पुनि डरा समझा व ललचावा, अह! अहि महि एकहि कब्जावा।।
दोस्त! जो चालें चल रहे हो,
आंख मींच मनहि खिल रहे हो।
ज्यों गिद्ध मगन गगन गमन में,
पारखी चूकौ कब? परखन में।।
शीर्ष पद धारन करन वाला,
जब रक्त मोह वह ले पाला।
बिकट फूट फटी फिर अंश में,
धृतराष्ट्र कहलाया वंश में।।
बोली सत्ता सुनाओ संजय,
खोलो तो खबरों का संचय।
स्मील् स्मिति विखेर फिर वह बोला।
सत्ता श्रोत्र वज्र विष घोला।।
सञ्जय जरा सच बोल देता,
अंधावृत आँख खोल देता।
रुक सकता ताण्डव डायनों का,
न नाश शहलता कुरुनयनों का।।
सचाई सामने आयेगी,
घटना दोहराई जायेगी।
बेईमानी तो नस्ल में है,
सचाई गायी जायेगी।।
लख-चख परख पतंग उचारी
अतिप्रकाश ही संकट भारी।
मृग-मोहक नव-गेरु-पट-धारी
राग मनोहर व्याध निकारी।।rg
लात मार पाले में रखना,
रावणगिरी हि स्वाद चखना।
प्रेम अंगुलिमाल पिघलावा,
आम्रपालि ही मान दिलावा।।
चित भी मेरी पट भी मेरी,
मेरी बुद्धि सब सुख चितेरी।
जवन चाहूँ वैराग धारूँ
जवन चाहूँ रग राग चारूँ।।rg
लेखनी तव लेख तुम्हारा,
लिख लियौ 'सब उत्तम हमारा'।
तुम धूर्त कुटिल चल सब चाली,
देते हो गा-गा करि गाली।।
02/7/25 RG
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