Friday, 25 October 2019

शाहबाज गढी 8

🌹वृहद-सिलालेख-08🌹
               (चौदह चट्टान लेख-08)
                    ( शाहबाजगढ़ी )

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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ अतिक्रतं अतरं देवनंप्रिय विहर-यत्र नम निक्रमिषु अत्र म्रु गय अञनि च एदिशनि अभिरमनि अभूवसु सो देवनंप्रियो प्रियद्रशि रज दशवषभिसितो सतं
निक्रमि सबोधि
तेनद ध्रुम - यत्र
अत्र इयं होति श्रमण - ब्रमणनं द्रशने दनं वुढनं दशन हिरञ-प्रटिविधने च जनपदस जनस द्रशन ध्रमनुशस्ति ध्रम - परिपरूछ च ततोपयं एषे भुये रति भोति देवनंप्रियस प्रियद्रशिस रञो भगो अंञि

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अनुवाद :-

अतीत काल में देवनंप्रिय लोग,
🔺विहार-यात्राओं🔺
     पर निकलते थे ।
     इन यात्राओं में मृगया (शिकार) और इसी
     तरह के दूसरे आमोद-प्रमोद होते थे ।

     किंतु देवनंप्रियस प्रियद्रशिस रज (राजा)   
     अभिषेक के
💐 दस वर्ष बाद संबोधि (बुद्ध-गया) 💐
      को गए तब से
🎯 धम्म-यात्राएं 🎯
      हुई जिनमें यह होता है :
🔸 स्रमण - ब्रमणनं का दर्शन करना और उन्हें
      दान देना ;
🔸 वृद्धजनों का दर्शन और उन्हें सोने का दान
      करना ;
🔸 ग्रामवासियों का दर्शन और उन्हें धम्मोपदेस
      देना, और
🔸 उनके तद-उपयोगी धम्म की चर्चा करना।

🎯 देवनंप्रियस प्रियद्रशिस की  -
🔹 इसमें बड़ी प्रीति है और
🔹 यह उसका अतिरिक्त भाग (लाभ)  है ।

        - आठवॉ-वृहद-सिलालेख समाप्त -

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टिप्पण : -

🌹इस लेख में सम्राट असोक द्वारा
     धम्म-यात्राओं का वर्णन आया है ।

🌹महामंगल-सुत्त का क्रियांवयन सुनिश्चित
     करना ही धम्म-यात्रायों का ध्येय था,
     यही यह सिलालेख साबित करता है ।

🌹केवल भगवान् तथागत गोतम बुद्ध या
     उनसे पूर्व के 27- बुद्ध से संबन्धित स्थलों
     पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देना ही,
     धम्म-यात्राओं का उद्देश्य नहीं था ।

🌹देखें महामंगल-सुत्त (सुत्तनिपात) ।

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