Saturday, 5 January 2019

जूट का बोरा

मैं किसान हूँ
उगाता हूँ रेशम
तुम्हारे लिए
तुम्हारे चमकीले वस्त्रों के लिए
तुम्हारी चमड़ी जो नाजुक है
खरोच न आये
वदन पर तुम्हारे
लालिमा धरने का हक़ जो है उसे
महंगे लेपों से सींचते हो उसे
खयाल रखो
अपनी खाल का
बाल का
और रेशमी डाॅगी का भी
मेरी फ़िक्र तुम क्यों करो
मुझे भी तो नहीं है
फ़िक्र अपनी
अपनी औलाद की
पत्नी के अरमानों की
बेटे की ख्वाहिश की
बेटी के मान की
पिता की घुटान की
मां के अरमान की
मुझे कहाँ आता है
सूट-बूट में अकड़ना
सूट मेरा,
मेरे बैलों का
मेरी गाय का
मेरे शेरू का
बिछौना यही
ओड़न यही
जूट का बोरा ही है ।
यह मेरा अपना है
छलकती है
इसी में शान मेरी
और मेरे खेत की।

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