दलित साहित्य क्या है?
अदलित द्वारा
व्यक्त
पीड़ित की पीढ़ियों की पीड़ा
वाल्मीकि सी आह की व्रीडा
फिर भी दलितकाव्य नहीं मानते लोग?
क्योंकि दोहराई जा रही हैं वे घटनाएं
आक्रोश में मुट्ठियां नहीं तानते ये लोग।
तब भी नहीं कहा जा सकता कि
ऊंट के मुंह में जीरा हैं ये कविताएं।
बदलाव का बीज हैं ये भी
जैसे कि अश्वत्थ का बीज।
धीरे-धीरे ही सही
जड़ें बढ़ेगीं
दरक जायेंगी दीवारें नफ़रत कीं
होगा एक छत्र साम्राज्य शीतल छांव का।
सारे पंछी मग्न होकर कविता करेंगे।
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