🌻धम्म प्रभात🌻
बौद्ध संस्कृति में रक्षाबंधन
(सत्य जानकर असत्य का त्याग करें।)
परित्त- परित्राण पाठ ( सुत्त पाठ ) के बाद परित्राण करने वाले भन्ते या बोधाचार्य सुत्र बंधन करते हैं। उस समय निम्नलिखित गाथा का उच्चारण करते हैं ।
"सब्बे बुद्धा बलप्पत्ता पच्चेकानञ्च यं बलं ।
अरहन्तानञ्च तेजेन रक्खं बन्धामि सब्बसो ।।"
अर्थात -
मैं सभी बल -प्राप्त बुद्धो, प्रत्येक बुद्धो तथा अर्हंतो के प्रताप से सब प्रकार से यह रक्षा बाँध रहा हूँ ।
उपरोक्त बौद्ध संस्कृति को बिगाड ने के लिए ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा में एक मंत्र की रचना की जो निम्न प्रकार हैं ।
मंत्र :
"येन बद्धो, दानवेन्द्रो बलिराजा महाबल:
तेन त्वः, प्रतिबद्धमे नमो रक्षे,
मा चल, मा चल ।"
अर्थात--
ये धागा मैं तुझे इस उद्देश्य से बांधता हूँ , जिस उद्देश्य से तेरे सम्राट बलिराजा को बांधा गया था। आज से तू मेरा गुलाम है । मेरी रक्षा करना तेरा कर्त्तव्य है । अपने समर्पण से हटना नहीं - मा चल मा चल ।
जो समाज के लोग सातवी शताब्दि तक बौद्ध धर्म को मानने वाले थे, उनको जबरन अछूत बनाकर पशुवत बना दिया। पढना और पढाने पर पाबंदी होने के कारण उनको संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं हो पाया । इसके कारण (बौद्ध) पुरखों ब्राह्मण के षड्यंत्र को समझ नही पाये और ब्राह्मणों के हाथ रक्षा बंधवाते रहें ।
अब सच्चाई (हमारे) सामने हैं ।
बौद्ध संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिये बौद्धों को (हमें) सच्चाई जाननी होगी, माननी होगी और अपनानी होगी।
अपनायेंगे तब नये समाज का निर्माण कर पायेंगे ।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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