कितने बहुरूपिया हो,
डींग हाँकने में
घोड़ा बन जाते हो,
काम पड़े तो कहते हो,
मैं गधे की तरह लदा हूं।
घास दिखे तो
गउ बन जाते हो,
कोई असहमत होता,
तब भौंकने लगते हो।
अकेला जान
देते गीदड़ भवकियां,
अकेले फसते हो
लोमड़ी हो जाते।
जब ताकतवर होते ही
दहाड़ते हो।
जान फसे तो
मिमियाने लगते हो।
तुम सब बन सकते हो
मगर आदमी
क्यों नहीं
रह सकते हो?
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