Saturday, 22 February 2020

त्रिपिटक

तिपिटक परिचय सुत्त - पिटक ( 19 ग्रंथ ) . . . ( 1 ) दीध - निकाय ( 3 ) संयुक्त - निकाय ( 2 ) मज्झिम - निकाय ( 4 ) अंगुत्तर - निकाय - खुदक - निकाय ( 15 ग्रंथ ) खुद्दकपाठ धम्मपद उदान इतिवृत्तक सुत्त - निपात ( 5 ) विमान - वत्थु ( 6 ) पेतवत्थु ( 7 ) थेर - गाथा ( 8 ) थेरी - गाथा ( 9 ) जातक ( 10 ) निदेस पटिसम्मिदा अपदान बुद्धवंस चरिया - पिटक ( 11 ) ( 12 ) ( 13 ) ( 14 ) ( 15 ) ' सुत्त - पिटक ' तिपिटक का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है । इसमें भगवान बुद्ध के सभी सुत्त ( उपदेश ) संग्रहित किए गए हैं । भगवान ने अपने मुख से जो - जो उपदेश दिए , अपने जीवन और अनुभवों के विषय में उन्होंने जो - जो कहा , जिन - जिन व्यक्तियों से उनका या उनके शिष्यों का संपर्क या संलाप हुआ , जिन - जिन प्रदेशों में उन्होंने भ्रमण ( चारिका ) किया . संक्षेप में बुद्धत्व - प्राप्ति से लेकर निर्वाण - प्राप्ति तक के अपने 45 वर्षों में भगवान की जो - जो भी जीवन - चर्या रही , उसी का यथावत चित्रण हमें ' सुत्त - पिटक ' में मिलता है । यह छठी और पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत के ऐतिहासिक . सामाजिक और भौगोलिक ज्ञान का अपूर्व भंडार है । यह पांच भागों में विभक्त है और तिपिटक का सबसे बड़ा ' पिटक ' है । यहां सुत्त - पिटक ' के प्रत्येक ग्रंथ का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है ।तिपिटक - परिचय विनय पिटक ( 6 im ) पातिमोक्ख - विभंग ( 1 ) भिक्षु - विभंग ( 2 ) भिक्खुनी - विभंग ( 3 ) महावग्ग ( 4 ) चुल्लवग्ग ( 5 ) परिवार बौद्ध - विद्वानों ने विनय - पिटक ' को भिक्षुसंघ का संविधान बताया है । बौद्ध धर्म की परंपरा में इसका स्थान अत्यंत ऊंचा है । भगवान बुद्ध जब तक जीवित रहे , तब तक उनके व्यक्तित्व और संपर्क से उनके अनुयायियों को सम्यक - प्रेरणा मिलती रही थी । उनके परिनिर्वाण के बाद तो विनय - पिटक ' संघ की एकता , पवित्रता और अनुशासन का एक मात्र मापदंड बन गया । इसलिए आज तक भिक्खुसंघ में इसका स्थान आदर और गौरव का बना हुआ है । विनय पिटक ' को बुद्ध शासन भी कहा गया । क्योंकि जब तक विनय ' संबंधी नियमों का अभ्यास होता रहेगा . बौद्ध धर्म चिरस्थायी बना रहेगा । बौद्ध धर्म में ' विनय - पिटक ' की महिमा इसी कारण से सुरक्षित बनी हुई है । संक्षेप में इसे भिक्खु - भिक्षुणियों का आचार - शास्त्र भी कह सकते हैं । ( क ) भिक्खु - विभंग पातिमोक्ख ( प्रतिमोक्ष ) का अर्थ है , दुष्कर्मों से मुक्ति प्न जाना । इस प्रथ में भिक्खुओं के 227 शिक्षापदों की व्याख्या की गई है । शिक्षापद मिक्युओं के विनय - संबंधी नियमों को कहते हैं । इन नियमों को यहां आठ वर्गों में विभक्त किया गया है या दिव्यशक्ति का दावा । राजिक - 0 ) मैथुन . ( 1 ) चोरी , ( II ) मनुष्य - हत्या और ( IV ) सिद्धि सात का दावा । ये चार पाराजिक है । इन चार दोषों के कारण श्रामन्य - फल के उद्देश्य की प्राप्ति नहीं होती । इनके दंड स्वरूप

तिपिटक - परिचय 139 पालि - तिपिटक के अंतर्गत अभिधम्म - पिटक का स्थान तीसरा है । पिटक में बुद्ध - वचन के तत्व - दर्शन की व्याख्या की गई है । अभिधम्म - पिटक के निम्नलिखित ग्रंथ हैं ( क ) धम्मसंगणि , ( ख ) विभंग , ( ग ) धातुकथा , ( घ ) पुग्गलपति , ( ङ ) कथावत्थु , ( च ) यमक , और ( छ ) पट्ठान । अभिधम्म ' में दो शब्द है - अभि और धम्म । अभि का अर्थ है विशेष अथवा उच्चतर । इस प्रकार अभिधम्म का अर्थ हुआ - विशेष अथवा उच्चतर धर्म । भगवान बुद्ध के धर्मोपदेश जिस प्रकार विनय - पिटक में ' संयत - रूप ' में है , सुत्त - पिटक में ' उपदेश - रूप ' में हैं , उसी प्रकार अभिधम्म - पिटक में तत्व - रूप में हैं । वैसे तीनों पिटकों में भगवान बुद्ध के धर्मोपदेश ही मिलते हैं । विषयों के अनुरूप इन्हें अलग - अलग पिटकों में रखा गया है । केवल शैली की दृष्टि से इनमें विभिन्नताएं हैं । अभिधम्म - पिटक में भगवान बुद्ध की ' परमार्थ - देशनाओं को संकलित किया गया है । यह बौद्ध दर्शन का एक विशेष भाग है , जो साधकों को अधिक गहराई तक ले जाता है । इसलिए बौद्ध दर्शनशास्त्र को अभिधम्म - दर्शनशास्त्र भी कहते हैं । ऐसी मान्यता है कि अभिधम्म का उपदेश सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने अपनी माता देवी महामाया को त्रायस्त्रिंश - लोक में दिया था । तथागत के शिष्यों में धर्म सेनापति सारिपुत्र को अभिधम्म का प्रमुख ज्ञाता माना जाता है । उन्हें धम्म कथिक ' भिक्खु के रूप में भगवान बुद्ध के समय ही मान्यता मिल चुकी थी । विनय पिटक और सुत्त - पिटक की भांति अभिधम्म - पिटक को थेरवादी ( स्थविरवादी ) बौद्ध - परंपरा में बुद्धवचन ही माना जाता है । यह धम्मसुत्तों ( धर्मसूत्रों ) का दार्शनिक रूप है । सर्वसाधारण उपासकों के लिए यह सूखे रेगिस्तान की तरह है । यह पिटक अपने आप विशाल है । वसुबंधु ( चौथी शताब्दी ) आदि बाद के दार्शनिकों ने

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