सर्वदा मानवता के साथ रहे
सिर्फ बात यही स्वीकार हमें।
गर मानवभेद की बात करे,
तो वह वेद नहीं स्वीकार हमें।
जो जनहित की न बात करे,
वह देव भी नहीं स्वीकार हमें।
जो सर्वोत्कर्ष की न बात करे,
वो शास्त्र भी नहीं स्वीकार हमें।
जो पतित-पावन का भेद जने,
वह जन भी नहीं स्वीकार हमें।
जो नित मानववत् व्यवहार करे,
वही जन होगा सदा स्वीकार हमें।
रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक
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