आओ बड्डे
लोंग, सुपारी, पान पा लो,
भूलें बिसरा दो
गले लगा लो।
ऐसौ हतौ दशहरा रीत कौ,
होत हतौ व्यवहार प्रीत कौ।
मारा मूरी, जला-जलोई से
दुशमनियाँ नोईं मिटत हैं,
वे तौ मिटत हैं
आवे-जावे सें,
मिले-मिलाये सें,
लैवे-दैवे सें,
खावे-खवाय सें,
सो आओ भज्जा,
बैठो थाई पै,
खोलो मुँह
लोंग, सुपारी,
पान खा लो।
खोलो हाथ
गौतम को
गरें लगा लो।
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