उनके हाथों में
बारूद भी है
धूल भी है
वे चाहें तो धूल झोंक दें
वे चाहें तो आग लगा दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
लोक है
तन्त्र भी है
वे चाहें तो जीने दें
वे चाहें तो दम घोंट दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
स्कूल हैं
वित्त भी है
वे चाहें तो पढ़ने दें
वे चाहें तो दुत्कार दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
पुलिस है
कानून भी
वे चाहें तो सुरक्षा दें
वे चाहें तो नुचवा दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
चिकित्सा है
दवा भी है
वे चाहें तो इलाज हो
वे चाहें तो मरवा दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
बाजार है
पूँजी भी है
वे चाहें तो खरीद सको
वे चाहें तो तरसा दें
वे सरकार हैं।
उनके हाथों में
यातायात है
रास्ते भी हैं
वे चाहें तो चलने दें
वे चाहें तो रोक दें
वे सरकार हैं।
हमारे हाथों में
वोट है
विवेक भी है
हम चाहें तो चलने दें
हम चाहें तो बदल दें
हम जिम्मेदार हैं।
गौतमरामहेत
Rg
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