रामहेत गौतम गुजर्रा
𑆯𑆫𑆢 𑆢𑆼𑆯 𑆬𑆴𑆥𑆴 𑆯𑆳𑆫𑆢𑆳,
𑆅𑆯𑆶 𑆯𑆢𑆳𑆧𑇀𑆢𑆴 𑆢𑆯 𑆑𑆳𑆬𑇅
𑆩𑆳𑆀 𑆑𑆶𑆛𑆴𑆬 𑆧𑆲𑆴𑆤 𑆛𑆳𑆑𑆫𑆵,
𑆃𑆫𑇀𑆢𑇀𑆣𑆯𑆠𑆑 𑆮𑆫𑇀𑆟𑆩𑆳𑆬𑇅𑇅
𑆫𑆳𑆩𑆲𑆼𑆠 𑆓𑆿𑆠𑆩 𑆓𑆶𑆘𑆫𑇀𑆫𑆳
भारत जलाने वाले
जला रहे आज भी।
नफ़रत करने वाले,
अखि लेश सहो न रिदास,
करो भद्द द्रोही।
जय रविदास रटै न कछु,
न भर झूठहि मोही।।rg
संविधान विधाता का
और जनता का भी।
प्रथम तो पीसता है
दूसर पोसता है।।rg
आदिम मतबल बाहु बल,
पर जनमत सममान।
आदम अतीत बात सब,
अद्यतन सब संज्ञान।।rg
पागल पाल गुमान मन,
मानल ऊंच खुद ही।
चाह इलाज मनोरोग,
लोकहित सबन सधहि।।rg
वर्चस्व को नकारना,
विरोधि होना नहीं।
आतंकी कहेगा ही,
जी हजूरी अब नहीं।।rg
वेद पुराण लिक्खा सब,
थोपा थोक हि भाव।
आपन हृदय न लिख सका,
सदा सबहि सम भाव।।rg
कमजोर वो अभिमानी,
नित थोपत मनमान।
जो जन जाहिर असहमति,
करत नहीं सम्मान।।rg
कमजोर वो अभिमानी,
थोपत नित् मनमान
गौतम! जाहिर असहमति,
करत नहीं सम्मान।।rg
ह! हुड़दंग! निकरि मुहाल, घर बिच बन्द रहिए।
मस्जिद मण्डित त्रिपाल, काल को का कहिए।।
दिखता है आम आदमी, पर आदम ना होय।
आदमखोर चूकत कब? देखत सज्जन होय।।
बांट भुरके भाभी जब, तब भैया दूध दोय।
अब दूध दाम कम लगे, गौतम दाम बढ़ि सोय।।
बुलडोजर धूम धड़ाका, धूमिल घर व द्वार।
बेटी बुक्स बकोटी, सुन उन की चीत्कार।।
अखंड भारत बनहि जब,
जुड़ि पाक व अफगान।
बुरा भला होय राजा,
होय न कोई जात।
देखा जो जन जात जब,
न उ राजा रह जात।।
चाह राजा बिना जात,
न्याय न देखे जात।
हुई जात जात राजन
सामन्त सब न भात।।
संभव पासपोर्ट फोटु,
जूतों के भी साथ।
जूते हों राम जैसे
व भरत सा हो माथ।।rg
वकील नेता अभिनेता, और ऊंट की जात।
कब कौन करवट पैठे, घरी भर न रइ पात।।
शतरंज नहीं अयोध्या
पुलस्त कुल कलंक काट,
रामबल अधम जात।
कुलीन राक्षस सब भ्रष्ट,
दुष्टतावश मर जात।।rg
दलित हिन्दू ही नाहीं,
हिन्दू करते सिद्ध।
घोड़ी, दाड़ी व मौड़ी,
देखत नोचत गिद्ध।।rg
जजिया से स्तनकर बुरा, मुसल पेशवा पूत।
विदेशी नशल ही पहल , दूसर मंतर पूत।।
गिन रहा अंतिम सांसें,
सामन्तों का खौफ।
साया संगीन हि सही,
जातंक होइ साफ।।rg
चप्पल भी चिढ़ाती है,
जबभि दलित पग पाय।
ठकरासी का काम की?
जो मानव ठग खाय।।rg
शतरंज का खिलाड़ी
नहीं हूँ मैं।
सब कुछ खोल के रख दिया है,
होगा यह कि
या तो कुछ हाथ लगेगा
या फिर कुछ सीख,
काम आयेगी जो
समाज को समझाने के लिए।
खाली हाथ कोई नहीं रहेगा,
न वे जिन पर भरोसा है मुझे,
और न मैं
भरोसा टूटने के बाद भी।rg
सिन्दूर लाने वाले,
कह चूड़ी ले जाय।
लुट रहे दलित स्त्री जब,
तब नौटंकी काय।।rg
ज्ञानी न उलझत मूढ़हि,
बकता ऊल-जलूल।
कभी न उलझते दिग्गज,
भोंकत कूकर-ऊल।।rg
जातंकवाद आबाद,
मारत रत दिनरात।
भारत तरु घुन घनघोर,
नित् करत व्याघात।।rg
चनाचोर शरम बाबू,
करो न जात कुजात।
मानो बातें वेद कीं
रक्खो सबको साथ।।rg
संविधान पे जातंकी
रहे खूब खिजाय।
भिन्नाकर कहें माखीं
दवा रोग फैलाय।।rg
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