TATHAGAT
Friday, 7 January 2022
गुरु
मेरे शरीर के हेतु माता-पिता हैं,
मेरी समझ के हेतु हैं गुरु आप।
समझ बिना ठूंठ यह नाम-रूप,
मान-रक्षा-समृद्धि का हेतु आप।
करुणा वर्षा वर्षों बनी रहे यूं ही,
निशदिन दूर होता रहे अज्ञताप।
मेघ बन बरसते रहें चट्टानों पर,
चट्टानों से निर्झर बन वहें आप।
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