आसमान में बैठकर गर्त गिराये गये समाज को कैसे साथ रखा जा सकता है।
इसके लिए तो धरातल पर उतरना पड़ेगा। दलित को भी धरातल पर आने में हाथ थामना होगा।
अछूत का हाथ थामने के लिए इतना आत्मबल चाहिए कि स्वघोषित पवित्र लोगों का धर्म भ्रष्ट न होकर अछूत पवित्र होकर इनके जैसे हो जाएं तब आपके जैसे लोगों को मंच से गला फाड़ने की जरूरत ही नहीं रहेगी।
शास्त्र ही तो कहते हैं कि संतजनों से स्नेह व भरोसा पाकर जानवर भी साथ आ जाते हैं। पर संत के आवरण में बहेलिए द्वारा पीड़ित जानवर संतो से भी बचते हैं।
कोई दलित मंदिर जाए तो ब्राह्मण मारे, घोड़ी चढ़े तो ठाकुर मारे, दुकान खोले तो बनिया मारे। इन घटनाक्रमों पर आप जैसे लोग मौन रहें तो राजनीति को दोष देकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता।
दलित फुसलाने से नहीं अपनापन, विश्वास, सम्मान, सुरक्षा, शिक्षा आदि में समान अवसर देखकर ही साथ आयेंगे। आप अनके प्रतिनिधित्व को स्वीकार किये बिना साथ लाने का दिवास्वप्न देख रहे हैं।❤
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