Thursday, 31 October 2019

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🌹वृहद-स्तंभ-लेख-7🌹

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मूल-लेख (लिप्यांतरण) -

१ देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा ये अतिकंतं

२ अंतलं लाजाने हुसु हेवं इछिसु कथं जने

३ धंम - वढिया वढेया नो चु जने अनुलुपाया धंम-वढिया

४ वढिथा एतं देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा एस मे

५ हुथा - अतिकंतं च अंतंलं हेवं इछिसु लाजाने कथं जने

६ अनुलुपाया धंम - वढिया वढेया ति नो च जने अनुलु - पाया

७ धंम - वढिया वढिथा से किनसु जने
अनुपटिपजेया

८ किनसु जने अनुलुपाया धंम - वढ़िया वढेया ति किनसु कानि

९ अभ्युनामयेहं धंम - वढिया ति एतं देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं

१० आहा एस मे हुथा धंम - सावनानि सावापयामि - धंमानुसथिनि

११ अनुसासामि एतं जने सुतु अनुपटीपजीसति अभ्युंनमिसति

१२ धंम - वढिया च बाढं वढिसति एताये मे अठाये धंम - सावनानि सावापितानि धंमा नुसथिनि विविधानी पानपितानि यथा पुलिसा  पि बहुने
जनसि आयता ए ते पलियोवदिसंति पि पविथलिसंति पि लाजूका पि बहुकेसु पान - सत - सहसेसु आयता ते पि मे आनपिता हेवं च हेवं च पलियोवदाथ

१३ जनं धंम - युति
देवानंपिये पियदसि हेवं आहा
एतमेव मे अनुवे - खमाने धंम - थंभानि कटानि धंम - महामाता कटा धंम-सावने कटे
देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा
मगेसु पि मे निगोहानि लोपापितानि छायोपगनि होसंति
पसु - मुनिसानं अंबा - वडिक्या लोपापिता अढ - कोसिक्यानि पि मे उदुपानानि

१४ खानापापितानि निंसिढया च कालापिता आपानानि मे बहुकानि तत तत कीलापितानि पटीभो - गाये पसु - मुनिसानं
लहुके चि एस पटीभोगे नाम
विविधाया हि सुखायनाया पुलिमेहि पि लाजीहि ममया च सुखयिते लोके इमं चु धंमानुपटीपती अनुपटीपजंतु ति एतदथा मे

१५ एस कटे देवानंपिये पियदसि हेवं आहा
धंम - महामाता पि मे ते बहुविधेसु अठेसु अनुग- हिकेसु वियापटासे पवजीतानं चेव गिहिथानं च सव-पासंडेसु पि च वियापटासे
संघठसि पि मे कटे इमे वियापटा होहंति ति हेमेव
बाभनेसु आजीविकेसु पि मे कटे

१६ इमे वियापटा होहंति ति निगंठेसु पि में कटे इमे वियापटा होहंति नाना - पासंदेसु पि में कटे इमे वियापटा होहंति ति पटिविसिठं पटीविसिठं तेसु तेसु ते ते महामाता धंम - महामाता चु मे एतेसु चेव वियापटा सवेसु च अंनेसु पासंडेसु देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा

१७ एते च अंने च बहुका मुखा दान - विसगसि वियापटासे मम चेव देविनं च सवसि च मे आलोधनसि ते
बहुविधेन आकालेन तानि तानि तुठायतनानि पटीपादयंति हिद चेव दिसासु च
दालकानं पि च मे कटे अंनानं च देवि - कुमालानं इमे दान - विसगेसु वियापटा होहंति ति

१८ धंमापदानठाये धंमानुपटिपतिये
एस हि धंमापदाने धंमपटीपति च या इयं दया दाने सचे सोचवे मधवे साधवे च लोकस हेवं वढिसति ति देवानंपिये पियेदसि लाजा हेवं आहा यानि हि कानिचि ममिया साधवानि कटानि तं लोके अनूपटीपंने तं च अनुविधियंति तेन वढिता च

१६ वढिसंति च माता - पितिसु सुसुसाया गुलुसु सुसुसाया वयो-महालकानं अनुपटीपतिया बाभन - समनेसु कपन-वलाकेसु आव दास - भटकेसु संपटीपतिया
देवानंपिय पियदसि लाजा हेवं आहा
मुनिसानं चु या इयं धंम - वढि वढिता दुवेहि
येव आकालेहि धंम-नियमेन च निझतिया च

२० तत चु लहु से धंम - नियमे निझतिया व भुये धंम - नियमे चु सो एस ये मे इयं कटे इमानि च इमानि जातानि अवधियानि
अंनानि पि चु बहुकानि धंम - नियमानि यानि मे कटानि निझतिया व चु भुये मुनिसानं धंम-वढि वढिता अविहिंसये भुतानं

२१ अनालंभाये पानानं
से एताये अथाये इयं कटे पुतापपोतिके चंदमसु- लियिके होतु ति तथा च अनुपटीपजंतु ति
हेवं हि अनुपटीपजंतं हिदत - पालते आलधे होति
सतविसति - वसाभिसितेन मे इयं धंम - लिपि लिखापापिता ति एतं देवानंपिये आहा इयं

२२ धंम - लिपि अत अथि सिला - थंभानि वा सिला - फलकानि वा तन कटविय एन एस
चिल - ठितिके सिया

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अनुवाद -

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :

पहले जो राजा हुए है उनकी इच्छा होती थी : कैसे धम्म की वृद्धि के साथ लोग बढ़ें ? पर धम्म-वृद्धि के अनुरूप लोगों की वृद्धि नहीं हुई ।

अब देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा : मुझे ऐसा हुआ :
पहले के राजाओं की इच्छा होती थी : कैसे धम्म की वृद्धि के साथ लोग बढ़ें ? पर धम्म की वृद्धि के अनुरूप लोग नहीं बढ़े । फिर किस उपाय से धम्म की वृद्धि के अनुरूप लोग बढ़ेगे? 
कैसे धम्म की वृद्धि के साथ लोग बढ़ेगे ? कैसे मैं धम्म की वृद्धि के साथ उनका अभ्युदय कर सकता हूँ ?

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
मुझे ऐसा हुआ :
मैं धार्मिक संदेश घोषित कराऊंगा , धार्मिक उपदेश दिलाऊंगा । लोग उन्हें सुनकर उनका पालन करेंगे और अपना अभ्युदय करेंगे । वे धम्म की वृद्धि के अनुरूप बढ़ेंगे ।
इसीलिए मैंने धार्मिक-संदेश घोषित कराये है , विभिन्न धार्मिक उपदेश बतलाये है ,
ताकि मेरे पुरुष भी , जिनको बहुत से लोगों पर नियुक्त किया गया है ,  इसका उपदेश करें और ( इनफा ) विस्तार करें ।
राजुक भी , जिन्हें लाखों लोगों के ऊपर नियुक्त किया गया है - उन्हें भी मैंने आदेश दे दिया है कि -
" धम्मिक जनों को इस - इस प्रकार से प्रेरित करें । "

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
मैंने यह देखकर ही धम्म - स्तभ लगवाये है , धम्म - महामात्र नियुक्त किये है , धम्म लेख लिखवाये हैं ।

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
राजमार्गों पर मैंने बरगद के वृक्ष लगवाये हैं ताकि मनुष्यों और पशुओं को छाया मिले , आम के बगीचे लगवाये हैं,
आधे - आधे कोस पर कुएं खुदवाये हैं , धर्मशालाएं बनवायी हैं ,
यत्र तत्र बहुत से प्याऊ बनवाये हैं,
ताकि मनुष्यों और पशुओं को सुख मिले ।
यह सुख तो थोड़ा ही है , क्योंकि मेरे पहले के राजाओं ने और मैंने भी लोगों के सुख के लिए विविध प्रकार के काम किये थे । पर लोग धम्म के मार्ग पर चलें यह काम मैंने ही किया ।

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
मेरे वे ' धम्म - महामात्र भी बहुत से कामों के लिए नियुक्त हैं । वे राजा के अनुग्रह के कामों में - प्रव्रजितों पर गृहस्थों दोनों के , सभी संप्रदायों के बीच नियुक्त हैं ।
उन्हें संघ के काम के लिए भी मैंने आदेश दिया है ।
इसी तरह मैंने आदेश दिया है कि वे -
ब्राह्मणों और आजीविकों के बीच नियुक्त किये जायें ।
वे निग्रंथों में भी नियुक्त किये जायें ।
मैंने आदेश दिया है कि ये विभिन्न संप्रदायों में नियुक्त किये जायें ।
ये - ये महामात्र ( विशेष कर ) अमुक - अमुक ( संप्रदाय ) के लिए नियुक्त हैं ।
पर मेरे धम्म - महामात्र  इनके और अन्य संप्रदायों के बीच नियुक्त हैं ।

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
ये और अन्य मुख्य अधिकारी मेरे और देवियों के दान - विसर्ग में व्यस्त रहते हैं ।
और मेरे रनिवासों में , यहाँ और प्रान्तों में ,
भी ये विभिन्न प्रकार के सुखदायी कार्य करते
हैं ।
मैंने आदेश दिया है कि -
(रानियों और मेरे अलावा) वे मेरे पुत्रों ,
अन्य देवियों के कुमारों के दान - विसर्ग का काम देखेंगे ताकि धम्म के कार्यों की वृद्धि हो और धम्म का पालन हो ।
धम्म के उत्तम कार्य और उनका पालन यह है जिससे ये बढ़ते है अर्थात् इस तरह -
दया , दान , सत्य ,
शौच , मृदुता और लोगों के कल्याण की वृद्धि होगी ।

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
मैंने जो भी अच्छे काम किये हैं,
लोग उनका अनुसरण करते हैं और
वे उनका अनुकरण करेंगे और
इस तरह उनकी माता - पिता की सेवा ,
गुरुओं की सेवा , वयोवृद्धों की सेवा बढ़ेगी ,
ब्राह्मणों और श्रमणों ,
निर्धन और दुःखी जनों के प्रति ,
यहाँ तक कि दासों और आश्रितों के प्रति उचित व्यवहार बढ़ेगा ।

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
मनुष्यों की धार्मिक उन्नति दो तरह , मात्र दो प्रकार से हुई है :
धम्म - नियमन और आंतरिक चिंतन से ।

पर इन में धम्म - नियमन का महत्त्व कम है ।
पर आंतरिक चिंतन ( से धम्म की ) प्रचुर वृद्धि हो सकती है ।
धम्म - नियमन यह है कि मैंने यह आदेश दिया है कि अमुक - अमुक प्राणियों की हत्या न की जाय ।
इनके अलावा भी बहुत से धम्म के नियम कहे हैं ।
किंतु आंतरिक चितन से लोगों में धम्म की काफी वृद्धि हुई है ।
वे जीवों को कष्ट पहुँचाने और उनके वध से बचते हैं ।

इसीलिए यह किया कि मेरे पुत्रों और पौत्रों के समय तक यह यावत् चंद्र दिवाकर कायम रहें और लोग इस मार्ग का अनुसरण करें ।

क्योंकि यदि लोग इस मार्ग का अनुसरण करेंगे तो इहलोक और परलोक में सुख पायेंगे ।

अभिषेक के छब्बीसवें वां में मैंने यह धम्म लेख लिखवाया ।

इस बारे में -
देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
यह धम्म-लिपि, जहॉ पत्थर के स्तंभ हों या पत्थर के फलक हों, लिखाये जायें ताकि चिरस्थायी हों ।

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टिप्पण :-
सम्राट असोक द्वारा किये गये लगभग सभी जन-हितकार्य इस लेख में उपलब्ध हैं ।
यह इस पंक्ति का अंतिम लेख है ।

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