Friday, 25 October 2019

      (चौदह चट्टान लेख-03)                        ( गिरनार )

🌹वृहद-सिलालेख-03🌹
               (चौदह चट्टान लेख-03)
                       ( गिरनार )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ देवानंपियो पियदसि राजा एवं आह
  द्-बादसदस-वासा-भिसितेन मया इदं
  आञापितं

२ सर्वत विजिते मम युता च राजूके च
   प्रादेसिके च पंचसु पंचसु वासेसु अनुसंयानं

३ नियातु एतायेव अथाय इमाय धंमानुसस्टिय
   यथ अञा

४ य पि कंमाया साधु मातरि च पितरि च सुस्रुसा
  मित्र-संस्तुत-ञातीनं बाम्हण

५ समणानं साधु दानं प्राणानं साधु अनारंभो
अप-व्ययता अप-भाडता साधु

६ परिसा पि युते आञपयिसति गणनायं हेतुतो च व्यंजनतो च

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अनुवाद :-

देवानंपियो पियदसि राजा ऐसा कहता है :
राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में मैंने यह आज्ञा दी,

मेरे राज्य में सभी जगह युक्त, राजूक, और प्रादेशिक बारी-बारी से 🔸पांच-पांच वर्ष🔸
पर अन्य कामों के अलावा इस काम के लिएे अर्थात 🔸धम्मोपदेस🔸देने के लिए दौरों पर अवश्य जायें,

🔸माता-पिता की सेवा करना अच्छा है;
🔸मित्र,
🔸परिचित,
🔸स्वजनों,
🔸बाम्हण और
🔸समणों  को दान देना अच्छा है ;

🔸जीव-हिंसा न करना अच्छा है;
🔸थोडा व्यय करना और
🔸थोडा संचय करना अच्छा है ।

परिषद भी मेरे आदेशों और इनके भावों (व्यंजन) के अनुसार गणना के लिए युक्तों को आज्ञा देगी ।

        - तीसरा-वृहद-सिलालेख समाप्त -

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टिप्पण :

👀 देखें 👀 -

🔸भोगों के विभाजन व संचय हेतु ,
🔹सिगालोवाद सुत्त व
🔹व्याग्घ्र-पाद सुत्त।

🔸 दान के संबंध में -
🔹माघ सुत्त व
🔹दान सुत्त ।

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