ऐसा हो महागठबंधन
लोकहिताय हो जनबंधन
लोकमत का नित सद् मंथन
फण पूंछ का न हो कोई बंधन
मथना है समुद्र
निकलेंगे रत्न कई
और विश भी
बटेंगे सभी बराबरी से
सबमें सबका हक़ होगा
अमृत सबको
सबको बिष भी लेना होगा
न होगी कोई कुटिलता अब
वितरण भी समता से होगा
न रुंधेगा गला किसी का
न ही अब गलों का कर्तन होगा
न पियेगा सुरा कोई
न अब स्त्री नर्तन होगा
आओ करें महागठबंधन हम
लोकहित लोकतंत्र संबोधन होगा ।
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