Thursday, 26 October 2023

मेरा अंधविश्वास

घर में गजर, मक्का, ज्वार,  बाजरा की कोंईं बनतीं, कभी रोटी। कभी मेहमानों के लिए गेहूँ के आटे की व्यवस्था हो जाती तो बच्चों की भी लाग लग जाती।
किसी बच्चे को स्वेटर आ जाता तो महोत्सव मनता।
गप्पी, धपरा, गोई बच्चों दौलत थी।
जब बीमार पड़ते तो डॉक्टर को नहीं झाड़फूंक वाले को खोजा जाता या फिर टोने-टोटके।
गलसुआ होने पर मच्छूदाऊ के चबूतरे पर नमक की डली डाल आते।

वैचारिक रूप से मैं यहाँ हूँ  पर वह वहीं है।

धरती किसान की

धरती मिट्टी की,
बहुत खूब। 
मिट्टी लहू की,
गलत बात। 
मिट्टी कुदाल की है।
कुदाल किसान की।

Tuesday, 24 October 2023

संस्कृत विभाग में अंबेडकर

संस्कृत विभाग में अपने कक्ष में लगाई जब तस्वीर 
एक शुभचिंतक ने सलाह दी।
सर अंबेडकर जी की तस्वीर सामने क्यों लगाए हैं?
उनका चिंता स्वाभाविक थी, उन्हें पता था कि इससे संस्कृत वे मनीषी नाराज हो सकते हैं, इनका प्रमोशन, उच्च पद पर सिलेक्शन रुक सकता है।
पर मेरा विश्वास है कि अम्बेडकरवादी अंबेडकर के आदर्शों पर चलकर भी निडर व यथार्थ स्वीकार के साथ जी सकता है। प्रमोशन, सिलेक्शन गौड हैं।
तस्वीर यथावत है, सबकी स्वीकार्यता भी कम न होकर बड़ी है, क्योंकि सहयोग व समर्पण वैचारिक विरोधियों को भी अपना बना देता है। इसके बिपरीत समान विचारक भी गैर हो सकते हैं।
इससे सिद्ध हुआ आप जो हैं खुल कर जिओ, आपको नकारा नहीं जा सकता। नकार तो दोहरे चरित्र के कारण होता है।

Monday, 23 October 2023

भरोसे की जमीन

अंबेडकर की सोच से प्रभावित होकर "क" ने 
"ख" की मदद करना प्राथमिक पर रखा 
न कि अपनी सुख-सुविधाओं को।
जब "ख" लायक हुआ 
तो उसकी प्राथमिकता पाखण्ड हुआ। 
इस तरह अंबेडकर की सोच की उपेक्षा
तथा पाखण्ड की पूजा द्वारा
"ख" की मूढ़ता जानकर 
"क" के पैरों के नीचे से भरोसे की जमीन खिसक गई। 

Sunday, 22 October 2023

पहली सेलरी

पहली सेलरी आने वाली ही थी कि 
विचार आया कि पहली सेलरी सबसे पहले कहां खर्च करना चाहिए?
विचार तैरने लगे-
1. मंदिर में पर विचार आया बचपन से अब तक मंदिर से कॉपी-किताब नहीं आयी, पिता लकड़ी बेचने के बाद खरीद कर लीये थे। वह लकड़ी भी बंजर जमीन के झाड़झंकड़ से निकाल रहे थे तभी उनको ततैयों ने काट लिया था, वदन छिल गया था सो अलग। गट्ठर लेकर भुनसारे 4 बजे निकले थे झाँसी की गलियों में बेचने के लिए, डर था कि वर्रखा न मिल जाये, हुआ वही वर्रखा ने पीछा कर लिया, डर कर खूब साइकिल तदेरी पर बजन लेकर दूल्हेराजा की घटिया न चड़ सके हांपनी छूट गई, वर्रखा ने पीछे से लाठी मारी, और चिल्लाया कायरे को है?
लड़खड़ा कर गिरने से छिले घुटने को पंचा से कंकड़ झाड़ते हुए- दाऊ मैं हों मुलाम।

चैरिया बैल

आगे अगली बार 

Saturday, 21 October 2023

जातिवादः

सत्ता-संसाधनेभ्यश्च  शिक्षा-रक्षाप्रवारणं।
वृहद्भागसमाजस्य, जातिवादस्तु वञ्चनम्।। RG

Tuesday, 17 October 2023

मौलिक विचार

तुम भीड हो नकार सकते हो,
मैं अकेला लेकिन मौलिक हूँ। 
अगर सुन लोगे 

Sunday, 15 October 2023

बहुजन देवियां

महामाया, गौतमी, संघमित्रा, सावित्री, फातिमा, झलकारी, भीमा, रमा, फूलन, माया।
बहुजनहिताय बहुजन सुखाय जीवन लगाया।

दुनिया आगे है पीछे क्यों रहा जाए

मैं वाल्मीकि एक कल्पना हूं
कुछ कहकर कुछ कमाने की।
ठगों ने खूब कहा मेरा कहकर,
ठगा राजाओं को देवता कहकर। 
राजतंत्र में कथायें राजा सुनते थे,
फिर दिव्यता के सपने बुनते थे।
ठग पूजे जायें, लठैत लूटते जाएं,
गठजोड़ में जनता की पड़ी नाएं।
जनता जीती थी अपने तरीके से,
कहती-सुनती थी अपने तरीके से।
ठग शम्बूक रच राजा को सुनाते रहे,
लुटेरे खुद को राम मान मारते रहे।
ठग न वाल्मीकि थे कि लंगोटी में जीते,
लुटेरे न राम थे कि बोधिसत्व हो जीते।
कथा छोड़कर इंसान की व्यथा देखो,
आज जीना कैसे है? कुछ तथा देखो।
घंटा-घंटी से कुछ कब निकला है?
हल समता का शिक्षा से निकला है।
आवाज बुलंद हो प्रतिनिधित्व की,
बात नौकरी, व्यापार, राजनीति की।
बात घर, कुएं, खेत, खलिहान की
बात दरवाज़े, गली, गूल, सड़क की।
बात, आंगनबाड़ी, स्कूल, कॉलेज की,
बात, कक्षा, सभा, सेमिनार में मंच की।
बात वार्ड, पंचायत, विधान, संसद की,
बात थाने, अस्पताल व न्यायालय की।
बात रोटी, रोज़गार, इलाज सुरक्षा की,
बात संसाधनों के समान वितरण की।
बात सर्वत्र अबसर की बराबरी की, 
बात समान सम्मान पाने व देने की।
और इससे अधिक क्या? कहा जाए,
दुनिया आगे है, पीछे क्यों रहा जाए?

Monday, 9 October 2023

सबाल

सबाली- तुम अपने माता-पिता की क्यों नहीं सुनते?
जबावी- सुनता तो हूं।
सबाली- तो तांत्रिक के पास क्यों नहीं चले जाते।
जबावी- 
सबाली-
जबावी- 
सबाली-
जबावी- 
सबाली-
जबावी- 
सबाली-

दैवीय शक्ति किसी को भी मान लें उनकी वजह से हमारी जिन्दगी में कोई बदलाव न तो आया है और न आयेगा। बदलाव समाज सुधारकों के योगदान से आया है। वही मार्ग सही है। जिनका पेट भरा हुआ है वे भक्ति करें। जिनका पेट खाली है शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान, संसाधन, सहभागिता के लिए, उन्हें समाजसेवियों की जरूरत है अवतारों, भक्तों की नहीं।

Saturday, 7 October 2023

दक्षिण के वासी

गांव के दक्षिण में रहती थी ढूमा और उसके बच्चे।
मरे हुए पशुओं का मांस उनकी आजीविका का मुख्य साधन था।

Tuesday, 3 October 2023

दबंग

किसी का घर 
गिराने वालों पर 
उंगलियां 
उठने वाली ही थीं 
कि 
किसी का धर जल उठा।

सुना था कि
पंचों में परमेश्वर आते हैं
मगर आज देख लिया
पंच ही परमेश्वर हो जाते हैं।

लोग कहते हैं
जिसका कोई नहीं होता
उसका खुदा होता है
देख लिया है आज लेकिन
खुदा उसका होता है
जिसकी सत्ता होती है।

मिथ्या गाते हैं लोग
हर नारी देवी की प्रतिमा,
सच तो यह है
दबंग ही बताते हैं कि
कौन होगी नगर वधू।

जयतु लोकतंत्रम्

जयतु लोकतंत्रम्।

एक बार मुर्गों को भ्रम हो गया कि 
उनके वाग् देने से ही सूर्योदय होता है।
बोले हम भूदेव हैं।
सभी हमारी आज्ञा पालन करें।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो मुर्गे वाग् देना बन्द करेंगे।
यह घोषणा सुन चारों तरफ हाहाकार मच जाता।
पंचायतें होतीं।
मुर्गों के सरदार की मागें मान ली जातीं। 
जनता राहत की सांस लेती।
समय ने करवट ली।
राजतंत्र चला गया लोकतंत्र आ गया।
सबके प्रतिनिधित्व का नियम आया। 
समय के साथ मुर्गों का भ्रम सातवें आसमान पर जा पहुंचा था।
सब जगह सबके प्रतिनिधित्व की मांग के अनुसार कुछ गैर मुर्गों को अपनी बराबरी पर देख कर उनके सब्र का बांध टूट गया, और एक दिन मुर्गों ने घोषणा कर दी कि आज के बाद मुर्गे वाग् नहीं देंगे। 
वोट कटने के डर से मुर्गों की मांग नहीं मानी जा सकी।
सारे मुर्गे घुच्च मार कर सो गए, सोचे कि अब देखते हैं कि कल से कैसे संसार चलता है।
अन्य लोग रात भर बेचैन रहे कि अब क्या होगा? 
पूरी पहाड़ सी रात पलकों में ही कट गई।
सूर्योदय समय पर ही हुआ। 
संसार ठीक वैसे ही चल रहा था।
मुर्गों की आँख खुली।
अब किस मुँह से बाहर निकलें सोच ही रहे थे कि मोहल्ले के लोग एकत्रित हो आए और बोले इस लोकतंत्र में आपका प्रतिनिधित्व बना रहे अतः आओ सब मिलकर रहें।
अब मुर्गे सबके प्रतिनिधित्व की बात के साथ बोलते हैं- जयतु लोकतंत्रम्।