बारह अरों का है काल चक्र रहता है अनवरत गतिमान। रंग भरे हर अरे में मौसम के सृष्टि से संहृति तक संधान।
मनुष्य एक अंश है सृष्टि का न वह मौसम है न कालचक्र चूक सकता है निज मार्ग से तदपि नित करता लक्षसंधान।
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