लोग जुटाते लक्कड़
कंडे, बरबूले झक्कड़।
फटे-पुराने कपड़े लत्ता
कालिख सफेदा रंग।
भांग, गांजा, मदिरा
मुर्गा, वकरा, टिक्कड़।
पान, लोंग, लायची
नगाड़े तासे और मृदंग।
टोलियां बना-बना गईं
रात होत निकलें सब।
बालियां ले - ले हाथ
होरा भूंजन होरी जंग।
ले-ले आग होरी की
घर-घर होरी बरी।
गकरियां बनें घर
राख टीकत अंग।
मीठा मांगत भौजी
देवर जान छुड़ावत।
एक-दूजे मल गुलाल
करें मजाक सब संग।
खा-पीकर निकरे
करन मौज-मस्ती।
मर्यादा सारी भूले
करन लगे हुड़दंग।
विवेक शून्य सब
फाग राग में गारी।
जो कोई मिले गैल में
मर्यादा सारी भंग।
लखत सब साधु जन
कहत बुला परिजन।
आओ सब अंदर बैठो
बाहर होत बहुत हुड़दंग।
बाहर मचत उत्पात।
बंद करो खिड़कियां
उत्पाती पिएं हैं भंग।
गीत नहीं गालियां हैं
गलियां बनी नालियां।
स्त्री अस्मत ताक रहा
का-पुरुषों का हुड़दंग।
कालिख, सफेदा ले
मुंह पर मलते बेढंग।
अश्लील भाषा इनकी
अश्लील भाव-भंग।
करने को आतुर जे
नवल वस्त्र बदरंग।
मनमानी करने दो
या फिर होगी जग।
दूषित मन, दूषित तन
दूषित गुलाल - रंग
लगे रंग-रोग छूटे नहीं
खुजलावत हर अंग।
कषि उत्सव रहा नहीं
दहन उत्सव हो चला है।
स्त्री दहन का मजा लेना
कर देता है मेरा मन भंग।
स्त्री अस्मत लूटने वालोें
मत जलाओ स्त्री को।
उत्सव लूटने का नहीं
पाने की होती है उमंग।
किसान घर अन्न आये
प्रथम अन्न पकाया जाये।
भुना अन्न होरा होता है
भूनने की क्रिया है होरी।
पोंगों की बातें छोड़ो,
होलिका को न जोड़ो।
वो स्त्री थी साहसी थी
शहीद हुई नमन् उसको।
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