Wednesday, 5 January 2022

बहू

हे बहू! सास का सम्मान कर
तू युवती है
पर वो वृद्धा है
तेरे पास घर की चाबी है
पर उसके पास वो खजाना है
जिसे लुटाती रहती वह
हर पल तेरे पति पर
अपने पोतों पर भी
अक्षय है वह खजाना 
तू भी पा सकती है वह
पर अदा करनी होगी 
कुछ श्रद्धा, 
कुछ भावनाएँ 
कुछ मान 
कुछ अभिमान 
कुछ प्यारे बोल
समझनी होगा उसको
उसकी भावनाओं को 
सहना होगा उसकी
साठोत्तरी हठों को
जो सही थी उसने भी
कभी तेरे सुहाग कीं
आज घर तेरा है 
था जो कभी उसी का
पर वह कोख 
अब भी उसी के पास है
पला था जहाँ कभी सुहाग तेरा ।
सींचा था जिसे कभी उसने
कुक्षि में रक्त से
गोदी में दुग्ध से
फिर पसीने से
और आशीषों से 
मन्नतों से
टोनों टोटकों से
छाती पर काले टीके से
माथे पर तिलक और काले डठूले से
ले लेती थी सारी बलायें अपने सर 
डाल दिए तेरे आंचल में उसने सारे सुख
अब बारी तेरी है 
संभाल उन्हें 
और सींचती रह प्रेम से 
अपने सुहाग के साधन को 
पाती रह सुख सुहाग से। 
सुहाग के साधन से।

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