Monday, 17 October 2022
ठठं
देवाधीनं जगत्सर्वं
Sunday, 16 October 2022
क्या आप संस्कृत पढ़ना जानते हैं?
Tuesday, 11 October 2022
स्वाभिमान वट
Monday, 10 October 2022
।। पत्रकोपायनं कृतम्।। नरेश बत्रा
चार्वाक
Sunday, 9 October 2022
वाल्मीकियों! उठो।
Saturday, 8 October 2022
काव्स्यात्मा स एवार्थस्तदा चादिकवे: पुरा।क्रौञ्चद्वन्द्ववियोगोत्थ:शोक:श्लोकत्वमागत:।।
Friday, 7 October 2022
अयि गिरिनन्दिनिमहिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्
Thursday, 6 October 2022
अंग्रेज कादम्बरी में भी लिख गए-मातंगजातिस्पर्शदोषभयादस्पृश्यतेयमत्पादिता प्रजापतिना
Wednesday, 5 October 2022
दशहरे का सम्बन्ध न राम से है न रावण से
दशहरा
Tuesday, 4 October 2022
दशानन
रे मनु
घोड़ा-गधा
संस्कृतस्यैव शापेन जाता दशा
उंगलियाँ उठने ही वाली थीं
Monday, 3 October 2022
मनुवादिनः
Saturday, 1 October 2022
भीमटा BHIMATA
डॉ. रामहेत गौतम,
सहायक प्राध्यापक, संस्कृत
विभाग,
डॉ. हरीसिंह गौर
विश्वविद्यालय, सागर मध्य प्रदेश।
भीमटा
‘भीमटा’ एक सम्मान जनक
शब्द है। भारतीय भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है। जैसे मराठी में
भीमटे एक उपनाम है। मेरे एक मित्र का नाम है प्रोफेसर राजकुमार भीमटे।1 मोहन के. भीमटे।2
इतना ही नहीं भारतीय भाषाओं के विकास क्रम में इस प्रकार के
शब्द देखने को मिलते हैं। जैसे- बांगला भाषा में टा और टि अथवा टी प्रयय शब्दों के
साथ जोड़े जाते हैं। डॉ. चाटुर्ज्या ने
लिखा है कि टा प्रत्यय मूलतः पुल्लिङ्ग भाव व्यक्त करता था। और किसी वस्तु का बड़ा
या अनगढ़ होना व्यक्त करता था। उसी प्रकार टि अथवा टी मूलतः स्त्रीलिङ्ग भाव
व्यक्त करते थे। और किसी वस्तु की लघुता या कोमलता सूचित करने के लिए प्रयुक्त
होते थे। बंगला में यह भेद नष्ट हो गया और ये प्रत्यय वस्तु की निश्चयात्मक स्थिति
को सूचित करते हैं। राम के साथ टा और टि दोनों का व्यवहार हो सकता है। रामटि कहने
पर आत्मीयता का भाव है, रामटा कहने से राम के भारी भरकम होने का बोध होगा। इसी
प्रकार गाछटा और गाछटि दोंनों रूप, लिंग भेद से तटस्थ, केवल एक निश्चित वृक्ष का
बड़ा छोटा होना सूचित करेंगे। ये टा, टी राजस्थानी के डा, डी मालूम होते हैं। डॉ.
चाटुर्ज्या ने बताया कि बंगाल की जनपदीय बोलियों में डा. डी भी बोले जाते हैं।3
इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘भीमटा’ ‘भीमटी’ शब्द भी टा प्रत्यय के लगने से बनते हैं। यहाँ भीम शब्द का अर्थ है- भारी
अर्थात् गुरु से युक्त। भीमा शब्द भीम का स्त्री वाची शब्द है।
संस्कृत अमरकोष में भी भीम शब्द का अर्थ भयंकर के अर्थ में
ही है। जो कि दुराचारियो, दुष्टों में भय पैदा करता है।
बिभेत्यस्मादिति भीमः अमरकोष, प्रथम काण्ड, स्त्रीवर्ग, पृ.
10
भीमं घोरं भयानकं- बिभेत्यस्मादिति भीष्मम्, भीमम् (अमरकोषे)
नाट्यवर्ग, प्रथमकाण्ड। पृ 92
अब बात करते हैं ‘भीमटा’ ‘भीमटी’ की तो हम पाते हैं कि ‘रामटा’ ‘रामटी’ की तरह ही हैं ये दोनों शब्द।
भीमटा का अर्थ होता है- भयानक, विशाल। विशालता के अर्थ में
एक शब्द और देखने को मिलता है वो है अटा, अटा हुआ। अटारी, अटरिया। विटा शब्द भी
ढेर के लिए प्रयुक्त होता है।
अब हम आते हैं वर्तमान के भारतीय सामाजिक संघर्ष व राजनीतिक
परिदृश्य में भीम शब्द का प्रयोग भारत के संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर के
संक्षिप्त नाम के रूप में लिया जाता है। सामाजिक व राजनीतिक क्रान्ति के आदर्श
वाक्य के रूप में ‘जय भीम’ का उच्चारण मन्द स्वर में
अभिवादन के लिए, मध्यम स्वर में बाबा साहब भीमराव के नाम बोध के लिए तथा तृतीय
स्वर में उद्घोष के लिए किया जाता है।
मुख्य रूप से उद्घोष के लिए प्रयुक्त होने के कारण जहाँ एक
ओर सामाजिक रूप से दमित लोग इसे उर्जा का संचार कर अपनी आवाज को बुलन्द करने के
लिए अच्छा मानते हुए बार-बार दोहराते है। भारत के विद्यालयों, विश्वविद्यालयों,
कार्यालयों, मेलों, आन्दोलनों आदि में इस ‘जय भीम’ के उद्घोष को सुना जा सकता है।
इस उद्घोष को सुनकर कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग इसे अपने
खिलाफ उद्धोष मान बैठते हैं। और बाबा साहब भीमराव के इन दीवानों को रोश में भीमटा
या भीमटी कहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। पुरा साहित्य में भी शब्दों का दूषण
देखने को मिल जाता है। बड़े-बड़े साहित्यकार भी इस कुचक्र से नहीं बच सके। जैसे-
बुद्ध से द्वेष होने के कारण द्वेषियों ने बुद्धू शब्द को प्रचलित किया। भारत के
गौरव महान सम्राट् अशोक के उपाधि नाम ‘देवानां पिय’ को मूर्खता के अर्थ में प्रचलित करने
की कोशिश की। ‘भट्ट’ शब्द का अर्थ
विद्वान् होता है। काशमीर के विद्वानों की एक सुदीर्घ शृंखला भट्ट उपनाम से रही
है। लेकिन दुर्बुद्धि लोगों ने भट्ट का भट्टा प्रचलति कर दिया। जिसका अर्थ किया
गया अधिक भोजन करने वाला। खैर ऐसे लोगों के प्रयास चाँद पर धूलि उछालने के कुकृत्य
के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
सामाजिक विद्वेष् से बचें। भीमटा शब्द कोई बुरा शब्द नहीं
है। दुर्बुद्धियो के द्वारा पुनः ऐसा प्रयास किये जाने पर मेरा एक पद है कि-
‘भीमपुत्र को देखिकर, जातंकी का गला फटा,
भीरू ने फिर से भीमटा, भीमटा, भीमटा रटा।’
इतना ही नहीं एक संस्कृत पद्य भी प्रस्तुत है-
विभेत्यस्मातनीतिगः,
तसिल्पूर्वकभीम तु।
भीमपुत्रमपश्यन्स:
भीरु: रटति भीमटा।।
अर्थात् अनीतिग( अनीति पर चलने वाला) जिससे
भयभीत होता है। वह भीमता शब्द भीम शब्द में तसिल् प्रत्यय के लगने से बनता है।
भीमता भीमराव अम्बेडकर के विचार को मानने वालों के लिए प्रयुक्त होता है। तीब्र
ध्वनि के उच्चार के समय स्वर में बदलाव होता है। तथा त के स्थान पर टा हो जाता है।
जैसे कि ‘जय भीम’ के नारों के
साथ शोषकों को ललकारते हुए आगे बढ़ते हैं तो शोषकों में में एक भय पैदार हो जाता
है कि अब इनका शोषण करना आसान नहीं है। ये लोग प्रतिकार करने लगे है। अतः कुपित
होकर वे ‘भीमटा’ कह कर के ही अपना रोष
निकाल लेते हैं।
वर्तमान भारत में
देखा जाये तो प्रत्येक व्यक्ति जो लोकतन्त्र में विश्वास रखता है तथा चाहता है कि
संविधान से देश चले तो वह स्वयं संविधान का पालन करता है। कवि बिहारीलाल हरीत के
द्वारा उनकी कविता में 1946 में प्रयुक्त
किया गया था। वह कविता है-
नवयुवक कौम के जुट जावें, सब मिलकर कौमपरस्ती में।
जय भीम का नारा लगा करे, भारत की बस्ती-बस्ती में।।4
इतना ही नहीं भीमानुरागी बाबू एल.एन.(लक्ष्मण नागराले)
हरदास4 के द्वारा 1935 ई. में गढ़ा गया हुआ माना
जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने भीम विजय संघ के श्रमिको की सहायता से अभिवादन
के इस सिद्धान्त को बढ़ाया।5
वर्तमान समय में
भारत का प्रत्येक समाजवादी चिन्तक, राजनीतिक नेता, छात्र नेता, छात्र, किसान,
किसान नेता, व्यापारी, वकील, डॉक्टर, मजदूर, कर्मचारी, अध्यापक, प्राध्यापक,
महिलायें, पेंशनर, बृद्ध, बच्चे, जबान सभी अपनी आवाज को बुलन्द करने के लिए जयभीम
का उद्घोष करते हैं। प्रधान मन्त्री हो या राष्ट्रपति सभी यथा अवसर जय भीम का
उद्घोष करते देखे जा सकते हैं। इस प्रकार तो वे सभी भीमटा है।
संस्कृत जगत् भी बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के जीवनचरित को
लेकर संवर्धित हो रहा है। कुछ संस्कृत रचनायें इस प्रकार हैं-
1.
श्रीकृष्ण सेमवाल प्रणीतं- भीमशतकम्, प्रकाशक-
दिल्ली संस्कृत अकादमी, दिल्ली प्रशासन।
2.
अनन्य
व्यक्तित्वः डॉ बाबासाहेब आंबेडकरः, पं. वि.शं. किरतकुडवे, 2017, कौस्तुभांजली
किरतकुडवे, मुम्बई।
3.
भीमाम्बेडकरशतकम्,
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली।
4.
अम्बेडकरदर्शनम्,
प्रो. बलदेव सिंह मेहरा, रोहतक, हरियाणा।
5.
भीमायनम्,
प्रभाकर शंकर जोशी, शारदा मठ से प्रकाशित।
6.
संस्कृतप्रेमी
डॉ. अम्बेडकरः, संस्कृत भारती।
7.
डॉ. बाबा
साहेब आंबेडकराः, संस्कृतपुष्पमाला,1972
8.
राष्ट्रनायकः
डॉ. अम्बेडकरः अनु. सूर्यनारायण के. एन्. 2007
9.
भारतरत्नमम्बेडकरः
संस्कृतभाषा च, डॉ. सुरेन्द्र अज्ञात 2010
10. अभिनवशुकसारिकायां अम्बेडकरवर्णनम्, आचार्य
राधावल्लभत्रिपाठी 2011
11. अम्बेडकरस्य संस्कृताभिमानः, सम्भाषणसन्देशे, संपादकीयः, मई
2002
12. अम्बेडकरः संस्कृतेन भाषते स्म, चमूकृष्ण शास्त्री जून 2003
13. भारतीये संविधाने सन्ति रामकृष्णादयः अपि, चिन्तामणिः
जनवरी.2006
14. संकल्पं वच्मि वाटिके, डॉ. रामहेत गौतमः।
संगोष्ठियाँ-
संस्कृत साहित्ये दलितविमर्शः साहित्य अकादमी, नई दिल्ली।
वर्तमान
साहित्य जगत् बाबा साहब को लेकर खूब समृद्ध हो रहा है।
अब
तो फिल्म जगत् भी बाबा साहब के विचार को उद्घाटित प्रचारित प्रसारित कर रहा है।
दक्षिण भारत में सूर्या के द्वारा निर्मित तमिल फिल्म ‘जयभीम’ ने खूब
सुर्खियां बटोरी हैं।
वर्तमान सोशल मीडिया पर इस शब्द का
बहुत प्रयोग हो रहा है। लोग अपनी खुन्नश निकालने के लिए शब्दों को तोड़-मरोड़ कर
प्रस्तुत कर रहे हैं। जो कि भाषा के साथ खिलवाड़ है। खैर भाषा एक नदी की तरह है।
जिसमें बाढ़ के समय बहुत सारा कचरा आ जाता है। फिर भी समय के साथ कचरा छट जाता है।
आखिर में शुद्ध जल धारा ही निरन्तर बहती रहती है।
दुर्बुद्धियों के द्वारा प्रदुष्ट किये जाने की लाख कोशिशों के बावजूद भी
यह शब्द अपने मूल अर्थ को नहीं खोयेगा।
निस्कर्षतः कहा जा सकता है कि- संविधान के दायरे में रहकर
अत्याचार, अनाचार, दुराचार, शोषण, हकमारी के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द करने का
पर्याय बन चुका है- जयभीम। भारत भी नहीं पूरी दुनिया अब जय भीम के उद्घोष को अपना
चुकी है। भीम शब्द का अर्थ ही है भय पैदा कर देने वाला। बाबा साहब भीमराव अम्बेकर
से एक आदर्श नागरिक जो तर्कशील है वो भीम से डरता नहीं प्रेम करता है। डरता तो
दुष्ट है। जो भारतीय संविधान के सपनों का मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण सम्पूर्ण
प्रभुत्त्व सम्पन्न, समाजवादी, लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत बनने में बाधक बनता है।
उसमें भीम शब्द को सुनते ही भय पैदा होना स्वाभाविक ही है। दुष्टता से मुक्त होकर
सबको सम्मान, सबको शिक्षा, सबकी सुरक्षा, सबका स्वास्थ्य व सबकी समृद्धि के विचार
के साथ पूरा संसार भीमटा होने को उतारूँ
है। क्योंकि भीमटा सम्मान, स्वाभिमान, शिक्षा स्वास्थ्य, समृद्धि के लिए संघर्ष करने
वालों का पर्याय बन चुका है। अतः कहा जा सकता है कि- भीमटा होना गौरव की बात है।
1 जिनके वारे में निम्नलिखित लिंक से जाना जा सकता है। https://www.linkedin.com/in/rajkumar-bhimte-76433699/
2
अन्य
नाम देखने के लिए लिंग को क्लिक करें- https://www.linkedin.com/in/mohan-k- bhimate-95b572162/?originalSubdomain=in
3 देखिए- भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी खण्ड -1, पृष्ठ 92,
राजकमल प्रकाशन, नई
दिल्ली/ पटना। PDF देखने के लिए क्लिक करें- https://ia801600.us.archive.org/18/items/in.ernet.dli.2015.444322/2015.444322.Bharat-Ke.pdf
4 जय भीम का नारा (dalitsahitya.in) 27.04.2021
4 BBC .com जय भीम का नारा---
5 जय भम चे जनक बाबू हरदास एल.एन. (मराठी
ग्रन्थ) लेखक पी. टी. रामटेके