जान, ज्ञान और मान
एक बार बाबा साहब काम करते-करते भूख महसूस करते हैं तो अपनी दवा और ख़ाना मंगाते हैं और कहते हैं कि मेरा सम्पूर्ण संघर्ष मान के लिए है यह प्रत्येक व्यक्ति का होना चाहिए। बार-बार सामाजिक अपमान का शिकार होने पर अपनी जान दे देने का कुविचार आता है। तत्काल सुविचार आता है कि मानसिक रोगियों से परेशान होकर स्वयं को मिटाने की अपेक्षा रोगी के रोग को मिटाना ज्यादा श्रेयशकर है। किसी भी समाज में रोगियों की अपेक्षा डाक्टर कम ही होते हैं। अगर डाक्टर ही आत्महत्या कर ले तो सम्पूर्ण समाज रोगग्रस्त होकर मिट जायेगा। मेरी समझदारी इसी में है कि स्वयं को सुरक्षित रखूं और समाज के रोग को दूर करूँ। मेरी जान समाज की जान के लिए जरूरी है। समय पर दवा और भोजन इसलिए लेता हूँ ताकि मैं अपने इस शरीर का राष्ट्र व समाज हित में अधिक-अधिक उपयोग कर सकूँ। मैं रात-रात भर इसलिए पढ़ता हूँ ताकि मैं अपने देश व समाज की बीमारी को भलीभांति जान सकूँ और समुचित प्रयास कर सकूँ। मेरा देश जिस भयानक रोग से ग्रसित है उसके आगे मेरा शारीरिक रोग कुछ भी नहीं है फिर भी मैं अपने दैहिक रोग को नजरअंदाज नहीं करता दवा लेता हूँ । और देश के रोग की दबा बनाने में लगा हूँ।
Friday, 31 May 2019
जान, ज्ञान और मान
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment