🌹वृहद-सिलालेख-03🌹
(चौदह चट्टान लेख-03)
( गिरनार )
🌹
मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
☝
१ देवानंपियो पियदसि राजा एवं आह
द्-बादसदस-वासा-भिसितेन मया इदं
आञापितं
☝
२ सर्वत विजिते मम युता च राजूके च
प्रादेसिके च पंचसु पंचसु वासेसु अनुसंयानं
☝
३ नियातु एतायेव अथाय इमाय धंमानुसस्टिय
यथ अञा
☝
४ य पि कंमाया साधु मातरि च पितरि च सुस्रुसा
मित्र-संस्तुत-ञातीनं बाम्हण
☝
५ समणानं साधु दानं प्राणानं साधु अनारंभो
अप-व्ययता अप-भाडता साधु
☝
६ परिसा पि युते आञपयिसति गणनायं हेतुतो च व्यंजनतो च
- - - -
🌹
अनुवाद :-
☝
देवानंपियो पियदसि राजा ऐसा कहता है :
राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में मैंने यह आज्ञा दी,
☝
मेरे राज्य में सभी जगह युक्त, राजूक, और प्रादेशिक बारी-बारी से 🔸पांच-पांच वर्ष🔸
पर अन्य कामों के अलावा इस काम के लिएे अर्थात 🔸धम्मोपदेस🔸देने के लिए दौरों पर अवश्य जायें,
☝
🔸माता-पिता की सेवा करना अच्छा है;
🔸मित्र,
🔸परिचित,
🔸स्वजनों,
🔸बाम्हण और
🔸समणों को दान देना अच्छा है ;
☝
🔸जीव-हिंसा न करना अच्छा है;
🔸थोडा व्यय करना और
🔸थोडा संचय करना अच्छा है ।
☝
परिषद भी मेरे आदेशों और इनके भावों (व्यंजन) के अनुसार गणना के लिए युक्तों को आज्ञा देगी ।
- तीसरा-वृहद-सिलालेख समाप्त -
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
टिप्पण :
👀 देखें 👀 -
☝
🔸भोगों के विभाजन व संचय हेतु ,
🔹सिगालोवाद सुत्त व
🔹व्याग्घ्र-पाद सुत्त।
☝
🔸 दान के संबंध में -
🔹माघ सुत्त व
🔹दान सुत्त ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment