Monday, 28 October 2019

वृहद-स्तंभ-लेख-5

🌹वृहद-स्तंभ-लेख-5🌹

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मूल-लेख (लिप्यांतरण) -

१ देवानंपिये पियदसि लाज हेवं आहा सडुवीसति - वस

२ अभिसितेन मे इमानि जातानि अवधियानि कटानि सेयथा

३ सुके सालिका अलुने चकवाके हंसे नंदीमुखे गेलाटे

४ जतूका अंबा - कपीलिका दली अनठिक - मछे वेदवेयके

५ गंगा - पुपुटके संकुज - मछे कफट-सयके
पंन-ससे सिमले

६ संडके ओकपिंडे पलसते सेत - कपोते
गाम - कपोते

७ सवे चतुपदे ये पटिभोगं नो एति न च खादियती अजका नानि

८ एलका चा सूकली चा गभिनी व पायमीना व अवधिया पोतके

९ पि च कानि आसंमासिके वधि - कुकुटे नो कटविये तुसे सजीवे

१० नो झापेतविये दावे अनठाये वा विहिसाये वा नो झापेतविये

११ जीवेन जीवे नो पुसितविये तीसु चातुंमासीसु तिसायं पुंनमासियं

१२ तिंनि दिवसानि चावुदसं पंनहसं पटिपदाये  धुवाये चा

१३ अनुपोसथं मछे अवधिये नो पि विकेतविये एतानि येवा दिवसानि

१४ नाग-वनसि केवट-भोगसि यानि अंनानि पि जीव - निकायानि

१५ नो हंतवियानि अठमी - पखाये चावुदसाये पंनडसाये तिसाये

१६ पुनावसुने तीसु चातुंमासीसु सुदिवसाये गोने नो नील-खितविये

१७ अजके एडके सूकले ए वा पि अंने नीलखियति नो नीलखितविये

१८ तिसाये पुनावसुने चातुंमासिये चातुमासि - पखाये अस्वमा गोनसा

१९ लखने नो कटविये याव - सडुवीसति वस - अभिसितेन मे एताये

२० अंतलिकाये पंनवीसति बंधन - मोखानि कटानि

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अनुवाद -

देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा :

अभिषेक के छब्बीसवें वर्ष में मैंने इन जीवों को अवध्य घोषित किया , यथा ' शुक , सारिका , चमर घेंघ (लाल-पक्षी) , चक्रवाक , हंस , नन्दीमुख , गेलाट ( संभवतः सारस ) , चमगादड़ , पिपीलिका, रामानंदी कछुवा ,
झींगा मछली , एदवेयक , गंगापुपुटक ( एक मछली ) , संकुज-मत्स्य , कछुवा , साही मछली , गिलहरी , बारासिंगा हिरन , सांड , ओकपिंड ,  गैंडा , श्वेत - कपोत , ग्राम - कपोत , और अन्य चौपाये जिनका इस्तेमाल नहीं होता और जिन्हें खाया नहीं जाता । 

वे बकरियां , भेड़ें या शूकरियां जो गाभिन हों या दूध दे रही हों या उनके बच्चे जो छह महीने से कम उम्र के हों ।

मुर्गों को बधिया करना मना है । ऐसा तूस जलाने की मनाही है जिसमें, जीव हों ।

व्यर्थ या ( प्राणियों की ) विहिंसा के लिए जंगल जलाने की मनाही है । 

किसी जीव से किसी जीव का पोषण करने की मनाही है ।

तीन चातुर्मासियों
(अर्थात् पूणिमाएं जो चार मास की ऋतुओं के पूर्व ( या बाद ) पड़ती हैं )
और तिष्या ( = पौष मास ) की पूर्णिमा पर तीन दिन अर्थात चौदस , पंचदसी पहले पक्ष की और दूसरे पक्ष की प्रतिपदा के दिन न तो मछलियों का वध किया जाएगा , न अन्य भोज्य के लिए बिक्री , यह ध्रव नियम है ।

इन्हीं दिनों में नागवनों में और केवटभोगों में अन्य जीवों के वध की भी मनाही है ।

प्रति पक्ष की अष्टमी ( तिथि ) चोदसी व अमावस्या , तिष्या , और पुनर्वसु के दिन ,
तीनों ऋतुओं की पूर्णिमा के दिन और सुदिवसों पर बैलों को , न बकरों को , मेढों को , सूअरों को या दूसरे जानवरों को , जिन्हें प्राय : बधिया करते हैं , बधिया करने की मनाही है ।

तिष्या और पुनर्वसु के दिन , ऋतुओं की पूणिमाओं , और ऋतुओं की पूर्णिमामों से सबंध रखने वाले पक्षों में घोड़ों और बलों को दागने की मनाही है ।

यावत् अभिषेक के छब्बीसवें वर्ष में अब तक मैंने पच्चीस बार जेल से रिहाइयां करायी हैं ।

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टिप्पण -

प्राणी-हिन्सा को प्रतिबंधित करता राजादेश ।

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