कौन देता है यह धमकी भरी गाली? 
वही न जो वर्चस्व चाहता है। 
जिसे दास प्रिय हैं।  
मार कर फैंक गये द्वारे वे नंगा करके। 
फैंकते क्यों नहीं ? 
इनकी जात ऐसे ही तो मानती है। 
उन्हें पता है कि हर जगह लोग जो हैं उनके। 
इन दलितों की औकात ही क्या है? 
जो भी खड़ा होगा इनके लिए, 
घोषित कर दिया जायेगा विधर्मी, देशद्रोही भी। 
रिपोर्ट न लिखना कोई नई बात नहीं है। 
पोस्टमार्टम कैसे होता समय पर? 
धनबल, बाहुबल, सत्ताबल जो है उनके साथ। 
मीडिया भी क्यों उठाये जोर-शोर से,
उनकी जाति की थोड़े ही है। 
क्यों आयें लोग सड़कों पर ? 
विधर्मी ने थोड़े ही मारा है। 
उनके धर्म के होते हैं दलित 
सिर्फ उनके फायदे में।
शेष जूतों की नोंको पर। 
उन्हें जी हजूरी भाति है
 सवाल नहीं। 
फिल भी पूछ ही लेते हैं जब-तब। 
क्या करें गौतम! मानव जात जो ठहरे।

Friday, 1 January 2021

ब्राह्मण कौन

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वर्ण व्यवस्था रहस्य

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