Friday, 18 July 2025

दलित वर्ण-व्यवस्था से बाहर के लोग हैं।

दलित वर्ण-व्यवस्था से बाहर के लोग हैं। वे उत्पादक लोग रहे हैं। उनके संस्थान, मान व प्रतिष्ठा को सैन्य बल से रोंद कर दुवारा पनपने नहीं देते। सवर्णों को उनके उत्पाद चाहिए जिन्हें कुछ बूंदें छिड़क कर पवित्र मान कर उपयोग में लेते हैं। उत्पादक वर्ग के दलन की आदत हो चली है। दलितों को रौंदने में गौरव का अनुभव किया जाता हो जहाँ वहाँ जुड़कर कैसे रहा जा सकता है। जिन पर वर्णव्यवस्था थोपी गई उन्होंने भी नहीं मानी तो दलित कैसे मान लें। जिन लोगों ने ग्रन्थों में वर्णव्यस्था ठूँसी उन्होंने स्वयं कभी नहीं मानी। मानी होती तो 99% ब्राह्मण सांसारिक भोग विलास के संसाधनों पर कब्जा करके न बैठे होते। 
आसमान में बैठकर गर्त गिराये गये समाज को कैसे साथ रखा जा सकता है।
इसके लिए तो धरातल पर उतरना पड़ेगा। दलित को भी धरातल पर आने में हाथ थामना होगा। 
अछूत का हाथ थामने के लिए इतना आत्मबल चाहिए कि स्वघोषित पवित्र लोगों का धर्म भ्रष्ट न होकर अछूत पवित्र होकर इनके जैसे हो जाएं तब आपके जैसे लोगों को मंच से गला फाड़ने की जरूरत ही नहीं रहेगी। 
शास्त्र ही तो कहते हैं कि संतजनों से स्नेह व भरोसा पाकर जानवर भी साथ आ जाते हैं। पर संत के आवरण में बहेलिए द्वारा पीड़ित जानवर संतो से भी बचते हैं। 
कोई दलित मंदिर जाए तो ब्राह्मण मारे, घोड़ी चढ़े तो ठाकुर मारे, दुकान खोले तो बनिया मारे। इन घटनाक्रमों पर आप जैसे लोग मौन रहें तो राजनीति को दोष देकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। 
दलित फुसलाने से नहीं अपनापन, विश्वास, सम्मान, सुरक्षा, शिक्षा आदि में समान अवसर देखकर ही साथ आयेंगे। आप अनके प्रतिनिधित्व को स्वीकार किये बिना साथ लाने का दिवास्वप्न देख रहे हैं।❤

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