कांव कह कर कागा कहे कागी को,
कोई कहे कर्कश कौआ कोई काना।
कोयल के कण्ठ को कहते कामुक,
कौन किसके कर्मों का कायल होता?
मैं कौआ, सुरीली कोयल का पालन हार,
मैं कौआ, बैठ मंगरे पै, मायके भेजन वार,
मैं कौआ, कनागत पुरखों का तारन हार,
मैं काकचेष्टा का उपदेशक हूँ रंग न निहार।
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