Friday, 31 May 2019

जान, ज्ञान और मान

जान, ज्ञान और मान
एक बार बाबा साहब काम करते-करते भूख महसूस करते हैं तो अपनी दवा और ख़ाना मंगाते हैं और कहते हैं कि मेरा सम्पूर्ण संघर्ष मान के लिए है यह प्रत्येक व्यक्ति का होना चाहिए। बार-बार सामाजिक अपमान का शिकार होने पर अपनी जान दे देने का कुविचार आता है। तत्काल सुविचार आता है कि मानसिक रोगियों से परेशान होकर स्वयं को मिटाने की अपेक्षा रोगी के रोग को मिटाना ज्यादा श्रेयशकर है। किसी भी समाज में रोगियों की अपेक्षा डाक्टर कम ही होते हैं। अगर डाक्टर ही आत्महत्या कर ले तो सम्पूर्ण समाज रोगग्रस्त होकर मिट जायेगा। मेरी समझदारी इसी में है कि स्वयं को सुरक्षित रखूं और समाज के रोग को दूर करूँ। मेरी जान समाज की जान के लिए जरूरी है। समय पर दवा और भोजन इसलिए लेता हूँ ताकि मैं अपने इस शरीर का राष्ट्र व समाज हित में अधिक-अधिक उपयोग कर सकूँ। मैं रात-रात भर इसलिए पढ़ता हूँ ताकि मैं अपने देश व समाज की बीमारी को भलीभांति जान सकूँ और समुचित प्रयास कर सकूँ। मेरा देश जिस भयानक रोग से ग्रसित है उसके आगे मेरा शारीरिक रोग कुछ भी नहीं है फिर भी मैं अपने दैहिक रोग को नजरअंदाज नहीं करता दवा लेता हूँ । और देश के रोग की दबा बनाने में लगा हूँ।

Thursday, 30 May 2019

कालचक्र

बारह अरों का है काल चक्र
रहता है अनवरत गतिमान।
रंग भरे हर अरे में मौसम के
सृष्टि से संहृति तक संधान।

मनुष्य एक अंश है सृष्टि का
न वह मौसम है न कालचक्र
चूक सकता है निज मार्ग से
तदपि नित करता लक्षसंधान।

आरक्षण विरोधी

हमें आरक्षण से कोई आपत्ति नहीं है !
  
        समस्या तो यह है कि ~
जिसको आरक्षण दिया जा रहा है , वो
सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है !
        समय सीमा तय हो कि ~
         वह सामान्य नागरिक
          कब तक बन जायेगा ?

आरक्षण दिया पर पूर्णतः लागू नहीं,
क्योंकि सत्ता शोषक के हाथों में है।
जाति और शोषण समाप्ति हुई नहीं,
क्योंकि सत्ता शोषक के हाथों में है।
आरक्षण समय सीमा निश्चय हो कैसे,
क्योंकि सत्ता शोषक के हाथों में है।

किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और
वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया !
अब उसका वेतन ₹5500 से ₹50000 व
इससे भी अधिक है , पर जब उसकी
संतान हुई तो वह भी पिछडी ही पैदा हुई ,
          और ... हो गई शुरुआत !

उसका जन्म हुआ प्राईवेट अस्पताल में ~
  पालन पोषण हुआ राजसी माहोल में ~
      फिर भी वह गरीब पिछड़ा और
    सवर्णों के अत्याचार का मारा  हुआ ?

उसका पिता लाखों रूपए सालाना कमा
  रहा है , तथा उच्च पद पर आसीन है !
    सारी सरकारी सुविधाएं  ले रहा है !
           वो खुद जिले के ...
सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है , और
   सरकार ... उसे पिछड़ा मान रही है !
     सदियों से सवर्णों के ...
      अत्याचार का शिकार मान रही है !

आपको आरक्षण देना है , बिलकुल दो
पर उसे नौकरी देने के बाद तो ...
सामान्य बना दो ! ये गरीबी ओर पिछड़ा
दलित आदमी होने का तमगा तो हटा दो !

यह आरक्षण कब तक मिलता रहेगा उसे ?
इसकी भी कोई समय सीमा तय कर दो ?
या कि ~ बस जाति विशेष में पैदा हो गया
तो आरक्षण का हकदार हो गया , और
वह कभी सामान्य नागरिक नही होगा !

दादा जी जुल्म के मारे !
  बाप जुल्म का मारा !
    अब ... पोता भी जुल्म का मारा !
       आगे जो पैदा होगा वह भी ~
          जुल्म का मारा ही पैदा होगा !
             ये पहले से ही तय कर रहे हो ?

              वाह रे मेरे देश का दुर्भाग्य !
                    वाह रे महान देश !

जिस आरक्षण से उच्च पदस्थ अधिकारी ,
मन्त्री , प्रोफेसर , इंजीनियर, डॉक्टर भी
पिछड़े ही रह जायें, गरीब ही बने रहेंगे ,
        ऐसे असफल अभियान को
         तुरंत बंद कर देना चाहिए !

क्या जिस कार्य से कोई आगे न बढ़ रहा हो
उसे जारी रखना मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं है ?

हम में से कोई भी आरक्षण के खिलाफ नहीं,
पर आरक्षण का आधार जातिगत ना होकर
    आर्थिक होना चाहिए !
       सबका साथ सबका विकास ~
         अन्त्योदय योजना लाओ ~
           अंत को सबल बनाओ !
और तत्काल प्रभाव से ...
प्रमोशन में आरक्षण तो बंद होना ही चाहिए !
         नैतिकता भी यही कहती है , और
             संविधान की मर्यादा भी !
             
क्या कभी ऐसा हुआ है कि ~
किसी मंदिर में प्रसाद बँट रहा हो तो
एक व्यक्ति को चार बार मिल जाये ,और
एक व्यक्ति लाइन में रहकर अपनी बारी का
इंतजार ही करता रहेगा ?

आरक्षण देना है तो उन गरीबों ,लाचारों को
चुन चुन के दो जो बेचारे दो वक्त की रोटी को
मोहताज हैं... चाहे वे अनपढ़ ही क्यों न हों !
चौकीदार , सफाई कर्मचारी ,सेक्युरिटी गार्ड
कैसी भी नौकरी दो !
हमें कोई आपत्ति नहीं है और ना ही होगी !
ऐसे लोंगो को  मुख्य धारा में लाना ...
सरकार का ~
सामाजिक व नैतिक उत्तरदायित्व भी है !
परन्तु भरे पेट वालों को बार बार
56 व्यंजन परोसने की यह नीति
बंद होनी ही चाहिए !
जिसे एक बार आरक्षण मिल गया , उसकी
अगली पीढ़ियों को सामान्य मानना चाहिये
और आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये !
🙏 अगर सहमत हो तो जन-जन तक पहुचायें, धन्यवाद🙏

Wednesday, 29 May 2019

आरक्षण

आरक्षित सामान्य नहीं बन पा रहा,
क्योंकि जाति कायम है।
धनवान हो गया फिर भी है पिछड़ा,
क्योंकि जाति कायम है।
राजसी भोजन-कपड़े फिर भी पिछड़ा,
क्योंकि जाति कायम है।
उच्च पदस्थ है फिर भी पिछड़ा,
क्योंकि जाति कायम है।
नौकरी मिल गई मान न मिला,
क्योंकि जाति कायम है।
आरक्षण नहीं प्रतिनिधित्व चाहिए,
क्योंकि भेद क़ायम है।
प्रतिनिधित्व चाहिए तब तक,
जब तक भेद कायम है।
पीढ़ियां बदलीं मान न मिला,
क्योंकि जाति कायम है।
दलन का आधार अर्थ नहीं,
भेद में जाति कायम है।
धनी हैं पर मंदिर प्रवेश नहीं,
क्योंकि जाति कायम है।
धन-ज्ञान मिला मान न मिला,
क्योंकि जाति कायम है।
बन्धु़! जहर उगलते मान न देते,
क्योंकि जाति कायम है।

Monday, 27 May 2019

मशीन

हाथों ने बनायी थी मशीन
निज क्षमता बढ़ाने के लिए,
एक मशीन क्या आयी यहाँ
हजार हाथ बेकार हो गए।

हमने खोजी थी एक मशीन
लोकतंत्र को सजाने के लिए,
संदेह की घटाएँ भीषण उठीं
बन काल लोकतंत्र के लिए।

Friday, 17 May 2019

आया है नवदेव, धरा पर मंगल है,
मुदिता माँ, बापू भी बहुत हर्षित है।

दादा-नाना सबको मिठाई बाँट रहे,
दादी-नानी स्वागत मंगल गाती हैं।
 
भाई को देखने लालायित हैं बहिनें,
माँ के पास जाने की जिद करतीं हैं।

Thursday, 16 May 2019

नीर

हे नीर! ये तो बताओ
कहाँ से पायी है तुमने यह सरलता
नहीं है कणमात्र की कर्कशता।
कहाँ से पायी है तुमने यह तरलता
हर आकार में ढल जाते हो।
कहाँ से लाये हो यह रूप,
जिस रंग में मिलते हो वही हो जाते हो।
कहाँ से पाये हो यह ढलने की कला,
आग में हवा, शीत में पत्थर, धरा पे पानी।
कहाँ से पाये हो यह वाक्-चातुर्य,
सागर में मौन, सरित में कलकल, झरने पर गीत।
कहाँ से सीखा है कर्म-कौशल,
दे देते हो आकार मनचाहा तड़ाग को, नदी को, रत्नाकर को भी।
सरल हो, तरल हो, सहज भी हो
पर देखा है दुनियां ने तुम्हें चट्टानों को भेदते हुए।
तुम सुधीर हो, तुम सुतीर हो, तुम नीर हो।

Wednesday, 15 May 2019

धनवान श्रमचोर

वेदव्यास ने कहा कि बहुत बडा धनसंग्रह किया है
तो इसका मतलब है कि उसने दूसरों के श्रम का अपहरण किया है ।
वे स्पष्ट करते हैं कि वह आदमी कितने भी बहाने बनाये ,
यह निश्चित ही है कि दूसरों को पीडित किये बिना बहुत बडा संग्रह :
[पूंजी ] बन ही नहीं सकता >

ना छित्वा पर-मर्माणि नाकृत्वा कर्म दुष्करं ,
ना हत्वा मत्स्यघातीव प्राप्नोति महतीं श्रियम्‌।

[राजधर्म १४-१४- १३०- ३६]

Monday, 13 May 2019

मां

संतान के निर्माण में माँ का कतरा-कतरा गलता है| जलता है ज्यों हर जर्रा  वर्तिका का प्रकाश के लिए||

Friday, 10 May 2019

गजभिए

उगा था एक सूर्य पूर्व में
ख़ार सारे खाक कर गया।
जन्मा है एक शूर उर्वि पर
नव पादप रोपित करगया।।

Thursday, 9 May 2019

गणतंत्र दिवस

आओ! उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

सदियों के खूनी संघर्षों में
पुरखों ने जान है गंवाई
अनगिनत शीषों के भाव,
आजादी हमने है पायी।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

छः दिसंबर छियालीस
संविधान सभा थी बनी
तीन सौ नवासी सदस्य
राजेन्द्र जी अध्यक्ष थे भाई।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

सात जन की प्रारूप सभा
भीमराव अम्बेडकर नेता बने
कोई बीमार कुछ छोड़ गये
भीम भार धरे अकेले भाई।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

विश्व भरे विधान पढ़े हैं
पढ़े हैं धर्मशास्त्र सभी
परंपराऐं  सभी विचारी
सभी पर बहस करायी।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

अच्छा-अच्छा ले लिया था
बुरा सभी था छोड़ दिया
अनुच्छेद तीन सौ पंचानवे
बारह अनुसूचियां हैं भाई।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

दो वर्ष ग्यारह माह दिन अठारह
दिवस-रात थे भीम ने एक किये
चौबीस नवम्बर उन्चास में पूर्ण 
छब्बीस में अंगीकृत हुआ है भाई।

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई।

छब्बीस जनवरी पचास को
लागू हुआ था तंत्र हमारा
लगा तिरंगा लाल किले पर
महोत्सव पर जनता हर्षाई

आओ उत्सव मनायें हम,
ये गणतंत्र दिवस है भाई ।

लेखक
डाॅ रामहेत गौतम सहायक प्राध्यापक, डाॅ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर मप्र ।

देशभक्तिराष्ट्रवादयोः संबंधः स्वतंत्रतायै

Wednesday, 8 May 2019

चैन चला गया है

चैन चला गया जब आहट तुम्हारी आयी,
हे जन! तू ही ठहर जा चैन की जगह पर।
जब तुम न थे, तुम्हारी आस में चैन तो था,
हे निर्दय! अब कौन? ठहरेगा तुम्हारी जगह पर।।

ससुराल

सुन देवी! देवपूजन क्यों जाति हो,
तुरत ही तुम भ्रमजाल देव निकाल।
सास-ससुर के मान, खान-पान का,
नित ध्यान का रास्ता तू ले निकाल।।
बड़ो के अनुभव और समाज में यश,
घर की खुशी, पति भी होगा निहाल।।

शिक्षक

एकस्य शिक्षकस्य पार्श्वे  भवितव्यं एकं सर्जनात्मकं मतम् ।

भारत देश (हाईकु)

भांति-भांति के
झंडे डंडे बैनर
घर वही है।

लोग बदले
मीनार न बदली
लोक वही है।

हवा बदली
पंछी बदल गये
पेड़ वही है।

पत्ते बदले
कलियाँ भी बदलीं
छांव वही है।

मेघ गरजे
बिज़ली भी कड़की
धरा वही है।

राही बदले
रथ भी हैं बदले
राह वही है।

रोटी बदली
वर्तन भी बदले
भूख वही है।

सब बदले
बाजार न बदला 
भाव वही है।

Tuesday, 7 May 2019

स्वाभिमान

किसी के स्वाभिमान को हानि पहुंचाए विना अपने स्वाभिमान को बनाये रखना हर सामाजिक समस्या का समाधान है
- बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ।

मा कर्षय पादं

मा कर्षय पादं, धारय हस्तं  उद्धर निमग्नं रोधय पापं। अयं मे भक्तिः अयं ते शक्तिः भारतमाह्वयति निजसुतासुतौ।

Monday, 6 May 2019

मतदान

नेता जी आये
मांगन मतदान
द्वार हमारे।

मैं तो सेवक
शक्ति दो भैया-मैया
सेवा करूँगा।

गल्ला कपड़ा
सब मुफ्त मिलेगा
भैया बहनों जी।

दवा फ्री होगी
कर्ज माफ करेंगे
काम मिलेगा।

तन्मे भारतम्।

सो एव श्रमी
सर्वेषां सर्जनाय
यस्यास्ति श्रमम्।

सो एव धनी
सर्वेषां जीवनाय
यस्यास्ति धनम्।

सो एव ज्ञानी
सर्वेषां प्रबोधाय
यस्यास्ति ज्ञानम्।

सो एव बलिः
सर्वेषां रक्षणाय
यस्यास्ति बलम्।

यत्रैते सर्वे
रमेयुस्सर्वदा नु
तन्मे भारतम्।

डॉ रामहेतगौतमः, सहायक-प्राध्यापकः, संस्कृतविभागे, डाॅ हरिसिंह-गौर-विश्वविद्यालय: सागरं मप्र ।

Sunday, 5 May 2019

एक हो जाओ

PRACTICAL OF SOCIAL ENGINEERING
👉👉पाण्डेय जाति +तिवारी जाति +मिश्रा जाति +शुक्ला जाति  आदि ब्राहमण जातियाँ     =     ब्राहमण समाज।
(ब्राहमण समाज के सभी जातियों की आपस में अंतरजातीय विवाह प्रथा जारी है अतः सामाजिक रूप से शक्तिशाली है )

👉👉भदौरिया जाति +बजगोती जाति+सूर्यवंशी जाति +चौहान जाति  आदि राजपूत जातियाँ   =      क्षत्रिय  समाज।
( क्षत्रिय  समाज के सभी जातियों की आपस में अंतरजातीय विवाह प्रथा जारी है अतः सामाजिक रूप से शक्तिशाली है )

👉👉अग्रवाल जाति + पोरवाल जाति + बनरवाल जाति + विश्नोई जाति + गोयल जाति + आदि वैश्य जातियाँ   =    वैश्य समाज।
(वैश्य समाज के सभी जातियों की आपस में अंतरजातीय विवाह प्रथा जारी अतः सामाजिक रूप से शक्तिशाली है )

THEORY OF SOCIAL ENGINEERING'S
👉👉चमार जाति + पासी जाति + धोबी जाति + धानुक जाति + भँगी जाति + खटीक जाति + महार जाति + कोरी जाति आदि 
SC वर्ग की जातियाँ    =  SC अनुसूचित वर्ग का समाज
(की सभी जातियों की आपस में अंतरजातीय विवाह प्रथा जारी .....नहीं....है
इसीलिए सामाजिक रूप से शक्तिशाली ...नहीं है )

👉👉यादव जाति + मौर्या जाति + कुम्हार  जाति + गराडिया जाति + निषाद जाति +लोद्ध् जाति + बढ़ई जाति +  लोहार जाति  +नाई जाति आदि 
ओबीसी वर्ग की जातियाँ    =  ओबीसी  वर्ग का समाज (की सभी जातियों की आपस में अंतरजातीय विवाह प्रथा जारी .....नहीं....है
इसीलिए सामाजिक रूप से शक्तिशाली ...नहीं है )

अतः SC/ओबीसी वर्ग की जातियों के पढे लिखे लोगो आप भी आपस में अंतर्जातीय विवाह की व्यवस्था बनाओ
जब इन सवर्णों से पूछा जाता है तो ये अपना वर्ग बताते हैं इस लिए किसी को अपनी जाति का कोई गुमान नहीं है लेकिन इधर पूछने पर जाति बताते हैं और अपने ही वर्ग के लोगों से उंच नीच हो जाते हैं। यदि हम वर्ग बतायेगे लिखेगे और दिखेगे तो ये 85 % समाज कुछ भी कर सकता है और पा भी सकता है इसे रोकने वाला कोई नहीं होगा।

मित्रों सोचिये , चिन्तन करिये जबाब दीजिए।

तन्मे भारतम् ।

सो एव श्रमी
यस्यास्ति श्रमं
सर्वेषां सर्जनाय।

सो एव धनी
यस्यास्ति धनं
सर्वेषां जीवनाय।

सो एव ज्ञानी
यस्यास्ति ज्ञानं
सर्वेषां मानाय।

सो एव बली
यस्यास्ति बलं
सर्वेषां रक्षणाय।

यत्र एते सर्वे
रमेयुस्सर्वदा
तन्मे भारतम् ।

डॉ रामहेतगौतमः, सहायक-प्राध्यापकः, संस्कृतविभागे, डाॅ हरिसिंह-गौर-विश्वविद्यालय: सागरं मप्र ।

श्रम धन ज्ञान

यस्यास्ति सर्जनाय श्रमं जीवनाय धनं मानाय ज्ञानम् ।
सो एव श्रमी धनी मानी च।

मैं हैरान हूँ " -महादेवी वर्मा

" मैं हैरान हूँ "

-महादेवी वर्मा

मैं हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने उंगली नहीं उठाई
तुलसी दास पर ,जिसने कहा :-
"ढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"

मैं हैरान हूं
किसी औरत ने
नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां।

मैं हैरान हूं
किसी औरत ने धिक्कारा नहीं
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी को
जिसने परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर।

किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण।

मै हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने किया नहीं
संयोगिता_अंबा - अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक!

और मैं हैरान हूं
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती है मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर।

मैं हैरान हूं
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा?
***

(महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय (तथाकथि उदात्त) संस्कृति पर गहरी चोट करती है.

Saturday, 4 May 2019

बाबा साहब का राष्ट्रवाद

बाबासाहेब का राष्ट्रवाद :


राष्ट्र की मुख्यधारा में बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की विधिवत स्थापना संयोग से उसी दौर में हो रही है, जब देश  में राष्ट्र और राष्ट्रवाद को लेकर एक तीखी बहस चली है. एक ओर देश बाबासाहेब  की 127वीं जयंती मनाने जा रहा है, सभी राजनीतिक दल उन्हें अपना आदर्श जताना चाह रहे हैं, दूसरी ओर राष्ट्रवाद को लेकर बहस देश के  विश्वविद्यालयों से शुरू होकर, जीवन के विविध क्षेत्रों में व्याप्त हो गयी  है और चाहे-अनचाहे हम सब इसके हिस्सेदार बन गये हैं.

यह स्थिति इसलिए भी है क्योंकि राष्ट्र निर्माण के बाबासाहेब के सपनों पर अब  तक गंभीरता से गौर नहीं किया गया है, वरना राष्ट्र और राष्ट्रवाद से जुड़े  कई जटिल सवालों का मुकाबला करने के लिए हम ज्यादा समर्थ और सक्षम होते. बाबासाहेब की 127वीं जयंती के मौके पर राष्ट्र और उसके लोगों के बारे में उनके विचारों पर नजर डाल रहा है आज का यह विशेष पेज.
बाबासाहेब को जानने और समझने की सबसे बड़ी सीमा यह रही है कि या तो उनकी अनदेखी की गयी, या फिर उनकी पूजा की गयी. ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्होंने बाबासाहेब के जीवन के किसी एक पहलू को उनका पूरा स्वरूप मान लिया और उस टुकड़े में ही वे बाबासाहेब का समग्र चिंतन तलाशते रहे. बाबासाहेब के लोकजीवन का विस्तार इतना बड़ा और विशाल है कि उसके किसी एक खंड की विशालता से विस्मित होना बिल्कुल मुमकिन है. कई लोग इस बात से चकित हैं कि अछूत परिवार में पैदा हुआ एक बच्चा अपने दौर का सबसे बड़ा विद्वान कैसे बन गया. कोई कहता है कि बाबासाहेब संविधान निर्माता थे, जो कि वे थे.
कुछ लोगों की नजर में बाबासाहेब अपने दौर के सबसे बड़े अर्थशास्त्री थे, जिनके अध्ययन के आलोक में रिजर्व बैंक की स्थापना हुई, भारतीय मुद्रा और राजस्व का जिन्होंने विस्तार से अध्ययन किया. कई लोगों की नजरों में बाबासाहेब दलित उद्धारक हैं, तो कई लोग हिंदू कोड बिल के रचनाकार के रूप में उन्हें ऐसे शख्स के रूप में देखते हैं, जिन्होंने पहली बार महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिलाने की पहल की और महिला समानता की बुनियाद रखी. श्रम कानूनों को लागू कराने से लेकर नदी घाटी परियोजनाओं की बुनियाद रखनेवाले शख्स के रूप में भी बाबासाहेब को जाना जाता है. बाबासाहेब के कार्यों और योगदानों की सूची बेहद लंबी है.
लेकिन, इन सबको जोड़ कर बाबासाहेब की जो समग्र तसवीर बनती है, वह निस्संदेह एक राष्ट्र निर्माता की है. बाबा साहेब का भारतीय राष्ट्र कैसा है? क्या वह राष्ट्र एक नक्शा है, जिसके अंदर ढेर सारे लोग हैं? क्या राष्ट्र किसी झंडे का नाम है, जिसे कंधे पर लेकर चलने से कोई राष्ट्रवादी बन जाता है?
क्या राष्ट्र एक तसवीर है, जिसमें एक महिला भगवा ध्वज लेकर शेर की पीठ पर बैठी है, जिसे राष्ट्रमाता मान कर उसकी जय-जयकार करना जरूरी है? क्या भूगोल ने, पहाड़ और नदियों ने अपनी प्राकृतिक सीमाओं से घेर कर जमीन के एक टुकड़े को राष्ट्र का रूप दे दिया है? या फिर, क्या हम इसलिए एक राष्ट्र हैं कि हमारे स्वार्थ और हित साझा हैं?
बाबासाहेब का राष्ट्र इन सबसे अलग है. धर्म, भाषा, नस्ल, भूगोल या साझा स्वार्थ को, या फिर इन सबके समुच्चय को, बाबासाहेब राष्ट्र नहीं मानते. बाबासाहेब का राष्ट्र एक आध्यात्मिक विचार है. वह एक चेतना है. हम एक राष्ट्र हैं, क्योंकि हम सब मानते हैं कि हम एक राष्ट्र हैं.
इस मायने में यह किसी स्वार्थ या संकीर्ण विचारों से बेहद ऊपर का एक पवित्र विचार है. इतिहास के संयोगों ने हमें एक साथ जोड़ा है, हमारा अतीत साझा है, हमने वर्तमान में साझा राष्ट्र जीवन जीना तय किया है और भविष्य के हमारे सपने साझा हैं, और यह सब है इसलिए हम एक राष्ट्र हैं. राष्ट्र की यह परिकल्पना बाबासाहेब ने यूरोपीय विद्वान अर्नेस्ट रेनॉन से ली है, जिनका 1818 का प्रसिद्ध वक्तव्य ‘ह्वाट इज नेशन’ आज भी सामयिक दस्तावेज है.
संविधान सभा में पूछे गये तमाम सवालों का जवाब देने के लिए जब बाबासाहेब 25 नवंबर, 1949 को खड़े होते हैं, तो वे इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत आजाद हो चुका है, लेकिन उसका एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है. बाबासाहेब कहते हैं कि ‘भारत एक बनता हुआ राष्ट्र है.
अगर भारत को एक राष्ट्र बनना है, तो सबसे पहले इस वास्तविकता से रूबरू होना आवश्यक है कि हम सब मानें कि जमीन के एक टुकड़े पर कुछ या अनेक लोगों के साथ रहने भर से राष्ट्र नहीं बन जाता. राष्ट्र निर्माण में व्यक्तियों का मैं से हम बन जाना बहुत महत्वपूर्ण होता है.’
वे चेतावनी भी देते हैं कि हजारों जातियों में बंटे भारतीय समाज का एक राष्ट्र बन पाना आसान नहीं होगा. सामाजिक व आर्थिक जीवन में घनघोर असमानता और कड़वाहट के रहते यह काम मुमकिन नहीं है. अपने बहुचर्चित, लेकिन कभी न दिये गये, भाषण ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में बाबासाहेब जाति को राष्ट्र विरोधी बताते हैं और इसके विनाश के महत्व को रेखांकित करते हैं.
बाबासाहेब की संकल्पना का राष्ट्र एक आधुनिक विचार है. वे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात करते हैं, लेकिन वे इसे पश्चिमी विचार नहीं मानते. वे इन विचारों को फ्रांसिसी क्रांति से न लेकर, बौद्ध परंपरा से लेते हैं. संसदीय प्रणालियों को भी वे बौद्ध भिक्षु संघों की परंपरा से लेते हैं.
स्वतंत्रता और समानता जैसे विचारों की स्थापना संविधान में नियम कानूनों के जरिये की गयी है. इन दो विचारों को मूल अधिकारों के अध्याय में शामिल करके इनके महत्व को रेखांकित भी किया गया है. लेकिन इन दोनों से महत्वपूर्ण या बराबर महत्वपूर्ण है बंधुत्व का विचार. क्या कोई कानून या संविधान दो या अधिक लोगों को भाईचारे के साथ रहना सिखा सकता है? क्या कोई कानून मजबूर कर सकता है कि हम दूसरे नागरिकों के सुख और दुख में साझीदार बनें और साझा सपने देखें? क्या इस देश में दलित उत्पीड़न पर पूरा देश दुखी होता है? क्या मुसलमानों या ईसाइयों पर होनेवाले हमलों के खिलाफ पूरा देश एकजुट होता है?
क्या आदिवासियों की जमीन का जबरन अधिग्रहण राष्ट्रीय चिंता का कारण हैं? दुख के क्षणों में अगर नागरिकों में साझापन नहीं है, तो जमीन के एक टुकड़े पर बसे होने और एक झंडे को जिंदाबाद कहने के बावजूद हम लोगों का एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है. राष्ट्र बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि हम अतीत की कड़वाहट को भूलना सीखें. अमूमन किसी भी बड़े राष्ट्र के निर्माण के क्रम में कई अप्रिय घटनाएं होती हैं, जिनमें कई की शक्ल हिंसक होती है और वे स्मृतियां लोगों में साझापन पैदा करने में बाधक होती हैं. इसलिए जरूरी है कि खासकर विजेता समूह, उन घटनाओं को भूलने की कोशिश करे.
राष्ट्र जब लोगों की सामूहिक चेतना में है, तभी राष्ट्र है. बाबासाहेब चाहते थे कि भारत के लोग, तमाम अन्य पहचानों से ऊपर, खुद को सिर्फ भारतीय मानें. राष्ट्रीय एकता ऐसे स्थापित होगी. वर्तमान विवादों के आलोक में, बाबासाहेब के राष्ट्र संबंधी विचारों को दोबारा पढ़े जाने और आत्मसात किये जाने की जरूरत है.
सामाजिक क्रांति के नैतिक आदर्श हैं डॉ आंबेडकर
- भूपेंद्र यादव
राज्यसभा सांसद, भाजपा
बाबासाहेब ने कहा था, अनूठे हैं भारत के राष्ट्रवादी और देशभक्त
भारत एक अनूठा देश है. इसके राष्ट्रवादी एवं देशभक्त भी अनूठे हैं. भारत में एक देशभक्त और राष्ट्रभक्त वह व्यक्ति है जो अपने समान अन्य लोगों के साथ मनुष्य से कमतर व्यवहार होते हुए अपनी खुली आंखों से देखता है, लेकिन उसकी मानवता विरोध नहीं करती. उसे मालूम है कि उन लोगों के अधिकार अकारण ही छीने जा रहे हैं, लेकिन उसमें मदद करने की सभ्य संवेदना नहीं जगती.
उसे पता है कि लोगों के एक समूह को सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया गया है, लेकिन उसके भीतर न्याय और समानता का बोध नहीं होता. मनुष्य और समाज को चोटिल करनेवाले सैकड़ों निंदनीय रिवाजों के प्रचलन की उसे जानकारी है, लेकिन वे उसके भीतर घृणा का भाव पैदा नहीं करते हैं. देशभक्त सिर्फ अपने और अपने वर्ग के लिए सत्ता का आकांक्षी होता है.
मुझे प्रसन्नता है कि मैं देशभक्तों के उस वर्ग में शामिल नहीं हूं. मैं उस वर्ग में हूं, जो लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा होता है और जो हर तरह के एकाधिकार को ध्वस्त करने का आकांक्षी है. हमारा लक्ष्य जीवन के हर क्षेत्र- राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक- में एक व्यक्ति-एक मूल्य के सिद्धांत को व्यवहार में उतारना है.
19वीं सदी और 20वीं सदी के पहले दो दशकों तक हुए सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश भारतीय समाज में सामाजिक क्रांति के मार्ग को निर्णायक मोड़ देनेवाला महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत रहा है. डॉ आंबेडकर प्रखर चिंतक, कानूनविद और सामाजिक न्याय की लड़ाई के योद्धा मात्र नहीं रहे, अपितु उनकी वैचारिक दृष्टि में अन्याय का प्रतिकार करने के साहस के साथ-साथ नैतिक पथ पर अविचल चलने की प्रतिबद्धता भी दिखाई देती है, जो मूल्यों की पहचान ढूंढ़ते समाज को दिशा दिखाती है.
भारतीय समाज में विविधता भी है और विषमता भी. विविधता स्वाभाविक होती है, परंतु विषमता नैसर्गिक नहीं है, इसलिए इस पर विचार आवश्यक है. बाबासाहेब के नैतिक साहस ने अपने समाज की विषमतामूलक व्यवस्था का मात्र विरोध ही नहीं किया, उन्होंने इसके कारण, समाज और राष्ट्रीय एकता पर इसके दुष्प्रभाव और सत्य, अहिंसा तथा मानवता के विरुद्ध इसके स्वरूप को भी उजागर किया. आधुनिक भारत के निर्माणकर्ताओं में डॉ आंबेडकर की समाज पुनर्रचना की दृष्टि को मात्र वर्ण आधारित जाति व्यवस्था के विरोध एवं अछूतोद्धार तक ही सीमित करके देखा जाता है, जो उनके साथ अन्याय है. जाति व्यवस्था का विरोध एवं जाति आधारित वैमनस्य, छूआछूत का प्रतिकार मध्यकालीन संतों से लेकर आधुनिक विचारकों तक द्वारा किया गया, परंतु अधिकतर संतों, राष्ट्रनायकों ने वेद व उपनिषद् की द‍ृष्टि से सामाजिक पुनर्रचना के कार्य में सहयोग दिया, जबकि बाबासाहेब ने महात्मा बुद्ध के संघवाद एवं धम्म के पथ से स्वयं को निर्देशित किया.
महात्मा बुद्ध का कथन ‘आत्मदीपोभव’ को डॉ आंबेडकर ने अपने जीवन में न सिर्फ उतारा, बल्कि इससे पूरे समाज के लिए नैतिकता, न्याय व उदारता का पथ आलोकित किया. भगवान बुद्ध का धम्म बुद्धिसंगत विचार एवं सदाचार परायण जीवन का पथ है, जो सभी धर्मों में स्वीकार्य शाश्वत जीवन मूल्य का तत्व है. धम्म का पालन किसी अलौकिक सत्ता में विश्वास पर आधारित नहीं है, यह व्यक्ति की अपनी संभावनाओं, सद्गुणों एवं सच्ची स्वतंत्रता प्राप्ति की अनुभव उपलब्धि का पथ है.
‘भगवान बुद्ध और उनका धम्म’ पुस्तक में डॉ आंबेडकर लिखते हैं कि जीवन की पवित्रता बनाये रखना ही धम्म है, अत: धम्म का संबंध नैतिकता से है, किसी धर्म या मजहब से नहीं. नैतिकता समाज या संघ का अपरिहार्य आधार है. जहां एक व्यक्ति का संबंध दूसरे से है, वहां नैतिकता का पालन आवश्यक है. बाबासाहेब का मानना है कि जब हम किसी समुदाय या समाज में रहते हैं, तो जीवन के मापदंड एवं आदर्शों में समानता होनी चाहिए. यदि यह समानता नहीं हो, तो नैतिकता में पृथकता की भावना होती है और समूह जीवन खतरे में पड़ जाता है. यही चिंतन है, जिसके आधार पर उनका निष्कर्ष था कि हिंदू धर्म ने दलित वर्ग को यदि शस्त्र धारण करने की स्वतंत्रता दी होती, तो यह देश कभी परतंत्र न हुआ होता.
बात शस्त्र की ही नहीं, शास्त्रों की भी है, जिनके ज्ञान से वंचित कर हमने एक बड़े हिस्से को अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक संपदाओं से वंचित कर दिया और आज यह सामाजिक तनाव का एक प्रमुख कारण बन गया है. डॉ आंबेडकर जाति व्यवस्था का जड़ से उन्मूलन चाहते थे, क्योंकि उनकी तीक्ष्ण बुद्धि देख पा रही थी कि हमने कर्म सिद्धांत को, जो व्यक्ति के मूल्यांकन एवं प्रगति का मार्गदर्शक है, भाग्यवाद, अकर्मण्यता और शोषणकारी समाज का पोषक बना दिया है. उनकी सामाजिक न्याय की दृष्टि यह मांग करती है कि मनुष्य के रूप में जीवन जीने का गरिमापूर्ण अधिकार समाज के हर वर्ग को समान रूप से मिलना चाहिए और यह सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र से प्राप्त नहीं हो सकता. इसके लिए आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र भी चाहिए.
एक व्यक्ति एक वोट की राजनीतिक बराबरी होने पर भी सामाजिक एवं आर्थिक विषमता लोकतंत्र की प्रक्रिया को दूषित करती है, इसलिए आर्थिक समानता एवं सामाजिक भेदभाव विहीन जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति वे प्रतिबद्धता का आग्रह करते हैं. डॉ आंबेडकर की लोकतांत्रिक मूल्यों में अटूट अास्था थी. वे कहते थे ‘जिस शासन प्रणाली से रक्तपात किये बिना लोगों के आर्थिक व सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जाता है, वह लोकतंत्र है.’ वे मनुष्य के दुखों की समाप्ति सिर्फ भौतिक व आर्थिक शक्तियों के आधिपत्य से नहीं स्वीकारते थे. वे मार्क्सवादियों से कहते हैं- मनुष्य केवल रोटी के सहारे जिंदा नहीं रहता, उसके पास मन है, उस मन को विचारों की खाद चाहिए. धर्म मनुष्य के मन में आशा का निर्माण करता है. उसे काम करने के लिए प्रवृत्त करता है. उनके अनुसार धर्म सिर्फ पुस्तकों का वाचन या पराप्राकृतिक में विश्वास नहीं है, यह धम्म है, नीति है, जो सभी के लिए ज्ञान के द्वार खोलता है, जिसमें कोई भेदभाव या संकुचितता नहीं है.
डॉ आंबेडकर ज्ञान आधारित समाज का निर्माण चाहते थे, इसलिए उनका आग्रह था शिक्षित बनो, संगठित होओ और संघर्ष करो. इस संघर्ष में धम्म का अनुसरण उनकी निष्ठा थी. बाबासाहेब महात्मा बुद्ध के जिस धम्म पथ को स्वीकारते हैं, उसमें प्रज्ञा या विचार-धम्म महत्वपूर्ण है, परंतु केवल ज्ञान खतरनाक है, यह शील के बिना अधूरा है, इसलिए शील या आचरण-धम्म भी महत्वपूर्ण माना है. प्रज्ञा, शील, करुणा और मैत्री भावों से संचालित समाज ही समरस समाज हो सकता है, जो सामाजिक क्रांति का नैतिक आदर्श है. यह आदर्श बाबासाहेब ने हम सभी को दिया है.
राष्ट्रनिर्माताओं की अग्रणी पंक्ति में प्रतिष्ठित बाबासाहेब डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर अर्थशास्त्री, न्यायविद्, राजनेता और समाज सुधारक थे. उन्होंने भारतीय संविधान की रचना-प्रक्रिया की अगुवाई की और देश में दलित बौद्ध आंदोलन का सूत्रपात किया. दलित समुदाय के साथ होनेवाले सामाजिक भेदभाव को मिटाने और स्त्रियों व श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए वे जीवनपर्यंत सक्रिय रहे.
उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय और ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कीं. ब्रिटेन में ही उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की. शिक्षा पूरी कर वे मुंबई में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक बने और कुछ समय के बाद साप्ताहिक पत्रिका ‘मूकनायक’ का प्रकाशन शुरू किया. शिक्षण के अलावा उनका संबंध वकालत के पेशे से भी रहा था.
औपनिवेशिक शासन के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासनिक प्रतिनिधि तथा  स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री के तौर पर उन्होंने समाज के वंचित वर्गों को अधिकार-संपन्न करने के लिए अनेक पहलें कीं. समाज, धर्म, अर्थव्यवस्था, कानून आदि विषयों पर उनकी कालजयी रचनाएं आज भी देश को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. आधुनिक भारत के निर्माण में उनकी अप्रतिम भूमिका इस बात से सिद्ध होती है कि उनके उल्लेख के बिना कोई भी समकालीन चर्चा पूरी नहीं हो सकती है.
बाबासाहेब लिखित कुछ प्रमुख किताबें -
- हू इज शुद्रा?
-द बुद्धा एंड हिज धम्मा
-थॉट्स ऑन पाकिस्तान
-पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया
-आइडिया ऑफ ए नेशन
-द अनटचेबल
-फिलोस्फी ऑफ हिंदुइज्म
-सोशल जस्टिस एंड पॉलिटिकल सेफगार्ड ऑफ डिप्रेस्ड क्लासेज
-गांधी एंड गांधीइज्म
-ह्वाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल
-बुद्धिस्ट रेवोल्यूशन एंड काउंटर-रेवोल्यूशन इन एनशिएंट इंडिया
-द डिक्लाइन एंड फॉल ऑफ बुद्धिइज्म इन इंडिया