Friday, 25 January 2019

आजादी तो हमको भीम ने दी है ।



आजादी तो हमको भीम ने दी है 

पण्डों ने दी है न पुरोहितों दी है, 

देवों ने दी है न प्रेतों ने दी है, 

आजादी तो हमको भीम ने दी है।

मंदिरों में दौड़े मजारों में भी दौड़े,

धूप है जलाई, नारियल हैं फोड़े

चढावा चढ़ाकर इज्ज़त न मिली है ।

                                  देवों ने दी,,,

कंधो पे पालकी हमने है ढोई, 

शरण पड़े और जूठन है खाई, 

भूख से फिर भी निजात न मिली है।

                                  देवों ने दी,,,

रहने को घर न तन पे पट था,

चलने को राह न खेती को खेत था,

कुएं से पानी लिया तो मार पड़ी है ।

                                  देवों ने दी,,,

पैरों में जूते न सर पर पगड़ी, 

न रख पाते मूंछ न नये कपड़े, 

गुलामी से हमको राहत न मिली है ।

                                  देवों ने दी,,,

विवाहों में वारूद न बाजे बजे हैं,

दुल्हन हमारी न पालकी चढ़ी है, 

दूल्हे को कभी भी न घोड़ी मिली है।

                                  देवों ने दी,,,

बचपन हमारा परये खेतों में बीता, 

ज़वानी भी हमने गुलामी में खपाई,

स्कूलों में हमको न शिक्षा मिली है।

                                 देवों ने दी,,,

शिक्षा के अभाव में हिम्मत न पाई,

हिम्मत के बिना हम एक न हुए हैं,

एक न हुए तो आजादी न मिली है ।

                                  देवों ने दी,,,

बुद्ध की राह बाबा ने पायी,

कष्ट सहे और शिक्षा है पायी,

अपमान पीकर लड़ाई लड़ी है ।

                                  देवों ने दी,,,

ग्रंथ पढ़े फिर विधान बनाया,

विधान बनाकर देश बचाया, 

अधिकारों की नीव पड़ी है । 


देवों ने दी है न प्रेतों ने दी है, 

आजादी तो हमको भीम ने दी है ।

लेखक

डाॅ रामहेत गौतम

सहायक प्राध्यापक, डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र ।

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