Monday, 9 September 2019

आरक्षण विरोधी पर चोट

औक़ात नहीं थी, दो शब्द लिखने की,
वो संविधान (आरक्षण) मिटाने की बात करते हैं।

मज़दूरी कभी दी नहीं,
हमारे घर ज़लाने की बात करते हैं।
आरक्षण नहीं था तब क्यों,
मुग़लों से मार खाई थी।
कहाँ गई थी बहादुरी,
बेटियां उनसे ब्याही थी।
हजार साल देश ग़ुलाम रहा,
अब गरीबों पे तलवार,
चलानें की बात करते हैं।
दाहिर तो बामन था,
कासिम से क्यों हार गया।
तब तो नहीं था आरक्षण,
मुसलमान फिर क्यों मार गया।
महमूद गज़नी के सौ वीर,
सोमनाथ में कहर ढाया था।
आरक्षण वाला न था कोई,
क्यों मंदिर बच न पाया था।

समझ जिनमें खुद नहीं,
औरों को समझानें की बात करतें हैं।
आरक्षण नहीं था फौज़ में,
पृथ्वीराज क्यों हार गया,
मुँह देखते रहे बहादुर,
गौरी उसको मार गया।
बाबर ने हराया सांगा को,
तब त़ो नहीं आरक्षण था।
तंतर मंतर काम न आया,
भारी पड़ा एक-एक क्षण था।

आरक्षण नहीं था,
फिर क्यों अकबर से तुम डरते थे।
क्या मज़बूरी थी बतलाओं,
क्यों उसका हुक्का भरते थे।
कुलकरणी तो बामन था,
शिवाज़ी पे तलवार चलाई थी।

आरक्षण था उस मुसलिम का
शिवाज़ी की ज़ान बचाई थी।
आरक्षण जिम्मेदार नहीं,
रोज़ रोज़ पुल टूट रहे।
एकजुट होके संविधान विरोधी,
चुपचाप देश को लूट रहे।
बामनवाद सिखाता नफ़रत,
यही तो बड़ी बीमारी है।
आरक्षण आरक्षण चिल्लाना,
मनुवाद की बात सारी है।
यें काटतें हैं गलें हमारे,
हम तो सिर्फ, गले लगानें की बात करते हैं.....
औकात नहीं थी....

कवि अज्ञात

जय भीम.... जय भारत....

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