Sunday, 1 September 2019

Aaralhsan

वर्णव्यवस्था लाये वेश बटा है,
जातिव्यवस्था लाये देश बटा है।
शिक्षा पे एकाधिकार जमाये,
जन-जन में कौशल घटा है।
एकलव्यों के अंगूठे कटाये,
अभिमान में सोमनाथ लुटा है।
धन्धों में भी जाति के पहरे,
आँख मींचके किसान लुटा है।
शास्त्र थे आरक्षित मंदिर भी,
कुत्ते बिल्ली भी साथ बिठाये
सिर्फ इंसान ही गया बीता है।
कितना गिनायें हे जनद्वेशी!
आरक्षण से ही सदा पुजे हो।
मान से खाने-पीने-रहने का
सदियों में अधिकार मिला है।
फूटी कौड़ी नहीं सुहाते हम,
झूठ बोलत हो तुम हमारे हो।
द्वेष त्यागो रोटीव्यवहार करो,
प्रेम देने पर ही प्रेम मिलेगा,
यह सत्य सुजन स्वीकार करो।
Rhg

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