'भगवान के लिए मुझे छोड़ दो' गिड़गिड़ाते हुए कहती है - काशी
बूढ़ी महिला- अरी कुल्टा! भगवान की दुहाई दे रही है और भगवान के ही धर्म को भ्रष्ट करने पर तुली है.----
कुछ चलावेदार लोग- पकड़ लो इसके हाथ-पैर और कर दो इसका मुंडन।
कि तभी आवाज़ आती है 'ठहरो , न चाहते हुए भी क्योँ करना चाहते हो उसका मुण्डन'
एक वृद्ध ब्राह्मण- रे विधर्मिन! हमारे धार्मिक कर्मकांड में टांग अड़ाने की जरूरत नहीं है चल भाग यहाँ से नहीं तो-----
सावित्रीबाई- अरे पाखण्डियों! क्या यही है तुम्हारा 'यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता।'
यह भी तो ब्राह्मणी ही है।
बन्द करो नारी जाति का अपमान । जीने दो उसे भी मान के साथ।
और नाई भाईयों 'तुम कब खोलोगे अपनी अकल का ताला' फटकारती हुई।
कुछ खुसुरफुसुर के बाद
नाई मुण्डन करने से मना करते हुए सावित्रीबाई फुले तुमने तो हमारी आखें खोल दीं, अब हम लोग विधवाओं के मुण्डन की दुष्ट परम्परा में सहायक नहीं होंगे ।
कुछ दिनों के बाद
मैली- कुचैली सफेद साड़ी में मुण्डित सिर, सूखी देह वाली एक स्त्री आत्महत्या करने का प्रयास करती हुई ।
तभी आवाज़ आती है अरी! क्या करने जा रही हो! रुको ।
मुझे मर जाने दो, कैसे जीऊं इस कलंक को ढोते हुए, आर्त स्वर में कहती है काशी ।
कौन सा कलंक? पूछती है सावित्री ।
यही जो पेट में पनप रहा है । पति की मौत के बाद लाद दिया है डराकर उनके अपनों ने और कलंकिनी कह कर निकाल दिया है मुझे घर से भी - कहती है काशी ।
लड़ती क्यों नहीं तू इन अत्याचारियों से और इनके अत्याचारी ढकोसलों से - सावित्रीबाई ।
मुझ अबला के वश की बात कहाँ? - काशी ।
सावित्री बाई- चलो मेरे साथ ।
ले जाती है उसे अपने विधवा आश्रम ।
कुछ दिन बाद
सावित्रीबाई- काशी! बेटा हुआ है ।
रोते हुए कशी- कैसे पालूंगी इसे इस समाज में और कैसे जियेगा यह भी तानों को सुनते हुए ।
सावित्रीबाई- कैसे पालोगी! अरे! यह तेरा ही नहीं हमारा भी बेटा है यह।
कशी जोर-जोर से रोने लगती है ।
सावित्री बाई पति ज्योति राव के पास जाकर
अजी सुनते हो!
ज्योति राव- हुं ।
सावित्रीबाई- काशी का बेटा ही आज से हमारा बेटा होगा।
हम अब और संतान पैदा नहीं करेंगे ।
ज्योति राव- ठीक है । आज से हमारे बेटे का नाम होगा- यशवंतराव ।
समय बीतता है । यशवंतराव पढ़ लिखकर डाॅक्टर बन जाता है ।
और एक दिन
सावित्रीबाई ज्योति राव के स्वर में स्वर मिलाते हुए- बेटा यह घर-द्वार तुम्ही संभालो। हमें समाज के लिए ही जीने दो।
यशवंतराव- ठीक है मां-बापू, आप की खुशी में ही मेरी खुशी है ।
सावित्रीबाई एक दिन प्लैग के रोगियों की सेवा करते हुए अपना जीवन पूर्ण कर लेती हैं
डाॅ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग , डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र ।
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