Monday, 29 April 2019

चुंकृति

एक पंछी नवांगतुक बोल रहा है, हे गुरुवर!
कितने ही पंछी शब्द हैं पाये, मुझे भी दो वर।
मधुर मोहक चुङ्कृति छेड़ूं हर-भोर  हर-घर,
सर्वत्र फुदकूं हो चाहे मंदिर मस्जिद गिरजाघर ।।

मैंने भी है प्यार किया, बसा लिया मैने भी घर,
मेरी बीबी पेट से हुई, बनाना है मुझे अपना घर।
एक आरा उधारी में दे दो, भटक रहा हूँ दर-दर,
निकलेंगे चूजे जब अंडों से झंकृत हो उठेगा घर।।

मानता हूँ कुछ तिनके बिखरेंगे तुम्हारे आँगन में,
कुछ कुतरन, कुछ बीट और कुछ होंगे हमारे पर।
पानी पीऐंगे घिनौची का और दाने कुछ आंगन के
पर वादा है मेरे बच्चे भी फुदकैंगे तुम्हारे ही घर।।

मैं भी वही हूँ, हो जो तुम और तुम्हारे अपने भी,
एक ही है अम्बर छत तुम्हारी, है वही मेरा भी घर।
जिस हवा से हैं ज़िन्दा हम, हो उसी से तुम भी,
है एक-सा दाना-पानी हमारा और आपका गुरुवर!।।

तप रहा है सूर्य सिर पर और खुले में कौओं का डर,
मौसम आंधी-तूफानों का है और ओलावृष्टि का डर।
बच्चे-बीबी के साथ सुरक्षित रहना चाहूँ मैं तुम्हारे घर,
शरण दो, शरण दो, शरण दो, शरण दो हे गुरुवर!।।

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