Tuesday, 25 January 2022

मंत्र

युद्ध जिताने का मंत्र जानते हो
क्रिकेट जिताने का मंत्र भी जानते हो।
चुनाव चिताने का मंत्र जानते हो,
विवाह के मंत्र भी जानते हो।
बिच्छू का मंत्र, 
सांप ततैया का भी मंत्र है तुम्हारे पास।
रोग नाश का,
शत्रु के विनाश का भी मंत्र जाप करते देखे जाते हो,
कितने ही मंत्र पढ़े अब तक तुमने
पर जातिवाद के नाश के लिए
एक भी मंत्र नहीं पढ़ा आज तक तुमने।
बताओ तो 
मंत्र नहीं है तुम्हारे पास
या फिर फसल है तुम्हारी ही जातिवाद।
अगर ऐसा है तो तुम मेरे लिए किसी काम के नहीं,
और न ही तुम्हारे ये मंत्र।
रखे रहो ये व्यर्थ के संहिताएं।

Saturday, 22 January 2022

माघ ज्येष्ठ भादों और गरीब की रोटी

माघ ने जमा दी,
ज्येष्ठ ने जला दी,
भादों ने गला दी।
गरीब की रोटी।
RG

Wednesday, 19 January 2022

गांव का आखिरी छोर

उन्हें लगता है कि मैं, मेरा घर, मेरी गली, मेरा वजूद गांव के आखिरी छोर पर है। पर मैं कहती हूं किकि देखो, गांव वहीं से शुरू होता है।
सुकीरथरानी तमिल लेखक

Sunday, 16 January 2022

कोई आया झांक कर चला गया

लाख दरारें कर रखीं थीं
हमने अपने घर के ताने-बाने में।
कोई आया झांक कर चला गया।
अब लकीर पीटने से क्या फायदा।

Sunday, 9 January 2022

सुनीता

घास नहीं खाती 
नीति जानती है वह
सुनीता है वह।

अबोध नहीं जानते
भोजन माता है वह
सुजाता है वह।

वही सुजाता
जिसके हाथ का खाकर
सिद्धार्थ बुद्ध हुआ था।

शत्रु हैं वे माता-पिता
क़ैद कर रहे हैं जो
बच्चों के चिन्तन को।

सुना था कभी हमने
ज़हर ज़हर को मारता है
बहिष्कार वाला ज़हर।

नहीं खायेंगे सवर्ण बच्चे
दलित के हाथ का खाना
नागनाथों का दंश था।

नहीं खायेंगे दलित बच्चे
सवर्ण के हाथ का खाना
वैद्यनाथों का दंश था।

सुनीता का निर्णय
अदम्य साहस भरा था
पहाड़ को उठाने का साहस।

लड़ना सीख गई है
सुनीता साहस दिखाती है
सुनीता घास नहीं खाती है।

Friday, 7 January 2022

गुरु

मेरे शरीर के हेतु माता-पिता हैं,
मेरी समझ के हेतु हैं गुरु आप।
समझ बिना ठूंठ यह नाम-रूप,
मान-रक्षा-समृद्धि का हेतु आप।

करुणा वर्षा वर्षों बनी रहे यूं ही,
निशदिन दूर होता रहे अज्ञताप।
मेघ बन बरसते रहें चट्टानों पर,
चट्टानों से निर्झर बन वहें आप।



Thursday, 6 January 2022

दलितकाव्य नहीं मानते लोग?

दलित साहित्य क्या है?
अदलित द्वारा 
व्यक्त
पीड़ित की पीढ़ियों की पीड़ा
वाल्मीकि सी आह की व्रीडा
फिर भी दलितकाव्य नहीं मानते लोग?
क्योंकि दोहराई जा रही हैं वे घटनाएं
आक्रोश में मुट्ठियां नहीं तानते ये लोग।

तब भी नहीं कहा जा सकता कि
ऊंट के मुंह में जीरा हैं ये कविताएं।
बदलाव का बीज हैं ये भी 
जैसे कि अश्वत्थ का बीज।

धीरे-धीरे ही सही 
जड़ें बढ़ेगीं
दरक जायेंगी दीवारें नफ़रत कीं
होगा एक छत्र साम्राज्य शीतल छांव का।
सारे पंछी मग्न होकर कविता करेंगे।

Wednesday, 5 January 2022

बहू

हे बहू! सास का सम्मान कर
तू युवती है
पर वो वृद्धा है
तेरे पास घर की चाबी है
पर उसके पास वो खजाना है
जिसे लुटाती रहती वह
हर पल तेरे पति पर
अपने पोतों पर भी
अक्षय है वह खजाना 
तू भी पा सकती है वह
पर अदा करनी होगी 
कुछ श्रद्धा, 
कुछ भावनाएँ 
कुछ मान 
कुछ अभिमान 
कुछ प्यारे बोल
समझनी होगा उसको
उसकी भावनाओं को 
सहना होगा उसकी
साठोत्तरी हठों को
जो सही थी उसने भी
कभी तेरे सुहाग कीं
आज घर तेरा है 
था जो कभी उसी का
पर वह कोख 
अब भी उसी के पास है
पला था जहाँ कभी सुहाग तेरा ।
सींचा था जिसे कभी उसने
कुक्षि में रक्त से
गोदी में दुग्ध से
फिर पसीने से
और आशीषों से 
मन्नतों से
टोनों टोटकों से
छाती पर काले टीके से
माथे पर तिलक और काले डठूले से
ले लेती थी सारी बलायें अपने सर 
डाल दिए तेरे आंचल में उसने सारे सुख
अब बारी तेरी है 
संभाल उन्हें 
और सींचती रह प्रेम से 
अपने सुहाग के साधन को 
पाती रह सुख सुहाग से। 
सुहाग के साधन से।

बहू

हे बहू! सास का सम्मान कर
तू युवती है
पर वो वृद्धा है
तेरे पास घर की चाबी है
पर उसके पास वो खजाना है
जिसे लुटाती रहती वह
हर पल तेरे पति पर
अपने पोतों पर भी
अक्षय है वह खजाना 
तू भी पा सकती है वह
पर अदा करनी होगी 
कुछ श्रद्धा, 
कुछ भावनाएँ 
कुछ मान 
कुछ अभिमान 
कुछ प्यारे बोल
समझनी होगा उसको
उसकी भावनाओं को 
सहना होगा उसकी
साठोत्तरी हठों को
जो सही थी उसने भी
कभी तेरे सुहाग कीं
आज घर तेरा है 
था जो कभी उसी का
पर वह कोख 
अब भी उसी के पास है
पला था जहाँ कभी सुहाग तेरा ।
सींचा था जिसे कभी उसने
कुक्षि में रक्त से
गोदी में दुग्ध से
फिर पसीने से
और आशीषों से 
मन्नतों से
टोनों टोटकों से
छाती पर काले टीके से
माथे पर तिलक और काले डठूले से
ले लेती थी सारी बलायें अपने सर 
डाल दिए तेरे आंचल में उसने सारे सुख
अब बारी तेरी है 
संभाल उन्हें 
और सींचती रह प्रेम से 
अपने सुहाग के साधन को 
पाती रह सुख सुहाग से। 
सुहाग के साधन से।

Sunday, 2 January 2022

सावित्रीबाई फुले

https://hindi.theprint.in/culture/fatima-sheikh-reshaped-indian-education-savitribai-phule-sir-syed-ahmad-khan/40182/

मशीह की किताब

9 वर्ष की सावित्री के संदूक में एक किताब थी,
उस किताब में क्या है चित्र देख कर कल्पना भर करती रहती थी।
ज्योतिबा - पढ़ लेती हो क्या लिखा है इसमें?
सावित्री- नहीं।
कहां से आयी है यह तुम्हारे पास?
सावित्री- शिरवाल हाट में एक औरत को पढ़ते हुए निहार रही थी। तभी उसने मुझे देते हुए कहा लो इसे पढ़कर देखो। 

ज्ञ उच्चारण

'ज्ञ' वर्ण के उच्चारण पर शास्त्रीय दृष्टि (अन्य से संकलित)-
("G" की भाँति ज और ग दोनों ही ...याग-यजन, विसर्ग-विसर्जन)
संस्कृत भाषा मेँ उच्चारण की शुद्धता का अत्यधिक महत्त्व है। शिक्षा व व्याकरण के ग्रंथोँ मेँ प्रत्येक वर्ण के उच्चारण स्थान और ध्वनि परिवर्तन के आगमलोपादि नियमोँ की विस्तार से चर्चा है। फिर भी "ज्ञ" के उच्चारण पर समाज मेँ बडी भ्रांति है। 
भ्रान्ति -
ज्+ञ्=ज्ञ
कारणः-'ज्' चवर्ग का तृतीय वर्ण है और 'ञ्' चवर्ग का ही पंचम वर्ण है। जब भी 'ज्' वर्ण के तुरन्त बाद 'ञ्' वर्ण आता है तो 'अज्झीनं व्यञ्जनं परेण संयोज्यम्' इस महाभाष्य वचन के अनुसार 'ज् +ञ' (ज्ञ) इस रुप में संयुक्त होकर 'ज्य्ञ्' ऐसी ध्वनि उच्चारित होनी चाहिए।
भ्रान्ति उन्मूलन -
"ज्ञ"वर्ण का यथार्थ तथा शिक्षा व्याकरण सम्मत शास्त्रोक्त उच्चारण 'ग्ञ्' ही है। जिसे परम्परावादी लोग सदा से ही "लोक" व्यवहार करते आये हैँ।
कारणः- तैत्तिरीय प्रातिशाख्य २/२१/१२ का नियम क्या कहता है-
स्पर्शादनुत्तमादुत्तमपराद् आनुपूर्व्यान्नासिक्याः।।
इसका अर्थ है- अनुत्तम, स्पर्श वर्ण के तुरन्त बाद यदि उत्तम स्पर्श वर्ण आता है तो दोनोँ के मध्य मेँ एक नासिक्यवर्ण का आगम होता है। यही नासिक्यवर्ण शिक्षा तथा व्याकरण के ग्रंथोँ मेँ यम के नाम से प्रसिद्ध है। 'तान्यमानेके' (तैत्तिरीय प्रातिशाख्य, २/२१/१३) इस नासिक्य वर्ण को ही कुछ आचार्य 'यम' कहते हैँ। प्रसिद्ध शिक्षा ग्रन्थ 'नारदीय शिक्षा' मेँ भी यम का उल्लेख है-
अनन्त्यश्च भवेत्पूर्वो ह्यन्तश्च परतो यदि। तत्र मध्ये यमस्तिष्ठेत्सवर्णः पूर्ववर्णयोः। 
औदव्रजि के 'ऋक् तन्त्र व्याकरण' नामक ग्रंथ में भी 'यम' का स्पष्ट उल्लेख है-
'अनन्त्यासंयोगे मध्ये यमः पूर्वस्य गुणः' 
अर्थात् वर्ग के शुरुआती चार वर्णो के बाद यदि वर्ग का पाँचवाँ वर्ण आता है तो दोनो के बीच 'यम' का आगम होता है, जो उस पहले अनन्तिम-वर्ण के समान होता है।
प्रातिशाख्य के आधार पर यम को परिभाषित करते हुए सरल शब्दों मेँ यही बात भट्टोजी दीक्षित भी लिखते हैं-
"वर्गेष्वाद्यानां चतुर्णां पंचमे परे मध्य यमो नाम पूर्व सदृशो वर्णः प्रातिशाख्ये प्रसिद्धः" -सिद्धान्त कौमुदी, १२/(८/२१ सूत्र पर)
भट्टोजी दीक्षित यम का उदाहरण देते हैं। पलिक्क्नी 'चख्खनतुः' अग्ग्निः 'घ्घ्नन्ति'।
यहाँ प्रथम उदाहरण में क् वर्ण के बाद न् वर्ण आने पर बीच में क् का सदृश यम कँ (अर्द्ध) का आगम हुआ है। दूसरे उदाहरण में खँ कार तथैव गँ कार यम, घँ कार यम का आगम हुआ है। अतः स्पष्ट है कि यदि अनुनासिक स्पर्श वर्ण के तुरंत बाद अनुनासिक स्पर्श वर्ण आता है तो उनके मध्य मेँ अनुनासिक स्पर्श वर्ण के सदृश यम का आगम होता है।
प्रकृत स्थल मेँ-
ज् + ञ्
इस अवस्था मेँ भी उक्त नियम के अनुसार यम का आगम होगा।
किस अनुनासिक वर्ण के साथ कौन से यम का आगम होगा। विस्तार भय से सार रुप दर्शा रहे हैं। 
तालिक देखें-
स्पर्श अनुनासिक वर्ण यम
क् च् ट् त् प् कँ्
ख् छ् ठ् थ् फ् खँ्
ग् ज् ड् द् ब् गँ्
घ् झ् ढ् ध् भ् घँ्
यहाँ यह बात ध्यातव्य है कि यम के आगम में जो 'पूर्व सदृश' पद प्रयुक्त हुआ है , उसका आशय वर्ग के अन्तर्गत संख्या क्रमत्व रुप सादृश्य से है सवर्णरुप सादृश्य से नहीं। ये बात उव्वट और माहिषेय के भाष्य वचनों से भी पूर्णतया स्पष्ट है ।जिसे भी हम विस्तारभय से छोड रहे हैं।
अस्तु हम पुनः प्रक्रिया पर आते हैँ-
ज् ञ् इस अवस्था मेँ तालिका के अनुसार 'ग्' यम का आगम होगा-
ज् ग् ञ्
ऐसी स्थिति प्राप्त होने पर चोःकु (अष्टाध्यायी सूत्र, ८/२/३०) सूत्र प्रवृत्त होता है। 'ज्' चवर्ग का वर्ण है और 'ग' झल् प्रत्याहार मेँ सम्मिलित है, अतः इस सूत्र से 'ज्' को कवर्ग का यथासंख्य 'ग्' आदेश हो जायेगा। तब वर्णों की स्थिति होगी-
'' ग् ग् ञ् "
इस प्रकार हम देखते हैँ कि ज् का संयुक्त रुप से 'ज्ञ' उच्चारण की प्रक्रिया में उपर्युक्त विधि से 'ग् ग् ञ्' इस रुप से उच्चारण होता है। यहाँ जब ज् रुप ही शेष नहीं रहा तो 'ज् ञ्' इस ध्वनिरुप में इसका उच्चारण कैसे हो सकता है? अतः 'ज्ञ' का सही एवं शिक्षा व्याकरण शास्त्र सम्मत उच्चारण 'ग्ञ्' ही है।

निवेदन:-क्या इस मान से "ज्ञान" का उच्चारण "ग्यांन" और "विज्ञान" = विग्यांन, प्रज्ञा= प्रग्यां के समान होगा. टिप्पणी शङ्का हेतु है.

ज्ञ का ग्यं जैसा उच्चारण नहीं होने पर कुछ स्थलों पर भ्रम हो जायेगा, जैसे पुरुष सूक्त में-अतो ज्यायाँश्च पूरुषः। यहां ज्यायाँ मे ज्ञ का भ्रम होगा।

मुझे अभी सूत्र तो स्मरण नहीं है पर इतना स्मरण है कि वेद में संयुक्त वर्ण ज्ञ का उच्चारण असंयुक्त करनाचाहिये तो क्योंकि ज्ञ ज् और ञ के योग से बना है और जो ञ है वह नङ् प्रत्यय के नकार के ज् कार के साथ संयुक्त होने पर हुआहै इसलिये पृथक् उच्चारण करने पर ज् न ऐसा उच्चारण होना चाहिये -- जज्नेन ,= यज्ञेन ।
अत्र साम्प्रदायिका : प्रमाणम् ।


एसिडिटी दवा

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