🌹वृहद-स्तंभ-लेख-6🌹
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मूल-लेख (लिप्यांतरण) -
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१ देवानंपिये पिवदसि लाज हेवं आहा दुवाडस -
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२ वस - अभिसितेन मे धंम - लिपि लिखापिता लोकसा
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३ हित - सुखाये से तं अपहटा तं तं धंम - वढि पापोवा
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४ हेवं लोकसा हित - [ सुखे ] ति पटिवेखामि अथ इयं
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५ नातिसु हेवं पतियासंनेमु हेवं अपकठेसु
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६ किमं कानि सुखं अवहामीति तथ च विदहामि हेमेवा
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७ सव - निकायेसु पटिवेखामि सव - पासंडा पि मे पूजिता
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८ विविधाय पूजाया ए चु इयं अत ना पचूपगमने ☝
९ से मे मोख्य-मते सडुवीसति-वस-अभिसितेन मे
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१० इयं धंम - लिपि लिखापिता
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अनुवाद -
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देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :
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अभिषेक के बारहवे वर्ष में मैंने लोगों के हित और सुख के लिए धम्म-लिपि लिखायी ताकि उनका पालन करते हए वे तदनुसार धम्म की वृद्धि करें ।
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( यह सोचकर कि ) " केवल इसी प्रकार लोगों का हित और सुख हो सकता है "
मैं सिर्फ (अपने) संबंधियों का ही ध्यान नहीं रखता, बल्कि उनका भी जो नजदीक है या दूर, ताकि मैं उन्हें कैसे सुख दे सकता हूँ और मैं तदनुसार ही आदेश देता हूँ ।
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इस प्रकार मैं सभी वर्गों का ध्यान रखता हूँ ।
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मैं विविध प्रकार की पूजा से सभी संप्रदायों का आदर करता हूँ ।
किंतु जो अपना अभिगम ( या चयन ) है उसे मैं सबसे मुख्य मानता हूँ ।
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अभिषेक के छब्बीसवें वर्ष में मैंने इस
धम्म-लिपि को लिखवाया ।
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टिप्पण -
🔹यह राजादेश बारहवे वर्ष में जारी किया,
🔹 लेकिन स्तंभों पर लिखकर सार्वजनिक
करने का आदेश 26वें वर्ष में लिखवाया ।
🔹यह राजादेश सम्राट असोक के राज-धर्म के
दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है ।
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ऐसे राजादेशों के कारण ही सम्राट असोक दुनिया के लिए प्रेरणा-स्रोत (रोल-मॉडल) बना ।
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