संस्मरण
जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए फार्म निकलने का इंतजार बैसे ही थाजैसे कटिया डालकर मछली फंसने का इंतजार करते थे मेरी बस्ती के बच्चे।
एक दिन दतिया के संगम प्रेस के फार्म बिक्री वाली सूचनाओं के बीच कंजी राख में सुलगते तिलगे की भांति सूचना, बोर्ड से उड़कर मेरी आँखों के रास्ते दिमाग में समा गई।
पिछले इतवार को घिसलनी के घूरे डालने से मिली मजदूरी से घिस चुके टायर को डलाने के बाद बचे रुपये जेब में इसी घड़ी का इंतजार कर रहे थे। तभी गुल्ली वाले डंडे की तरह लपक कर हाथ ने संचित संपत्ति को भाग्यपत्र बेचने वाले की तरफ 'सर! नवोदय का एक फार्म और एक नवोदय की किताब दे दो' कहते हुए बड़ा दिया। ऊं की आवाज के साथ अपनी ओर बढ़ाए गए फार्म और किताब को बड़े जाब्ते से थैले में रख, थैला हैंडिल पर टांग कर, टांग डार कर कट-कट, खिस्स-खिस्स की आवाज के साथ चैन की कालिख से काले हाथों से ट्रिन-ट्रिन करते हुए सरपट भागती गाड़ी उड़न खटोला बन चुकी थी। मन भी उड़कर बीकर नवोदयi विद्यालय में भाई को पढ़ते हुए देख रहा था। पता ही न चला कि कब प्राथमिक विद्यालय, गुजर्रा आ गया। पसीना बिलमने से पहले भरा हुआ फार्म प्रधानाध्यापक जी की टेबल पर साष्टांग हो चुका था।
परासरी वाले सर जी के हाथ फार्म पर जाते उससे पहले उनकी नजर मेरे हुलिया पर, और मेरी नजर उनके मरूरफली से इठते ओठों पर जाकर अटक गई।
ठीक है, 'बाद में ले जाना' सुनकर घर को निकल आया। हैंईं के मास्साब ने पूंछा कि काय रामहेत, कछु काम हतौ का? जी सर के साथ मेरे हाथ उनके पैरों की ओर बढ़ गए। ठीक है, खुशी रओ की आवाज सुन खुशी-खुशी घर तहुंचा। ढूँढ़ कर राजकुमार को पढ़ाने बैठा लिया। डर के मारे कुनमुनाते हुए दो-तीन घंटे कैसे काटे पप्पू ने अतिखुशी की चकाचौंध में मैं जान ही न पाया। लंप के उजाले में थककर 10 साल का बच्चा तो सो गया, पर आने वाली रातों की कालिमा लंप की लौं से उठकर मेरी नाक में जमा होती रही। मेरे हिस्से की नींद पप्पू की नींद में समा चुकी थी। उसके हिस्से की किताब मैं ही पढ़ न डालूं इस जलन के कारण भुनसारे की रात ने मेरी आँखों को दबोच लिया। सुबह आँख खुलते ही हंगनौटी में गुसाईं की गालियां खाकर, मोदी के कुआँ पर भी चमारिनों को ताकने के लिए नहाने के बहाने बैठे गूजर दाऊ के 'भोषड़ी वाले हड्डा ----'मंत्र के साथ घाट से उतर जाने के बाद खरोंच में कांटे वाली गत से चकरी के भिनभिना की भांति भन्नाते हुए सपर-खोरकर घर आकर जैसे बाई और कक्को सारे काम निपटाकर हार के लिए निकलीं, मैं भी उठा साईकिल पहुंच गया प्राथमिक विद्यालय, गुरुजनों को प्रणाम करने के बाद प्रधानाध्यापक के सामने उसी मुद्रा में जा खड़ा हुआ जिस मुद्रा में प्रधान के सामने खड़े रहते थे मेरी बस्ती के लोग, यद्यपि सोच के तो गया था कि सीधी गर्दन करके बात करूंगा पर सुन रखा था कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, पर हमारे पास कुछ था ही कहाँ, अंकुरित होते स्वाभिमान के सिवाय। पर वह मुद्रा भी छू मंतर तब हो गई जब फार्म में पिता के नाम में श्री मुलायम सिंह गौतम की जगह काटकर मुलाम लिखा पाया। शालीनता का बांध टूट गया और मुँह से निकल गया कि 'मास्साब नाव लिखावे वारौ फारम निकारो हम नें का लिख कैं दई हती और तुमने अपएं रजस्टर में का लिख लई'
अब हम जौई फारम कलेक्टर कैं लै कैं जै हैं।
प्रधानाध्यापक जी सकपका गए। और फिर सही नाम लिख दिया। अब राजकुमार गौतम का जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश परीक्षा का फार्म कम्प्लीट था।
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