ए विट्टू की आई! मैं रमाई बोल रही हूं,
तूं सिर्फ अपने बच्चों को देख,
पति पर पूरा हक़ जमा, बोल रही हूं।
समाजकार्य में बिगड़ जायेगा,
लड़-झगड़ कर रोक, बोल रही हूं।
अपने पर ही खर्च कर,
पड़ौस की भूख मत देखना, बोल रही हूं।
कोई चीखता रहे मत निकालना,
परिवार को ले, खिड़कियां बंद कर सो जा, बोल रही हूं।
न तू रमा बनना, न उन्हें साहेब बनने देना,
रमा बनना, साहेब बनना आसान नहीं है, बोल रही हूं।
तूं मत बनना, तेरे बस की बात नहीं है,
तू मत बनने देना, तेरे पति की औकात नहीं है, बोल रही हूं।
ऐ आई! कलेजे पर पत्थर रखना पड़ता है,
पति को समाज के साथ बांटना पड़ता है, बोल रही हूं।
तेरे बच्चे, तेरा पति तूं जान
मैंने क्या खोया? क्या पाया? सब जानते हैं,
रमाई हूं बोल रही हूं।
गौतम रामहेत।
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