आजादी तो हमको भीम ने दी है
पण्डों ने दी है न पुरोहितों दी है,
देवों ने दी है न प्रेतों ने दी है,
आजादी तो हमको भीम ने दी है।
मंदिरों में दौड़े मजारों में भी दौड़े,
धूप है जलाई, नारियल हैं फोड़े
चढावा चढ़ाकर इज्ज़त न मिली है ।
देवों ने दी,,,
कंधो पे पालकी हमने है ढोई,
शरण पड़े और जूठन है खाई,
भूख से फिर भी निजात न मिली है।
देवों ने दी,,,
रहने को घर न तन पे पट था,
चलने को राह न खेती को खेत था,
कुएं से पानी लिया तो मार पड़ी है ।
देवों ने दी,,,
पैरों में जूते न सर पर पगड़ी,
न रख पाते मूंछ न नये कपड़े,
गुलामी से हमको राहत न मिली है ।
देवों ने दी,,,
विवाहों में वारूद न बाजे बजे हैं,
दुल्हन हमारी न पालकी चढ़ी है,
दूल्हे को कभी भी न घोड़ी मिली है।
देवों ने दी,,,
बचपन हमारा परये खेतों में बीता,
ज़वानी भी हमने गुलामी में खपाई,
स्कूलों में हमको न शिक्षा मिली है।
देवों ने दी,,,
शिक्षा के अभाव में हिम्मत न पाई,
हिम्मत के बिना हम एक न हुए हैं,
एक न हुए तो आजादी न मिली है ।
देवों ने दी,,,
बुद्ध की राह बाबा ने पायी,
कष्ट सहे और शिक्षा है पायी,
अपमान पीकर लड़ाई लड़ी है ।
देवों ने दी,,,
ग्रंथ पढ़े फिर विधान बनाया,
विधान बनाकर देश बचाया,
अधिकारों की नीव पड़ी है ।
देवों ने दी है न प्रेतों ने दी है,
आजादी तो हमको भीम ने दी है ।
लेखक
डाॅ रामहेत गौतम
सहायक प्राध्यापक, डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र ।
No comments:
Post a Comment