जी,
अमावस्या को उपोसथ का पालन करना चाहिए ।
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🙏उत्सव मनाने की विधि🙏
उपासक/उपासिकाओं के अनुरोध पर किसी भी उत्सव को मनाने कि बौद्घ विधि का संकलन तैयार कर प्रेषित किया जा रहा है ।
☝
अन्य उपासक भी इसी विधि का पालन कर सकते हैं ।
☝
एक बार पूरा पढकर सोचे कि यदि समस्त भारतीय नागरिक इस विधि के अनुसार अपने अपने उत्सव मनाने लगें तो भारत का समाज कैसा बन जायेगा ।
🌹"उपोसथ-व्रत"🌹
(उपासक/उपासिका-विधि)
🙏
प्रात:काल उठकर -
🔹नाह-धो-कर किसी
🔹बुद्ध-प्रतिमा या चित्र या बुद्ध-प्रतीक
(पीपल-वृक्ष या बरगद-वृक्ष) के सम्मुख
जाकर बैठे,
अपने साथ -
🔹मोमबत्ती/दीया,
🔹अगरबत्ती, धूपबत्ती,
🔹फूल व फूल-माला,
🔹पानी सहित एक लोटा,
🔹सफेद-मोटा-धागा अवश्य लेते जायें ।
🔸मोमबत्ती/दीया को प्रज्वलित करके बुद्ध
प्रतीक के सम्मुख रखें,
🔸अगरबत्ती-धूपबत्ती को जला-बुझाकर सुगंध
फैलाने के लिये बुद्ध प्रतीक के सम्मुख रखें,
🔸पानी से भरे लोटे में
तीन/पॉच-पीपल/बर्गद-वृक्ष-की-पत्तियों
को डाल दें,
🔸अब सफेद-मोटे-धागे के एक सिरे को पानी
के लोटे से बांध/डाल दें और
सफेद-मोटे-धागे को सबसे पहले
बुद्ध-प्रतीक के आगे से ले जाकर
बुद्ध-प्रतीक के पीछे से घुमाते हुये
समस्त उपस्थित,
इच्छुक-उपासकों/उपासिकाओं के
कर-बद्ध 🙏 हाथों के अंगुठे व अंगुलिओं
के बीच से मे पकडा़ते हुये सफेद-मोटे-धागे
के दूसरे सिरे को भी पानी से भरे उसी लोटे
में डाल दें ।
और
🔸अब बुद्ध-प्रतीकों को नमन 🙏 करें ।
🔸नमन-विधि -
(उच्चारण करें) -
ति सरणं -
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा समबुद्धस्स । दुतियं-पि
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा समबुद्धस्स ।
ततियं-पि
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा समबुद्धस्स ।
बुद्धं सरणं गच्छामि ।
धम्म सरणं गच्छामि ।
संघं सरणं गच्छामि ।
दुतियं-पि बुद्धं सरणं गच्छामि । ।
दुतियं-पि धम्म सरणं गच्छामि । ।
दुतियं-पि संघं सरणं गच्छामि । ।
ततियं-पि बुद्धं सरणं गच्छामि । । ।
ततियं-पि धम्म सरणं गच्छामि । । ।
ततियं-पि संघं सरणं गच्छामि । । ।
पञ्च सीलं -
पाणा-ति-पाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अदिन्ना-दाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि । कामेसु-मिच्छा-चारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।
मुसा-वादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामी । सुरा-मेरय-मज्ज पमाद-अट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामी ।
🔸साधु !
🔸साधु ! !
🔸साधु ! ! !
(तदुपरांत उच्चारण करते हुए उपासथ-व्रत कि सपथ लें 👇👇👇) -
भगवान् तथागत गोतम बुद्ध ने कहा है -
☀
"अब मैं तुम्हें गृहस्थ-धम्म बताता हूं,
जैसा कि करने वाला सावक अच्छा होता है। जो सम्पूर्ण भिक्खु धम्म है,
उसका पालन सपरिग्रही
(-गृहस्थ=उपासक/उपासिका)
से नहीं किया जा सकता ।।
☀
संसार में जो स्थावर और जंगम प्राणी हैं,
न उनको जान से मारे, न मरवाये, और
न तो उन्हें मारने की अनुमति दे।
सभी प्राणियों के प्रति दण्ड त्यागी हो।।
☀
तब दूसरे की समझी जाने वाली किसी चीज को चुराना त्याग दे, न चुराये, और
न चुराने वाले को अनुमति ही दे।
सभी प्रकार की चोरी को त्याग दे।।
☀
जानकार पुरुष जलती हुई आग के गड्ढे की तरह अपब्बजित जीवन को छोड़ दे।
पब्बजित जीवन का पालन न कर सकने पर भी पर (पराई) स्त्री/पुरूष का सहवास न करे।।
☀
सभा या परिषद् में जाकर एक दूसरे के लिए झूठ न बोले, न तो (स्वयं झूठ) बोले और
न बोलने वाले को अनुमति दे।
सब प्रकार के असत्य-भाषण को त्याग दे।।
☀
जो गृहस्थ इस धम्म को पसन्द करता हो, वह
'यह उन्मादक है'
ऐसा जानकर शराब का पान न करे,
न पिलावे और
न पीने वाले के लिए अनुमति दे।।
☀
मूर्ख लोग मद के कारण बुरे कर्म करते हैं और दूसरे प्रमादित लोगों से कराते भी हैं।
बुरे कर्म के घर को त्याग दो,
जो उन्मादक है, मोहक है, और
मूर्खों को प्रिय है।।
☀
जीव-हिंसा न करे,
चोरी न करे,
झूठ न बोले और
न शराब पिये।
अपब्बजित जीवन और मैथुन से विरत रहे
और रात्रि में विकाल भोजन न करे।।
☀
आठ अंगों वाला (अट्ठांगिक-उपोसथ)
न माला धारण करे,
न गंध का सेवन करे,
चौकी, भूमि या जमीन पर सोये-
-इसे उपोसथ कहते हैं।
दुख पारंगत बुद्ध द्वारा यह प्रकाशित किया गया है।।
☀
प्रत्येक पक्ष की चतुदशी, पूर्णिमा,
अट्ठमी और प्रतिहार्य पक्ष को प्रसन्न मन से अट्ठांग उपोसथ का पूर्णरूप से पालन करना चाहिए।।
☀
तब जानकार पुरुष सुबह उपोसथ ग्रहण कर अपनी शक्ति के अनुसार सद्धापूर्वक अनुमोदन करते हुए प्रसन्नता से भिक्खुसंघ को अन्न और पेय का दान दे।।
☀
धम्म से माता-पिता का पोषण करे,
किसी धम्मिक कार्य में अपने को लगाये।
जो अप्रमत्त गृहस्थ इस व्रत का पालन करता है, वह स्वयंपभ नामक (स्वर्ग) लोक में उत्पन्न होता है " ।।
🎯 (फिर उच्चारण करें) -
"मैं अट्ठंगिक-उपोसथ-व्रत को धारण-कर पूर्ण-रूप से पालन करने की सपथ लेता/लेती हूँ" ।
(अट्ठंगिक-उपोसथ-व्रत को धारण करने के बाद महामङ्गल-सुत्त का उच्चारण करें) -
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🌹महामङ्गल सुत्तं🌹
भगवन्तं गाथाय अज्झभासि -
🙏
१ . " बहू देवा मनुस्सा च , मङ्गलानि अचिन्तयु ।
आकङ्घमाना सोत्थानं , ब्रूहि मङ्गलम् उत्तमं"।
🎯
" बहु देवा मनुस्सा च , मगलानि अचिन्तयुं । आकंखमाना सोत्थानं , ब्रूहि मङ्गलम् उत्तमं " ।।
🎯
" असेवना च बालानं , पण्डितानं च सेवना ।
पूजा च पूजनीयानं , एतं मङ्गलम् उत्तम ।।
🎯
पति-रूप-देस-वासो च , पुब्बे च कतपुञ्ञता ।
अत्त-सम्मा-पणिधि च , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
बाहु-सच्चं च सिप्पं च, विनयो च सु-सिक्खितो। सु-भासिता च या-वाचा , एतं मङ्गलम् उत्तम । ।
🎯
माता-पितु उपट्ठानं , पुत्त-दारस्स सङ्गहो । अनाकुला च कम्मन्ता , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
दानं च धम्म-चरिया च , ञातकानं च सगहो । अनवज्जानि कम्मानि , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
आ-रति वि-रति पापा , मज्ज-पाना च संयमो ।
अप्पमादो च धम्मेसु , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
गारवो च निवातो च , सन्तुट्ठी च कतञ्ञुता ।
कालेन धम्म-सवणं , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
खन्ती च सोव-चस्सता , समणानं च दस्सनं । कालेन धम्म-साकच्छा , एतं मङ्गलम् उत्तमं । ।
🎯
तपो च ब्रह्मचरियं च , अरिय-सच्चान दस्सनं । निब्बाण-सच्छि-किरिया च, एतं मङ्गलम् उत्तमं।
🎯
फुट्ठस्स लोक-धम्मे-हि , चित्तं यस्स न कम्पति ।
असोकं विरजं खेमं , एतं मङ्गलम् उत्तम । ।
🎯
एतादिसानि कत्वान , सब्बत्थम-पराजिता ।
सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति , तं तेसं मङ्गलम्
उत्तमन्ति " । ।
🌲महामङ्गलसुत्तं निहितं🌲
🌷
(तदुपरांत) -
सफेद-मोटे-धागे को उपस्थित इच्छुक उपासक/उपासिकाओं के कर-बद्ध हाथों से निकाल कर समेट लें, व
🎯
सब्बीतियो विवज्जन्तु , सब्ब-रोगो विनस्सतु । । मा ते भवत्वन्त-रायो , सुखी दीघायु-को भव । ।
☝
(अनुवाद :
आपकी सभी विपदायें समाप्त हों,
आपके सभी रोग विनाश को प्राप्त हों,
आपके मार्ग कि बांधाओं का अंत हो,
आप सुखी-दिर्घायू को प्राप्त हों ।)
☝☝☝
सुत्त का उच्चारण करते हुए,
उपोसथ में सम्मिलित समस्त
इच्छुक उपासक/उपासिका के
दाया (सीधे) हाथ में
उस सफ़ेद-मोटा-धागा
🌹(परित्त-बंधन = रक्षा-बंधन)🌹
को बांधकर कैंची से काटते जाये ।
ताकि उपासक/उपासिका का
ध्यान जब भी अपने दायें हाथ
पर बंधे परित्त-बंधन पर जाये,
तो उसे "उपोसथ" में लिए गये
आठ-सील स्मृत हो जाऐं ।
🎯
अंत में
🌹"महामङ्गल-सुत्त"🌹
का प्रादेशिक भाषा में,
अनुवाद अवश्य सुनाऐं -
🎯
अनुवाद -
🌹महा-मङ्गल-सूत्त🌹
🙏 यह निवेदन किया -
🔹
1. " बहुत से देवता एवं मनुष्य ,
अपने कल्याण हेतु ,
मङ्गलकामना किया करते हैं ,
कृपया ( उन पर अनुकम्पा करते हुए )
किसी उत्तम मङ्गलपाठ का निर्देश करें " ।
🔸( भगवान् बोले - )
२ . " मूर्खों की सेवा न कर ,
पण्डित (बुद्धिमान्) की सेवा करना,
पूजनीय की ही पूजा करना -
- यही उत्तम मङ्गल है
☝
३ . अनुकूल देश में रहना ,
पूर्वजन्म में किया हुआ पुण्य ,
किसी भी विषय पर अपना उचित निश्चय
करने की क्षमता प्राप्त करना -
- यही उत्तम मङ्गल हैं । ।
☝
४ . बहुश्रुत होना (अतिशय विद्वत होना)
शिल्प (आजीविका के सम्मानित साधन
प्राप्त करने हेतु) सीखना ,
सुशिक्षित होना ,
मधुर एवं प्रिय वाणी बोलना -
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
५ . माता - पिता की सेवा करना ,
बच्चों एवं पत्नी/पति आदि का संरक्षण
करना ,
कुल-विनास के कर्म न करना -
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
६ . दान देना , धर्माचरण करना ,
ज्ञातिजनों ( परिजनों ) का संरक्षण करना ,
आजीविका के साधनों को समाप्त न करना
(निर्दोष कार्य करना) -
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
७ . पापों से दूर रहना , पापों का त्याग करना ,
मद-पान में संयम , आलस/भूल न करना
( धर्माचरण में सदा सावधान रहना)-
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
८ . वृद्धों का सम्मान ( गौरव ) , एकान्तवास ,
अपने कृत एवं प्राप्त पर सन्तोष करना ,
किसी के द्वारा किये उपकार के प्रति कृतज्ञता
प्रकट करना ,
समय पर धर्म-प्रवचन सुनना तथा उसका
अभ्यास करना -
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
९ . किसी के द्वारा कृत अपकार (दोष) को
क्षमा करना , सबके सम्मुख विनम्रता ,
समण (बौद्ध-भिक्खु) के दर्शन ,
समय समय पर धर्म का साक्षात्कार करना-
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
१० . तपस्या , ब्रह्मचर्य का पालन करना ,
चार अरिय-सच्चं (आर्य-सत्यों) का
दर्शन करना (मनन एवं निदिध्यासन),
निब्बान का साक्षात्कार करना -
- यही उत्तम मङ्गल हैं ।
☝
११ . जिस पुरुष का चित्त लोकधर्म ( सुख -
दुःख , यश - अपयश , हानि - लाभ ,
निन्दा प्रशंसा ) से सम्पर्क होने पर भी
कुछ भी विचलित नहीं होता ;
शोकरहित ,
निर्मल एवं आनन्दमय ही रहता है -
- यही उत्तम मङ्गल है ।
☝
१२ . ऐसे ( उपर्युक्त ) कर्म करने वाले सत्पुरुष
स्वयं को सर्वत्र अपराजित ( विजयी )
अनुभव करते हैं ,
उनका सर्वत्र कल्याण होता है ;
यह उनके लिए -
- उत्तम मङ्गल है " ।
🎁
🔸तदुपरांत अन्न-दान सामर्थ्य-अनुसार कर
सकते हैं ।
🔸स्वयं भी भोजन ग्रहण करें ।
🔸दान किसी गरीब-निर्धन-असहाय-बृद्धजन
व भिक्खु को कर सकते हैं ।
🔸खीर व खिचड़ी बना कर दान करना बौद्ध
परिवारों की पहचान रही है ।
🌻
बौद्ध परिवारों में इन्हें बनाने कि विधि भी भिन्न रही है ।🌻
🌀
जैसी खीर ,
🙏"उपासिका सुजाता"🙏 ने
उरूवेला में बनाई थी, वैसी खीर बना पाना आज वर्तमान में संभव भी नहीं है ।
लेकिन स्थानीय परंपरा अनुसार खीर बना कर दान की जा सकती है ।
जैसी यवागू (खिचड़ी) ,
🙏"उपासिका विसाखा"🙏 ने
श्रावस्ती में बना कर दान करती थी,
वह आज भी संभव है ।
{खीर-दान व यवागू-दान (खिचड़ी-दान)}
🔸खीर व खिचड़ी में औषधिय तत्व होते हैं।
🙏
जाऊर या तस्मई या यवागू या यागू या खिचड़ी
सब पर्यायवाची शब्द हैं ।
पतली खिचड़ी में दस-गुण देखकर,
अन्धकविन्द, राजगह में भगवान् तथागत गोतम बुद्ध ने यवागू (यागू = खिचड़ी) की अनुज्ञा की थी ।
🔸इसलिए इनका दान करना चाहिए ।
🌹 🌹 🌹 🌹
🙏 उपरोक्त समस्त विधि को प्रात: 11:00
बजे से पूर्व पूर्ण कर लेना चाहिए,
ताकि पूर्वाह्ण से पूर्व ही उपोसथ-व्रत लेने
वाले लोग भोजन ग्रहण करके बाकी बचे
समय में,
🎯
उपोसथ वाले दिन -
👇👇👇
🔸"सिगालोवाद सुत्त" ,
🔸"महानाम सुत्त" ,
🔸"हत्थक सुत्त" ,
🔸"व्यग्घपज्ज" ,
🔸"माघ सुत्त" ,
🔸"दान सुत्त" ,
🔸"पराभव सुत्त" ,
🔸"थपति सुत्त" ;
🔸आदि-आदि सुत्त जो
🔹उपासकों/उपासिकाओं को कहें गये सुत्तं हैं 🔹उनको दिन-रात मनोसात करते हुए गुजारें ।
🌀 रात्रि में भोजन न करें,
🌀 रात्रि में कुछ पेय-पदार्थ आवश्यकता होने
पर ले सकते हैं ।
🌹
टिप्पण :-
यह तो केवल आरंभिक विधि है ।
🙏
एक बार इस विधि में परिवार या समाज पारंगत हो जाता है तो,
☝
उसके बाद इसमे एक-विधि और जुड़ जाती है ।
🎯 वह विधि है -
🔹सार्वजनिक रूप से,
🔹पिछले उपोसथ व्रत
🔹के बाद से
🔹वर्तमान उपोसथ व्रत
🔹के समय तक
🔹कितनी बार,
🔹कौन-कौन से,
🔹🌹"दस-कुसल-धम्म"🌹
- का उलंघन मेरे स्वयं के द्वारा
किया गया।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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