एक बार मुर्गों को भ्रम हो गया कि
उनके वाग् देने से ही सूर्योदय होता है।
बोले हम भूदेव हैं।
सभी हमारी आज्ञा पालन करें।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो मुर्गे वाग् देना बन्द करेंगे।
यह घोषणा सुन चारों तरफ हाहाकार मच जाता।
पंचायतें होतीं।
मुर्गों के सरदार की मागें मान ली जातीं।
जनता राहत की सांस लेती।
समय ने करवट ली।
राजतंत्र चला गया लोकतंत्र आ गया।
सबके प्रतिनिधित्व का नियम आया।
समय के साथ मुर्गों का भ्रम सातवें आसमान पर जा पहुंचा था।
सब जगह सबके प्रतिनिधित्व की मांग के अनुसार कुछ गैर मुर्गों को अपनी बराबरी पर देख कर उनके सब्र का बांध टूट गया, और एक दिन मुर्गों ने घोषणा कर दी कि आज के बाद मुर्गे वाग् नहीं देंगे।
वोट कटने के डर से मुर्गों की मांग नहीं मानी जा सकी।
सारे मुर्गे घुच्च मार कर सो गए, सोचे कि अब देखते हैं कि कल से कैसे संसार चलता है।
अन्य लोग रात भर बेचैन रहे कि अब क्या होगा?
पूरी पहाड़ सी रात पलकों में ही कट गई।
सूर्योदय समय पर ही हुआ।
संसार ठीक वैसे ही चल रहा था।
मुर्गों की आँख खुली।
अब किस मुँह से बाहर निकलें सोच ही रहे थे कि मोहल्ले के लोग एकत्रित हो आए और बोले इस लोकतंत्र में आपका प्रतिनिधित्व बना रहे अतः आओ सब मिलकर रहें।
अब मुर्गे सबके प्रतिनिधित्व की बात के साथ बोलते हैं- जयतु लोकतंत्रम्।
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