नव भोर की नव किरण
आलोकित रहे
आपके जीवन नभ में
गुंजन भौरों सी,
फुदकन चिड़ियों सी
गुंजित हो कानों में
नव वर्ष की अठखेलियां
व्यापें आपके आँगन में
मुदित रहें मित्र आपसे
धर्म कर्म के प्रांगण में
शहद घोले जीवनसाथी
हर पल तव जीवन में
वरद हस्त मां बाप के
थामें तुम्हें ज्यों पतंग गगन में
नव वर्ष नव दिवस नव प्रभात्
नित् नवरस भरें तव जीवन में ।
Tuesday, 31 December 2019
Nav bhor
Monday, 30 December 2019
निर्माण का काल है वर्तमान
बृद्ध अतीत, तो युवा भविष्य चाहता है
वर्तमान से संतुष्टि पाते नहीं हैं ये दोनों
वर्तमान ही तो दोनों को संजोये हुए है।
हर समय प्रवृत्ति का काल है वर्तमान
सुधार व निर्माण का काल है वर्तमान।
Thursday, 26 December 2019
Tuesday, 24 December 2019
दुग्धं नालिकासु
दुग्धं नालिकासु मूत्रं स्थालिकाषु
शीतागारे बलात्कारी कारागारे पीड़िता
संसदि अशिक्षिताः शिक्षिताः मंदिरेषु
तदा किमपि कथमपि विकासः भविष्यति।
नाली में बहता दूध और मूत प्याली में।
जेल में पड़ी पीड़िता बलात्कारी एसी में।
संसद में बैठते अनपढ़ पढ़े पड़े मंदिरों में।
तब सोचिये समझदार! कहाँ है विकास?
डाॅ रामहेत गौतम
Saturday, 21 December 2019
Friday, 13 December 2019
भारतीय स्त्रियों के आधुनिक उद्धारक
फेसबुक से साभार
भारतीय स्त्रियों के आधुनिक उद्धारक
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बाबासाहेब डा. अंबेडकर ने हमारे संविधान में भारतीय महिलाओं के हजारो वर्षो की पुरूष प्रधान समाज के शोषण एवं गुलामी से मुक्ति के लिए भारतीय संविधान में किये गए विशेष उपबंध जिसके उपरांत इस देश की महिलाओ को हजारो वर्षो के पश्चात् मनुवादी व्यवस्थओ से मुक्ति मिली।
1. बहुपत्नी की परम्परा को खत्म कर नारियो को अद्भुत सम्मान दिया।
2. प्रथम वैध पत्नी के रहते दूसरी शादी को अमान्य किया।
3. बेटे की तरह बेटी को भी पिता की सम्पति में अधिकार का प्रावधान किया।
4. गोद लेने का अधिकार दिया।
5. तलाक लेने का अधिकार दिया।
6. बेटी को वारिश बनने का अधिकार दिया।
7. प्रसव छुट्टी का प्रावधान किया।
8. समान काम के लिए पुरुषो के सामान वेतन पाने का अधिकार दिया।
9. स्त्री की क्षमता के अनुसार ही काम लेने का प्रावधान किया।
10. भूमिगत कोल खदानों में महिलाओं के काम करने पर रोक लगाया।
11. श्रम की अवधी 12 घंटा से घटा कर 8 घंटा किया।
12. लिंग भेद को खत्म किया।
13. बाल विवाह पर रोक लगाया।
14....रखनी प्रथा , वेश्यावृति पर रोक।
15. धार्मिक स्वतंत्रता एवं शिक्षा का अधिकार दिया।
16. मताधिकार का अधिकार दिया।
17. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनने का द्वार खोला।
18. मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया।.
ये सारे अधिकार SC ST OBC Minority & General Category सभी महिलाओं के लिए बनायाये। इस संविधान के पूर्व भारतीय स्त्रियां....पुरुष की दासी मात्र थी जिसका गवाह हिन्दू शाश्त्र है.... ऋग्वेद में स्त्रियों को झूठी कहा गया....उनके मन को भेड़िये जैसा बताया गया, किसी भी पुरुष के प्रति आकर्षित हो जाने वाली बताया। रामचरित मानस में तुलसी ने पशुओं की तरह नारी को पीटने योग्य बताया, गीता में पापयोनि वाला बताया, मनुसमृति में तो पूछिये मत नारी को किस स्तर तक गिराया।
लेकिन बाबासाहेब डा़ अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 14 में इन सारे "शास्त्रीय नियमों"को ध्वस्त कर। उन्हें एक इंसान के रूप में सम्मान पूर्वक जीने का हक़ दिया। ये शायद भारतीय महिलाये इन तथ्यो से अनभिज्ञ है।
जय भीम जय भारत
Friday, 22 November 2019
ललई, पेरियार, ज्योति,
*"ललई सिंह यादव" को यदि अहीर [यादव] बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले*
*"डॉ राम स्वरूप वर्मा" को कुर्मी [ पटेल ] बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले*।
*"महराज सिंह भारती" को जाट [ जट्ट ] बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले*।
*"जगदेव प्रसाद कुशवाहा या महतो, मौर्य" को कोइरी [ कुशवाहा ] बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले*।
*"पेरियार" को गड़ेरिया [ पाल ] बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान लें*।
*ज्योति राव फूले को माली[ सैनी ] पढ़ ले*।
*बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को [SC+ST+OBC] ठीक से पढ़ लें और जान जाय इनका अस्तित्व ....*
*कार्ल मार्क्स को [ आदिवासी ] को पढ़ा दिया जाय ......*
तो समझो भारत का हर एक क्षेत्र में बेहतरीन परिणाम मिलने से कोई *"माई का लाल'"* नहीं रोक सकता है चाहे कोई *'अवतार'* लेकर भी भारत में क्यूँ ना उतर जाए, काश कि इन जाति-बिरादरी के लोग अपने-अपने जातियों के जातिवादी स्वभाव के कारणों से भी गलती से भी इन महापुरुषों को पढ़ लें तो भी बहुत बड़ा *"सामाजिक, आर्थिक और 'क्रांतिकारी परिवर्तन "* आज भी देश में सम्भव है...
नमो बुद्धाय जय भीम जय संविधान जय भारत
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Wednesday, 20 November 2019
चंन्द्रशेखर आझाद साइकल से अंम्बेडकर फ्लाइट से
फेसबुक पर किसीने पोस्ट डाली उस पोस्ट पर *संजीवकुमार जिरागे* नामक बंधू ने उनको जो उत्तर दिया है..
*सब इसे पढ़े और शेयर जरूर करे।*
जिस समय चंन्द्रशेखर आझाद साइकल ले कर चलते थे उस समय अंम्बेडकर भारत और इंग्लैड फ्लाइट से आते जाते थे, जब राम प्रसाद बिस्मिल जी भुने चने खा कर क्रांती कि ज्वाला में खूद जल रहे थे तब अंम्बेडकर कोट पैंट और टाई पहन कर चलते थे, जब भगत सिंह एक वकील को मोहताज थे, तब बैरिस्टर वकील अंम्बेडकर अंग्रेज अफसरों के मुकदमे लड रहे थे और अंत में वही बन गये भारत भाग्य विधाता उन्ही को मिली भारत की नींव भरने की जीम्मेदारी अंजाम सब देख रहे है, कड़वा है पर शत प्रतिशत सत्य है शायद कुछ को हजम ना हो !!
*"सवाल सवर्णों के हैं और जवाब " अंबेडकरवादी*
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👎🏾सवाल 1- जिस समय चन्द्रशेखर आज़ाद महान साईकिल ले कर चलते थे उस समय भीमराव अम्बेडकर भारत और इंग्लैण्ड फ्लाइट से आते जाते थे।
क्यों ?
👍🏿उत्तर 1 - *क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों द्वारा उन्हें यहाँ बैलगाड़ी पर भी चढ़ने नहीं दिया जाता था, जबकि अंग्रेज़ जातिवादी नहीं थे !*
👎🏾सवाल 2 - जब राम प्रसाद बिस्मिल जी भुने चने खा कर क्रान्ति की ज्वाला में खुद जल रहे थे तब भीमराव अंबेडकर ब्रिटेन के गवर्नर के शाही भोज में शामिल होते थे।
क्यों ?
👍🏿उत्तर 2 - *क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों द्वारा उन्हें सार्वजनिक गंदे तालाब का भी पानी पीने की इजाज़त नहीं थी, जबकि अंग्रेज़ बिना जाति देखे योग्यता पर बाबा साहब को ससम्मान भोज पर बुलाते थे !*
👎🏾सवाल 3 - जब सारा भारत स्वदेशी के नाम पर विदेशी कपड़ों की होली जला रहा था तब भीमराव अम्बेडकर कोट पैंट और टाई पहन कर चलते थे।
क्यों ?
👍🏿उत्तर 3 - *क्योंकि बाबा साहब के साफ-सुथरे-सफेद-स्वदेशी कपड़ो पर तुम्हारे पूर्वजों द्वारा गोबर-कीचड़ उछाला जाता था, जबकि कोट-पैंट पर ऐसा करना अंग्रेज़ी सभ्यता को चोट पहुँचाना, अंग्रेज़ो का अपमान होता जिससे डरकर तुम्हारे पूर्वज कोट-पैंट गंदा नहीं करते थे !*
👎🏾सवाल 4 - जब भगत सिंह एक वकील को मोहताज़ थे तब बैरिस्टर वकील भीमराव अंबेडकर अंग्रेज अफसरों के मुकदमे लड़ रहे थे । क्यों ?
👍🏿उत्तर 4- *क्योंकि उस समय गांधी के साथ बहुत बड़ी-बड़ी वकालत पढ़े लोग थे जो भगत सिंह को बचाने का दंभ भरते थे। बाबा साहब को भगत सिंह का वकील बनाने में #छूत लगने का डर था, क्योंकि बाबा साहब अछूत थे। वैसे भगत सिंह को पता था कि उसने क्या किया है। और वह अपनी खुशी से फाँसी पर चढ़ लोगों के लिए मिसाल बनना चाहता था। तो यह बात और तर्क लागू ही नहीं होती !*
👎🏾सवाल5- और अंत में वही बन गया भारत भाग्य विधाता ........उसी को मिली भारत की नींव भरने की जिम्मेदारी।...क्यों ?
..अंजाम सब देख रहे हैं।
👍उत्तर 5- *तुम लोगों नें सिर्फ़ डिग्री के लिए पढ़ाई की थी। जबकि बाबा साहब नें ज्ञान के लिए। तुम्हारे अंदर संविधान बनाने की क्षमता नहीं थी तब मजबूरी में बाबा साहब को याद किया। संविधान निर्माण के दौरान भी छूआछूत और तानों को बर्दाश्त करते हुए एक सच्चे देशभक्त के रूप में देश के लिए बाबा साहब नें संविधान बनाया। वे सच में "भारत भाग्य विधाता हैं।" भारत का अंजाम आज विश्व-शक्ति बनने की ओर सिर्फ़ इसीलिए है क्योंकि उसकी नींव बाबा साहब नें रखी !*
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👎🏾 सवाल 6- आज वर्षों बाद मेरे जैसे कुछ गिने चुने लोग हैं जो अब भी भगत सिंह और चन्द्रशेखर तिवारी (आज़ाद) को अपना आदर्श मानते हैं..संख्या कम है हमारी और हमें गर्व है इस बात का और हमेशा रहेगा..जय - हिंद
👍उत्तर 6- और *हम बाबा साहब को अपना आदर्श मानते हैं। क्योंकि हम अंग्रेज़ो के गुलाम नहीं थी।बल्कि तुम लोग हमें अपना गुलाम बनाए रखना चाहते थे जिससे हमें अंग्रेज़ो के सहयोग से बाबा साहब नें आजाद कराया। हमारे लोगों में इस बात पर गर्व करने की संख्या लगातार बढ़ रही है।*
👍जय - भीम👍
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बहुत समय से सोशल-मीडिया पर यह सवाल सवर्णों द्वारा फैलाया जा रहा था। अगर मेरा जवाब पसंद आया हो तो दे मारो सबके मुँह पर।
आपका ही
🤝एक अंबेडकरवादी🤝
Saturday, 16 November 2019
मेरे उसूल
मेरे उसूल मेरा कफ़न बनते हों तो बन जायें मुझे गम नहीं,
सौ साल व्यर्थ जिंदगी से उसूल भरा एक पल कम नहीं ।
Friday, 15 November 2019
Thursday, 14 November 2019
विरसा ने कहा है, मुण्डाओं ने सुना है।
विरसा ने कहा है, मुण्डाओं ने सुना है।
लो मशाल थाम लो, संघर्ष पे जोर दो।।
संघर्ष से मान है, मान ही जीवन है।
हमारा भी मान है, तुम्हारा भी मान है।।
जय जोहार जय, जंगल ही देवता है।
जो इसे काटता है, वो शत्रु हमारा है।।
अंधविश्वास बेडियाँ,शराब भी छोड़ दो।
शिक्षा पर जोर दो, शिक्षा ही मुक्ति है।।
वन को बचाया है, देश भी बचाना है।
जंगल में वास है, सत्ता में भी आना है।।
ये लोक हमारा है, लोकतंत्र यहाँ है।
भारत की रक्षा में, जय जोहार जय।।
रामहेत गौतमः
Monday, 11 November 2019
पचताना न होगा
बोल दो सज्जनों की सभा में पछताना न होगा,
मौन रहो वाचालों की सभा में पछताना न होगा,
कब बोलना, कब मौन सभा में सीख लेना होगा,
इतना-सा सीख लिया जीवन् में पछताना न होगा ।
दुर्लभ तेरा प्यार है ।
कितना सहज स्वभाव तेरा,
कितना सरल तेरा व्यवहार है।
जब-जब देखा स्वप्न तेरा,
कितना दुर्लभ तेरा प्यार है।।
Sunday, 10 November 2019
अनभिज्ञानशाकुन्तलम्
अभिज्ञानशाकुन्तलम् ( षष्ठोऽङ्कः ) ( ततः प्रविशति नागरिकः श्यालः पश्चाद् बद्धपुरुषमादाय रक्षिणी च । ) रक्षिणी - अले कुम्भीलेओ , कहेहि कहिं तुए एक मणिबन्धणुक्तिण्णणामहेए लाजकीअए अङ्गुलीअए शमाशादिए । पुरुषः - ( भीतिनाटितकेन ) पशीदन्तु भावमिश्शे । हगे ण ईदिशकम्मकाली । प्रथमः - किं शोहणे बम्हणेत्ति कलिअ रण्णा पडिग्गहे दिण्णे । पुरुषः - शुणुध दाणिं । हगे शवावदालभन्तरालवाशी धीवले । द्वितीयः - पाडच्चला , किं अम्हेहिं जादी पुच्छिदा । श्यालः - सूअअ , कहेदु शव्वं अणुक्कमेण । मा णं अन्तरा पडिबन्धह । उभौ - जं आवुत्ते आणवेदि । कहेहि । पुरुषः - अहके जालुग्गालादिहिं । मच्छबन्धणोवाएहिं कुडुम्बभलणं कलेमि । श्यालः - ( विहस्य ) विसुद्धो दाणिं आजीवो । पुरुषः - भट्टा मा एव्यं भण शहजे किल जे विणिन्दिए ण हु दे कम्म विवज्जणीअए । पशुमालणकम्मदालुणे अणुकम्पामिदु एव्व शोत्तिए । । १ । । श्यालः - तदो तदो । पुरुषः - एकश्शिं दिअशं खण्डशो लोहिअमच्छे मए कप्पिदे । जाव तश्श उदलब्भन्तले एवं लदणभाशुल अगुलीअअं देविखअं पच्छा अहके शे विक्कआअ दंशअंते गहिदे भावमिश्शेहिं । मालेह वा मुञ्चेह वा । अअंशे आअमवुत्तन्ते । श्यालः - जाणुअ , विस्सगन्धी गोहादी मच्छबन्धो एव्व गच्छामो । निस्संश । अगुलीअअदंसणं से विमरिसिदब्ब । राअउलं एव्व रक्षिणी - तह गच्छ अले गण्डभेद । ( सर्वे परिकामन्ति ) श्यालः - सूअअ , इमं गोपुरदुआरे अप्पमत्ता पडिवालह जाव इम णिकमामि । अगुलीअअं जहागमणं भट्टिनो णिवेदिअ तदो सासणं पडिजिअ उभौ – पविशदु आवुत्ते शामिपशादश्श ।
( इति निष्क्रान्तः श्यालः ) प्रथमः - जाणुअ , चिलाअदि क्खु आवुत्ते । द्वितीयः - णं अवशलोवशप्पणीया लाआणो । ( इति पुरुषं निर्दिशति ) प्रथमः - जाणुअ , फायन्ति मे हत्था इमरश वहश्श शुमणा पिणछ । पुरुषः - ण अलुहदि भावे अकालणमालणे भविदूं । द्वितीयः - ( विलोक्य ) एशे अम्हाणं शामी पत्तहत्थे लाअशाशणं पडिच्छिअ इदोमुहे देखीअदि । गिद्धबली भविश्शशि , शुणो मुहं या देक्खिश्शशि । ( प्रविश्य ) श्यालः - सूअअ , मुञ्चेदु एसो जालोअजीवी । उववण्णो क्खु से अङ्गुलीअअस्स आअमो । सूचकः - जह आवुत्ते भणादि । एशे जमशदणं पविशिअ पडिणिवुत्ते । ( इति पुरुषं परिमुक्तबन्धनं करोति ) पुरुषः - ( श्यालं प्रणम्य ) भट्टा , अह कीलिशे मे आजीवे । श्यालः - एसो भट्टिणा अगुलीअअमुल्लसम्मिदो पसादो वि दाविदो । ( इति पुरुषाय स्वं प्रयच्छति । ) पुरुषः - ( सप्रणाम प्रतिगृह्य ) भट्टा , अणुग्गहिदम्हि । सूचकः - एशे णाम अणुग्गहे जे शूलादो अवदालिअ हत्थिक्खन्धे पडिट्ठाविदे । जानुकः - आवृत्त , पालिदोशिअं कहेदि , तेण अङ्गुलीअएण भट्टिणो शम्मदेण होदबं त्ति । श्यालः - ण तस्सिं महारुहं रदणं भट्टिणो बहुमदं ति तक्केमि । तस्स दंसणेण भट्टिणो अभिमदो जणो सुमराविदो । मुहुत्तअं पकिदि गम्भीरो वि पजस्सुणअणो आसि । सूचकः - शेविदं णाम आवुत्तेण । जानुकः - णं भणाहि । इमश्श कए मच्छिअभत्तुणो त्ति । ( इति पुरुषमसूयया पश्यति ) पुरुषः - भट्टालक , इदो अद्धं तुम्हाणं शुमणोमुल्लं होदु । जानुकः - एत्तके जुज्जइ ।
श्याल - धीवर , गारो तुम चिअपारसओ वाणिं मे संतो । कादम्बरीसक्खिा अहाणं पतमसोहि इच्छीअदि । ता सोगिडआपण एव्य गायो । ( इति निष्कान्ताः सखें । ) इति प्रवेशक संस्कृतच्छाया । ( तत प्रविशति नागरिक : श्याल पश्चादबद्धपुरुषमादाय रक्षिणीय ) रक्षिणी - अरे कुनीलका कषय करिमन चर्यग मणिबनानोत्कीर्णनामधेय राजकीयमहगुलीयक समासादितमा पुरुष - ( गीतिनाटितकेन ) प्रसीदन्तु गाथमिश्रा । अह नेतादृशकर्मकारी । प्रथमः - कि शोभनो वाहाण इति कलयित्वा राज्ञा प्रतियहो दत्त ? पुरुषः - पृणुतेदानीम । अ शक्रावताराप्यन्तरालयासी धीवर । द्वितीयः - पाटण किमस्माभिर्जाति पृष्टा । श्याल - सूचका कषयतु सर्वमनुक्रमेण । मैनमन्तरा प्रतिबनीतम् । उभी - यदायुत्त आशापयति । कथय । पुरुषः - अह जालोझालादिमिर्मत्स्यबन्धनोपाय कुटुग्यमरणं करोमि । श्याल - ( विहस्य ) विशुद्ध इदानीमाजीयः । पुरुषः - भर्तः । मा एवं भण । सहजं किल यद्विनिन्दित न खलु तत्कर्म विवर्जनीयम् । पशुमारणकर्मदारुणोऽनुकम्पामृदुरेव ओत्रियः । । ५ । । श्यालः - ततस्ततः । पुरुषः - एकस्मिन् दिवसे खण्डशो रोहितमत्स्यो मया कल्पितः । यावत्तस्योदराभ्यन्तरे प्रेक्षे तावदिद रत्नभासुरमडगुलीयकं दृष्टम् । पश्चादहमस्य विक्रयाय दर्शयन गृहीतो भावमिश्रः । मारयत वा मुशत था । अयमस्यागमवृत्तान्तः । श्याल - जानुका विसगधी गोधादी मत्स्यबन्ध एव निसंशयम । अडगुलीयकदर्शनमस्य विमर्शयितव्यम् । राजकुलमेव गच्छामः । रक्षिणी - तथा । गच्छ , अरे ! ग्रन्थिभेदका ( सर्व परिक्रामन्ति ) श्याल - सूचका इमं गोपुरखारेजामती प्रतिपालयतमा याचदिद मङ्गुलीयकं यथागमन भनिवेद्य तत शासन प्रतीष्य निष्काम्यामि । उभी - प्रविशत्वायुत्तः स्वामिप्रसादाय । ( इति निष्कान्तः श्याल ) प्रथमः - जानुका चिरायते खल्वावुत्त । द्वितीय - नववसरोपसर्पणीया राजान । प्रथम - जानुका स्फुरती मम हस्तावस्य कास्य सुमनस पिनाम् । ।
( इति पुरुषं निर्दिशति ) पुरुषः - नार्हति भावोऽकारणमारणो भवितुम । द्वितीयः - ( विलोक्य ) एषोऽस्माक स्वामी पत्रहस्तो राजशासन प्रतीष्येतोमुखो दृश्यते । गृध्रबलिर्भविष्यसि शुनो मुख वा दक्ष्यसि । ( प्रविश्य ) श्यालः - सूचक ! मुच्यतामेष जालोपजीवी । उपपन्नः खल्वस्या गुलीयकस्यागमः । सूचकः - यथावुत्तो भणति । एष यमसदनं प्रविश्य प्रतिनिवृत्तः । ( इति पुरुष परिमुक्तबन्धनं करोति ) पुरुषः - भर्तः । अथ कीदृशो मे आजीवः । श्यालः - एष भडिगुलीयकमूल्यसम्मित प्रसादोऽपि दापितः । ( इति पुरुषाय स्वं प्रयच्छति ) पुरुषः - ( सप्रणाम प्रतिगृह्य ) भर्तः ! अनुगृहीतोऽस्मि । सूचकः - एष नामानुग्रहो यच्छूलादवतार्य हस्तिस्कन्धे प्रतिष्ठापितः । जानुकः - आवुत्त ! परितोषिकं कथयति , तेनाङ्गुलीयकेन भर्तुः सम्मतेन भवितव्यमिति । श्यालः - न तरिमन्महार्ह रत्नं भर्तुबहुमतमिति तर्कयामि । तस्य दर्शनेन भर्तुरभिमतो जनः स्मारित मुहूर्तक प्रकृतिगम्भीरोऽपि पर्यश्रुनयन आसीत् । सूचकः - सेवितं नामावुत्तेन । जानुकः - ननु भण । अस्य कृते मात्स्यिकभर्तुरिति । ( इति पुरुषमसूयया पश्यति ) पुरुषः - भट्टारक ! इतोऽय युष्माकं सुमनोमूल्यं भवतु । जानुक : - एतावद्युज्यते । श्यालः - धीवर ! महत्तरस्त्वं प्रियवयस्क इदानी मे संवृत्तः । कादम्बरी साक्षिकमरमाकं प्रथमसोह्रदमिष्यते । तच्छौण्डिकापणमेव गच्छामः । ( इति निष्क्रान्ताः सर्वे ) इति प्रवेशकः । हिन्दी अनुवाद : ( तदनन्तर शहर कोतवाल राजश्यालक तथा बैंधे हुए एक पुरुष को लेकर दो आरक्षी प्रवेश करते है । ) दोनों आरक्षी - अरे चोर ! बता , रत्नयुक्त , राजनामाङ्कित यह राजकीय अँगूठी तुमने कहाँ से हथिया ली ?
पुरुष - ( भय का अभिनय करते हुए ) महाशय प्रसन्न हो । ऐसा कार्य करने वाला नहीं है । प्रथम आरक्षी - क्या सुन्दर ब्राह्मण हो यह समझकर राजा के द्वारा दान दिया गया है ? पुरुष - मेरी बात तो सुनिए । मैं शक्रावतार ( तीर्थ ) में रहने वाला माछुआरा हूँ । द्वितीय आरक्षी - चोर क्या हमारे द्वारा जाति पूछी गयी है ? कोतवाल - सूचक इसे क्रम से सब कुछ बताने दो । इसे बीच में मत टोको । दोनों आरक्षी - जैसी महानुभाव की आज्ञा । अरे बोल । पुरुष - मैं जाल , कॉटा ( बडिश ) आदि मछली पकड़ने के साधनों से अपने परिवार का पालन - पोषण करता हूँ । कोतवाल - हिंसकर ) निश्चय ही तुम्हारी आजीविका बहुत पवित्र है । पुरुष - स्वामी , ऐसा मत कहिए । विनिन्दित भी स्वाभाविक ( जातिगत ) कर्म का परित्याग कभी नहीं करना चाहिए , क्योंकि अनुकम्पा के कारण सुकुमार वेदपाठी बाहाण ही यज्ञीय पशुमारण कर्म में कठोर बनता है । । १ । । कोतवाल - फिर क्या हुआ ? पुरुष - एक दिन जब मैं रोहू मछली को टुकड़े - टुकड़े में काट रहा था तब उसके पेट के भीतर , रन के कारण , चमकती हुई अंगूठी मैंने देखी । इसके बाद इसको बेचने के लिए दिखाता हुआ मैं आप लोगों के द्वारा पकड़ लिया गया । मारिये अथवा छोडिये । यही इसकी प्राप्ति की कथा है । कोतवाल - जानुक कचे मास की गन्धवाला एवं गोह खाने वाला यह , निश्चित रूप से मछुआरा ही है । इसको अँगूठी कैसे दिखी , इसका अनुसन्धान करना चाहिए । राजदरबार मे ही चलते है । दोनों आरक्षी - ठीक है । अरे गिरहकट ! आओ । ( सभी घूमते है ) कोतवाल - सूचका सावधानी से तुम दोनों नगर के मुख्य द्वार पर इसकी निगरानी करो । तब तक मैं महाराज को इस अंगूठी की प्राप्ति का विवरण देकर , उनका आदेश लेकर निकलता हूँ ।
दोनों आरक्षी - आप , स्वामी को प्रसन्न करने के लिए प्रवेश करिये । ( इस प्रकार कोतवाल निकल गया ) प्रथम आरक्षी - जानुका श्रीमान् कोतवाल देर कर रहे हैं । द्वितीय आरक्षी - अरे ! राजाओं के पास उचित अवसर पर ही जाया जाता है । प्रथम आरक्षी - जानुक ! इसके वध के लिए फूलों ( की माला ) को पहनाने के लिए मेरे हाथ फड़क रहे हैं । पुरुष - आप , अकारण मुझे नहीं मार सकते । द्वितीय आरक्षी - ( देखकर ) यह हमारे स्वामी , कुछ कागजात हाथ में लिए हुए . राजाज्ञा को लेकर , इधर मुखातिब दिखायी पड़ रहे हा तू या तो गिद्धों की बलि बनेगा या कुत्तों का मुख देखेगा । ( प्रवेश कर ) कोतवाल - सूचका इस मछुआरे को छोड़ दो । इस अंगूठी की प्राप्ति का समाधान हो गया है । सूचक - श्रीमान् जी का जैसा आदेश । यह यमराज के घर में प्रवेश कर ( वहाँ से ) लौट आया है । ( इस प्रकार मछुआरे को बन्धन से मुक्त करता है । ) पुरुष - ( कोतवाल को प्रणाम कर ) स्वामी , अब बताइये मेरी आजीविका कैसी है ? कोतवाल - महाराज ने अंगूठी के मूल्य के बराबर यह पारितोषिक भी इसे दिलवाया है । ( यह कह कर मछुआरे को धन देता है ) पुरुष - ( प्रणाम पूर्वक लेकर ) स्वामी मैं अनुगृहीत हूँ । सूचक - यही राजकीय कृपा है कि शूली से उतार कर यह , हाथी की पीठ पर बैठा दिया गया । जानुक - श्रीमान् पारितोषिक से यह सूचित होता है कि वह अंगूठी महराज को विशेष प्रिय रही होगी । कोतवाल - मैं समझता हूँ उस अंगूठी में खचित बहुमूल्य रत्न के कारण वह महाराज को प्रिय नहीं थी , अपितु उसके देखने से महाराज को किसी विशेष प्रिय स्वजन की याद आ गयी । प्रकृत्या गम्भीर होने पर भी क्षण भर के लिए उनकी आँखों में आँसू छलछला आए ।
सूचक - तब तो आपने महाराज की अच्छी सेवा की । जानुक - अरे ! कहो - इस मछुआरे के कारण ( सेवा हुई है । ) मछुआरे को ईर्ष्या से देखता है ) पुरुष - इस पारितोषिक का आधा तुम्हारा सुमनोमूल्य ( रक्तपुष्प मूल्य तथा सुहृन्मूल्य ) हो । जानुक - इतना ठीक है । कोतवाल - मछुआरे ! इस समय तुम मेरे सर्वाधिक प्रियमित्र हो गये हो । हमारी पहली मित्रता का प्रकाशन मदिरा को साक्षी बनाकर होना चाहिए । अतः मदिरालय की ओर ही चलें । ( इस प्रकार सब निकल जाते है )
कर्पूरमंजरी
कर्पूरमञ्जरी ( तृतीयोऽङ्गः ) ( ततः प्रविशति राजा विदूषकश्श ) राजा - ( तामनुसन्धाय ) दूरे किज्जदु चम्पअस्स कलिआ कज्ज हलिद्दीअ किं ओल्लोलाइ वि कञ्चणेण गणणा का णाम जच्चेण वि । लावण्णस्स णउग्गदिन्दुमहुरच्छाअस्स तिस्सा पुरो पच्छगेहि - वि केसरस्स कुसुमुक्केरेहिं किं कारणं । । १ । । अवि अ मरगअमणिगुच्छा हारलट्ठि व्य तारा भमरकवलिअद्धा मालईमालिअव्व । रहसवलिअकण्ठी तीअ दिट्ठी वरिष्ठा सवणपहणिविट्ठा माणसं मे पइहा । । २ । । विदूषकः - भो वअस्स ! किं तुवं भज्जाजिदो पइव्व किंपि किंपि कुरकुराअन्तो चिट्ठसि । राजा - वअस्स ! पिअं सुविण दिटुं । तं अणुसन्दधामि । विदूषकः - ता कीदिसं तं कधेदु पिअवअस्सो । राजा - जाणे पङ्करुहाणणा सुविणए मं केलिसज्जागर्द कन्दोट्टेण तडत्ति ताडिदुमणा हत्थन्तरे संठिदा । ता कोड्डेन मए वि झत्ति गहिदा ढिल्लं वरिलञ्चले । तं मोत्तूण गदं च तीअ सहसा णडा ख णिद्दा वि मे । । ३ । । विदूषकः - ( स्वगतम् ) भोदु एवं दाय । ( प्रकाश ) भो वअस्स अज मए वि सुविणअं दि8 । । राजा - ( सप्रत्याशम ) ता कहिजदु कीदिसं तं सुविणअं । विदूषकः - अज सुविणए सुरसरिसोत्ते सुत्तोम्हि । राजा - तदो तदो । - ता हरसिरोवरि दिण्णलीलावआए गङ्गाए पक्खालिदोम्हि तोएण ।
राजा - तदो तदो । विषकः - तदो सरअसमअवरिसिणा जलहरेण जहिच्छ पीदोम्हि । राजा - अच्छरिअं अच्छरिअं । तदो तदो । विदूषकः - तदो चित्ताणक्खत्तगदे भअयदि मत्तण्डे तम्बवण्णीणदीसंगमे समुदं गदो सो महामेहो । जाणे अहं . पि तस्स गम्भविदो गच्छामि । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तदो तहिं सो थूलजलबिन्दूहि वरिसितुं पअट्टो । अहं च रअणाअरसुत्तिहिं मुत्तासुत्तिआणामधेआहिं समुप्फाडिअ जलबिन्दूहि पीदो । ताणं च दसमासप्पमाणो मुक्ताहलो भविअ गम्भे संठिदो । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तदो चउस्सट्टिसु सुत्तिसु विदो घणम्युविन्दू जिदवंसरोअणो । सुवत्तुलं णिच्चलमच्छमुज्जलं कमेण पत्तो णवमोत्तिअत्तणं । । ४ । । तदो सो हं अत्ताणं ताणं गभगदं मुत्ताहलत्तणेण मण्णेमि । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तदो परिणदि काले समुद्दाओ कब्जिदाओ ताओ सुत्तिओ फाडिदाओ । अहं चउस्सट्टिमुत्ताहलत्तणं गदो ठिदो । कीदो च एक्केण सेट्टिणा सुवण्णलक्खं देइ । राजा - अहो विचित्तदा सुविणअस्स । तदो तदो । विदूषकः - तदो तेण आणिअ वेअडिअं विद्धाविदा मोत्तिआ । ममवि ईसीसि वेअणा समुप्पण्णा । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तेणं च मुत्ताहलमण्डलेणं एक्कक्कादाए दसमासिएणं । एकावली लट्टिकमेण गुच्छा सा संठिदा कोडिसुवष्णमुच । । ५ । । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तदो तां करण्डिआए कटुअ साअरदत्तो गदो पञ्चालाहिवस्स सिरिवजाउहस्स णअरं कण्णउज्जं . णाम । तदो सा विक्लीणीदा कोडीए सुवण्णस्स । राजा - तदो तदो । विदूषकः - तदो ।
दटूण थोरत्थणतुङिमाणं , एकावलीए तह चड्रिमाणं । सा तेण दिण्णा दइआए कण्ठे रजन्ति छेआ समसंगमणि मसंगमम्मि । । अवि अ णहवहलिदजोण्हाणिभरे रच्चिमज्डो । कुसुमसरपहारत्ताससंमीलिदाणं । णिहुवणपरिरम्भे णिभरुत्तुङ्गपीण त्थणकलसणिवेसा पीडिदो हं विबुद्धो । ७ । । राजा - - ( किशिद् विहस्य विचिन्त्य ) सुविणअमेणमसच्चं तं दिवं मेणुसन्धमाणस्स । पडिसुविणएण तस्स विणिवारणं तुह अभिप्पाओ । । ८ । । संस्कृतच्छायाः राजा - ( तामनुसन्धाय ) दूरे क्रियतां चम्पकस्य कलिका कार्य हरिद्रया किम् आाणापि काशनेन गणना का नाम जात्येनापि । लावण्यस्य नवोद्गतेन्दुमधुरच्छायस्य तस्या पुरः , प्रत्यरपि केसरस्य कुसुमोत्करैः किं कारणम् । । १ । । अपि च मरकतमणिगुच्छा हारयष्टिरिव तारा अमरकवलितार्धा मालतीमालिकेव । रभसवलितकण्ठी तस्या दृष्टिवरिष्ठा श्रवणपथनिविष्टा मानसं में प्रविष्टा । २ । । विदूषकः - भो वयस्य ! किं त्वं भार्याजितः पतिरिव किमपि किमपि कुरकुरायमाणस्तिष्ठसि । राज्य - ययस्या प्रियः स्वप्नको दृष्टः । तमनुसन्दधामि । विदूषकः - स कीदृशः ? तं कथयतु प्रियवयस्यः । राजा - जाने पळूरुहानना मां स्वप्नके केलिशय्यागतम् , नीलकमलेन तडिति ताडितुमना हस्तान्तरे संस्थिता । तत्कौतुकेन मयापि झटिति गृहीता शिथिलं बराचले . तन्मोचयित्वा गतशतया सहसा खलु नष्टा निदापि मे । । ३ । ।
विदूषकः - ( स्वगतम् ) भवत्वेवं तावत् ( प्रकाश ) भो वयस्य ! अद्य मयापि स्वप्नको दृष्टः । राजा - ( सप्रत्याशम् ) तत्कथ्यता कीदृशः स स्वप्नक । विदूषकः - अद्य स्वप्नके सुरसरित्सोतसि सुप्तोऽस्मि । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - तद्धरशिरउपरि दत्तलीलावत्या गङ्गायाः प्रक्षालितोऽस्मि तोयेन । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - ततः शरत्समयवर्षिणा जलधरेण यथेच्छ पीतोऽस्मि । राजा - आश्चर्यमाश्चर्यम् । ततस्ततः । विदूषकः - ततश्चित्रानक्षत्रगते भगवति मार्तण्डे ताम्रवर्णीनदीसङ्गमे समुद्रं गतः स महामेघः । जानेऽहमपि तस्य गर्भस्थितो गच्छामि । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - ततस्तस्मिन स स्थूलजलबिन्दुभिर्वर्षितं प्रवृत्तः । अहं च रत्नाकरशुक्तिभिर्मुक्ताशुक्तिकानामधेयाभिः समुत्फाट्य जलबिन्दुभिः पीतः । तासाञ्च दशमासप्रमाण मुक्ताफलं भूत्वा गर्ने संस्थितः । राजा - ततस्ततः । । विदूषकः - ततश्चतुष्पष्टिषु शुक्तिषु स्थितो धनाम्बुबिन्दुर्जितवंशलोचन । सुवर्तुल निश्चलमच्छमुज्ज्वलं क्रमेण प्राप्तो नवमौक्तिकत्वम् । । ४ । । ततः सोऽहमात्मानं तासां गर्भगत मुक्ताफलत्वेन मन्ये । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - ततः परिणतिकाले समुद्रात कर्षितास्ता शुक्तयः स्फाटिताः । अहं चतुषष्टिमुक्ताफलत्वं गतः स्थितः । क्रीतश्चैकेन श्रेष्ठिना सुवर्णलक्षं दत्त्वा । राजा - अहो ! विचित्रता स्वप्नकस्य । ततस्ततः । विदूषकः - ततस्तेनानीय वैकटिकेन वेधितानि मौक्तिकानि । ममापीषदीषवेदना समुत्पन्ना । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - तेन च मुक्ताफलमण्डलेन एकैकतया दसमासिकेन । एकावली यष्टिक्रमेण गुम्फिता सा संस्थिता कोटिसुवर्णमूल्या । । ५ । । राजा - तस्तततः ।
सागरदत्तो गतः 2921 / पालिपाइअवीमसा विदूषकः - ततस्ता करण्डिकायां कृत्वा सागरदत्तो पाशालाधिपस्य श्रीवजायुधस्य नगरं कान्यकुब्ज नाम । ततः साल कोट्या सुवर्णस्य । राजा - ततस्ततः । विदूषकः - ततश्च दृष्ट्वा स्थूलस्तनतुङ्गिमानं एकावल्यास्तथा सौन्दर्यम् । सा तेन दत्ता दयितायाः कण्ठे , रज्यन्ति छेकाः समसङ्गमे । । ६ । । अपि च नभोबहलितज्योत्स्नानिर्भरे रात्रिमध्ये , कुसुमशरप्रहारत्रासम्मीलितयोः । निधुवनपरिरम्भे निर्भरोत्तुङ्गपीन स्तनकलशनिवेशात पीडितोऽहं विबुद्धः । ७ । । राजा - ( किञ्चिद विहस्य विचिन्त्य ) स्वप्नक एष असत्यः स दृष्टो मेऽनुसन्दधानस्य । प्रतिस्वप्नकेन तस्य विनिवारणं तवाभिप्रायः । । ८ । । हिन्दी अनुवाद : ( तब राजा एवं विदूषक प्रवेश करते हैं ) राजा - ( उसका ध्यान कर ) चम्पक की कली को दूर हटाओ , हल्दी से भी क्या प्रयोजन ? ( तपाकर ) तरल हुए उत्तम जातिवाले सुवर्ण की भी क्या गणना ? सद्य उदित चन्द्रमा के समान मधुर कान्तिवाले उसके लावण्य के सामने , ताजे बकुल पुष्पों की राशियों का भी क्या प्रयोजन ? 1911 और भी , मरकत मणि से गुम्फित हारयष्टि की भाँति , भ्रमरों के द्वारा कवलित आधे भागवाली , मालती की माला के समान , वेगपूर्वक लोगों के कण्ठ को मोड़ने वाली , उसकी श्रेष्ठ दृष्टि श्रवणमार्ग से अन्दर आती हुई मेरे चित्त में प्रविष्ट हो गयी है । । २ । । विदूषक - अरे मित्र ! पत्नी के द्वारा जीते गये पति के समान तुम कुछ न कुछ क्या बड़बड़ाए जा रहे हो ? राजा - मित्र मैने प्रिय स्वप्न देखा है । उसी का ध्यान कर रहा हूँ । विदूषक - वह स्वप्न कैसा है ? उसको बताइये प्रियवयस्य !
राजा - मुझे ज्ञात हुआ कि स्वप्न में केलिशय्या में लेटे हुए मुझको नीलकमल से तड़ से मारने की इच्छावाली वह , एक हाथ भर के अन्तर पर खड़ी हो गयी । तब औत्सुक्यवशात् मैंने भी उसके श्रेष्ठ आँचल को शिथिलता के साथ पकड़ लिया । उसे छुड़ाकर वह चली गयी और सहसा मेरी नींद भी खुल गयी । । ३ । । विदूषक - ( अपने मन में ) अच्छा ऐसा है । ( प्रकट में ) मित्र आज मेरे द्वारा भी स्वप्न देखा गया है । राजा - ( प्रत्याशा के साथ ) तो कहो , वह स्वप्न कैसा था ? विदूषक - आज मैं स्वप्न में गङ्गा नदी के प्रवाह में सो रहा था । राजा - इसके अनन्तर क्या हुआ ? विदूषक - तब शिव के शिर के ऊपर क्रीडा करने वाली गङ्गा के जल से धोया गया । राजा - फिर क्या हुआ ? विदूषक - तब शरत्काल में बरसने वाले मेघ के द्वारा इच्छानुसार पी लिया गया । राजा - आश्चर्य है ! आश्चर्य है ! फिर क्या हुआ ? विदूषक - इसके बाद भगवान सूर्य के चित्रा नक्षत्र में जाने पर वह महामेघ , ताम्रपणी नदी के संगम पर समुद्र में गया । मझे लगा मैं भी उसके गर्भ में ही जा रहा हूँ । राजा - फिर ? विदूषक - फिर वह महामेघ , वहीं पर पानी की बड़ी - बड़ी बूंदों से बरसने लगा और मैं मुक्ताशुक्ति नाम की समुद्री सीपियों के द्वारा मुँह फाड़कर जल की बूंदों के साथ पी लिया गया और दस माह बड़ा मुक्ताफल बनकर उनके गर्भ में पड़ा रहा । राजा - फिर क्या हुआ ? विदूषक - तदनन्तर , चौंसठ शुक्तियों में जल की बड़ी बड़ी बूंदों के रूप में स्थित एवं वंशलोचन की आभा को जीतने वाला मैं , क्रमशः सुन्दर , गोलाकार , स्थिर , स्वच्छ एवं उज्वल नवीन मोती बन गया । तब से मैं अपने आप को उनके गर्भ में स्थित मुक्ता फल के रूप में मानता हूँ । । ४ । । राजा - फिर क्या हुआ ?
PM विषक - तब समय बीतने पर समुद्र से निकाली गयी शक्तियां फाडी गयी । 4 चौसठ मुक्ताफली के रूप में स्थित हो गया और एक यावसायी को द्वारा एक लाख सुवर्ण मुद्राएँ देकर खरीद लिया गया । " राजा - अहो ' विचित्र स्वप्न है । फिर क्या हुआ ? विदूषक तदनन्तर व्यापारीने मोतियों को लाकर रल काटने वाले जौहरी के द्वारा उन्हें विधवा दिया । मेरे मी थोडी थोडी वेदना हो रही थी । राजा - फिर क्या हुआ ? विदूषक - दस मास में परिणत होने वाले उन एक - एक मुक्ता फलों से लड़ी पिरोकर थीं गयी एक करोड़ सुवर्ण मुद्राओं की बहुमूल्य एकावली निर्मित हुई । । ५ । । राजा - तब क्या हुआ ? विदूषक - फिर उस एकावली को पिटारी में रखकर सागरदत्त , पाशाल नरेश श्री बजायुध के कान्यकुब्ज नामक नगर में गया । तदनन्तर वहाँ वह एक करोड सुवर्ण मुद्राओं में ले बेच दी गयी । राजा - फिर क्या हुआ ? विदूषक - तदनन्तर राजा ने , अपनी पत्नी के पीन स्तनों की उच्चता एवं एकावली के उस प्रकार के सौन्दर्य को देखकर उसे प्रियतमा के गले में डाल दिया । विदग्धजन समान वस्तुओं के मिलने पर प्रसन्न होते हैं । । ६ । । और भी , आकाश में फैली हुई चाँदनी से परिपूर्ण आधी रात को कामदेव के प्रहार के भय से मुदे हुए नेत्रोंवाले दोनों के सुरतक्रीडा के आलिङ्गन के समय अत्यन्त उन्नत , पीन , स्तनकलश के रख देने से पीडित हुआ में जग गया । ७ । । राजा - ( कुछ हैसकर , सोचकर ) यह स्वप्न असत्य है , मेरे ध्यान करते समय तुमने इसे देख लिया है । इस प्रतिस्थान के द्वारा उसका निवारण ही तुम्हारा प्रयोजन है । ell