(पद्म पुराण का उपदेश)
जब भी कोई श्रद्धालु अपने पुण्यवर्धन हेतु किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देता है, तो शास्त्र यह अपेक्षा करता है कि वह ब्राह्मण शुद्धाचारी, वेदमार्ग का अनुगामी, संयमी और सदाचारी हो। परंतु यदि कोई ब्राह्मण धूम्रपान करता हो — यज्ञीय अग्नि के समीप रहकर भी अग्निविरुद्ध आचरण करता हो — तो उसे दान देना न केवल निष्फल, बल्कि घोर अधर्म का कारण बन जाता है।
पद्म पुराण में कहा गया है—
> धूम्रपान रते विप्रे दानं कुर्वन्ति यो नराः ।
ते नरा नरकं यान्ति ब्रह्माणौ ग्रामशूकराः ॥
अर्थ:
जो व्यक्ति धूम्रपान करने वाले ब्राह्मण को दान देता है, वह स्वयं भी नरक में जाता है, और वह ब्राह्मण — जो वेदमार्ग से च्युत होकर धूम्रपान जैसा तमोगुणी आचरण करता है — मृत्यु के उपरांत गांव-गांव में भटकने वाला शूकर (सुअर) बनता है।
यह केवल ब्राह्मणों के लिए नहीं, अपितु क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र — सभी वर्णों में यह नियम समान रूप से लागू होता है। जो भी व्यक्ति व्यसनी, अधार्मिक, नास्तिक या शास्त्रविरोधी आचरण करने वाले को दान देता है, उसका पुण्य नष्ट होकर उसे पाप का भागी बनाता है।
इसलिए—
दान देते समय केवल जाति नहीं, पात्रता भी जांचें।
धर्म केवल भावना नहीं, विवेक की परीक्षा भी है।
#राधेराधे
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