रार विकट ठनी हमाई।
कछु देर दोऊ चिमाए रए
बिनबोलें नींद न आयी।। rg
चर्चा चरत न विरत,
भैंस बैठ गई पानी।
बरेदी फिरत गिरत
डांग पूरी है छानी। rg
फूल हैं मगर मसली जा सकतीं नहीं,
बेल हैं मगर मरोड़ी जा सकतीं नहीं,
चिरैयां है, पिंजरे में की सकतीं नहीं,
महक हैं मुट्ठीबंद कीं जा सकतीं नहीं,
रंग हैं बेढंग वे कभी रह सकतीं नहीं,
बलैयां हैं, बला बन सकती हैं दुष्ट को।rg 24.09.24
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