भक्तों वाला देश,
देश में उत्तम प्रदेश,
वहाँ भी बदायूं,
वहाँ देवालय,
देवालय में सत्यनारायण,
वहाँ चेले वेदराम और यशपाल,
दोनों भक्त और गांव मेवली भी,
महिला मंदिर में और पुजारी भी,
देवता साक्षी,
अपराध घटा,
ईश्वर इच्छा बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता,
यहाँ इच्छा किसकी?
ईश्वर की?
पुजारी की?
भक्त चेलों की?
या फिर दलिता की?
कुँए में कैसे?
हड्डी-पसली एक किसने की?
इतना ही नहीं जनाब,
गांड में डंडा भी तो डाल दिया।
कौन देता है यह धमकी भरी गाली?
वही न जो वर्चस्व चाहता है।
जिसे दास प्रिय हैं।
मार कर फैंक गये द्वारे वे नंगा करके।
फैंकते क्यों नहीं ?
इनकी जात ऐसे ही तो मानती है।
उन्हें पता है कि हर जगह लोग जो हैं उनके।
इन दलितों की औकात ही क्या है?
जो भी खड़ा होगा इनके लिए,
घोषित कर दिया जायेगा विधर्मी, देशद्रोही भी।
रिपोर्ट न लिखना कोई नई बात नहीं है।
पोस्टमार्टम कैसे होता समय पर?
धनबल, बाहुबल, सत्ताबल जो है उनके साथ।
मीडिया भी क्यों उठाये जोर-शोर से,
उनकी जाति की थोड़े ही है।
क्यों आयें लोग सड़कों पर ?
विधर्मी ने थोड़े ही मारा है।
उनके धर्म के होते हैं दलित
सिर्फ उनके फायदे में।
शेष जूतों की नोंको पर।
उन्हें जी हजूरी भाति है
सवाल नहीं।
फिल भी पूछ ही लेते हैं जब-तब।
क्या करें गौतम! मानव जात जो ठहरे।
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