*गृहस्थ जीवन के चार सुख*
______________________
एक समय श्रावस्ती नगर के जेतवन विहार में भगवान तथागत बुद्ध विराजमान थे। उस समय नगर के सेठ व धम्म के परम उपासक अनाथपिंडक वहां आए और तथागत बुद्ध से सुखी गृहस्थ के सुख के बारे में जानना चाहा।
भगवान ने कहा-
हर गृहस्थ को पहला सुख सम्पत्ति के स्वामित्व का होता है। एक गृहस्थ के पास जो सम्पत्ति होती है जिसे वह मेहनत, ईमानदारी व न्यायसंगत ढंग से कमाता है। उस व्यक्ति को यह सोचकर खुशी होती है कि उसके पास ईमानदारी से कमाया धन है।
दूसरा सुख सम्पत्ति को भोगने का होता है। जब व्यक्ति मेहनत, ईमानदारी से कमाए धन को घर परिवार में खर्च करता हैं, दान करता है तो उसे यह सोचकर खुशी होती है कि ईमानदारी से कमाए धन से दान पुण्य कर रहा है।
तीसरा सुख कर्ज से मुक्त होने का है। जिस गृहस्थ के ऊपर छोटा बड़ा कोई भी कर्ज नहीं होता है तो उसे यह सोचकर खुशी होती है कि उसे किसी को बकाया चुकाना नहीं है।
चौथा सुख किसी दोष से मुक्त होने का है। एक गृहस्थ मन ,शरीर व वाणी से दोषरहित होता है तो उसे इस बात की प्रसन्नता होती है कि उसने शरीर, मन व वाणी से किसी का बुरा नहीं किया।
तथागत बुद्ध ने कहा, अनाथपिंडक ! ये चार प्रकार के सुख है जिसके लिए एक गृहस्थ सतत कोशिश करता रहे तो उन्हें हासिल करता रहता है।
.... *भवतु सब्ब मंगलं.......*
No comments:
Post a Comment