Friday, 25 October 2019

गिरनार 12

🌹वृहद-सिलालेख-12🌹
               (चौदह चट्टान लेख-12)
                      ( गिरनार )

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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ देवानंपिये पियदसि राजा सव-पासंडानि च  पवजितानि च घरस्तानि च पूजयति दानेन च विवाधाय च पूजाय पूजयति ने

२ न तु तथा दानं व पूजा ] व देवानंपियो मंञते यथा किति सार-वधी अस सव-पासंडानं
सार-वधी तु बहुविधा

३ तस तु इदं मूलं य वचि-गुती किंति
आत्प-पासंड-पूजा व पर-पासंड-गरहा व नो भवे अप्रकरणंहि लहुका व अस

४ तम्हि तम्हि प्रकरणे पूजेतया तु एव
पर-पासंडा तेन तन प्रकरेण एवं करुं आत्प-पासंडं च वढयति पर-पासं-डस च उपकरोति

५ तद्-अंञथा करोतो आत्प-पासडं च छणति पर-पासंडस च पि अपकरोति यो हि कोचि आत्प-पासंड पूजयति पर-पासंडं व गरहति

६ सवं आत्प-पासंड-भतिया किंति आत्प-पासंड दीप-येम इति सो च पुन तथ करातो
आत्प-पासंडं बाधतरं उपहनाति त समवायो  एव साधु

७ किंति अञमंञस धंमं स्रुणारु च सुसुंसेर च एवं हि देवानंपियस इछा किंति सव-पासंडा
बहु-स्रु ता च असु कलाणागमा च असु

८ ये च तत्र तत प्रसंना तेहि वतव्यं देवानंपियो नो तथा दानं व पूजां व मंञते यथा किंति सार - वढी अस सर्व-पासडानं बहका च एताय

९ अथा व्यापता धंम-महामाता च
                      इथीझख-महामाता च
                      वचभूमिका च
                      अञे च निकाया
अयं च एतस फल य आत्प-पासंड-वढी च होति धंमस च दीपना

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अनुवाद -

देवानंपिये पियदसि राजा -
विविध
🔸दान और पूजा🔸
से सभी संप्रदायों के
🔸प्रव्रजितों और
🔹गृहस्थों की पूजा करता है ।
किंतु देवानंपिये पियदसि राजा दान व पूजा को इतना नहीं मानता जितना सभी संप्रदायों में 🔸सार-वृद्धि🔸
को मानता है ।

🔸सार - वृद्धि🔸
कई तरह की होती है ।
किंतु इसका मूल है -
🔸वाक्-संयम अर्थात्
🔸लोग अपने ही संप्रदाय का आदर और
     दूसरों के संप्रदाय की अकारण निंदा न करें।
🔸निंदा खास कारण से ही की जाय । 
🔸दूसरे संप्रदायों की इस या
🔸उस प्रकरण में प्रशंसा ही करनी चाहिए ।

🔹ऐसा करने से ,
🔸मनुष्य अपने संप्रदाय की उन्नति करता है ।
🔸और दूसरे संप्रदायों का उपकार करता है ।
🔹जो इसके विपरीत करता है -
🔸वह अपने संप्रदाय की क्षति करता है और
🔸दूसरे संप्रदायों का अपकार करता है ।

📌क्योंकि जो कोई अपने संप्रदाय की भक्ति में आकर इस विचार से कि -
🔹कैसे मैं अपने संप्रदाय का गौरव बढ़ाऊँ ,
🔸अपने संप्रदाय की प्रशंसा और
🔹दूसरे संप्रदाय की निंदा करता है,
🔸वह ऐसा करके वास्तव में अपने संप्रदाय
     को गहरी क्षति ही पहुंचाता है ।

🌹इसलिए,
🔸समवाय (संयम) ही अच्छा है ,
🌹इस अर्थ में कि -
🔸लोग दूसरे के धम्म को ध्यान से सुनें और
     सुनने को तैयार रहें ।

🎯 वास्तव में, देवानंपिये पियदसि राजा  राजा
     की यही इच्छा है कि -
🔸सभी संप्रदायों के लोग बहुश्रुत हों और 🔸कल्याणकारी ज्ञान से युक्त हों ।
🎯 इसलिए जो लोग अपने संप्रदाय में ही
     अनुरक्त हैं उनसे कहना चाहिए कि -

🔸देवानंपिये दान या पूजा को इतना बड़ा नहीं
     समझते जितना इस बात को कि  -
🔸सभी संप्रदायों में 🔸सार की वृद्धि🔸 हो
      और सभी संप्रदायों का विस्तार हो ।

🎯 इसीलिए,
🔸धम्म-महामात्र ,
🔸स्त्री - अध्यक्ष - महामात्र 
     ( महामात्र जो स्त्रियों के अध्यक्ष थे ),
🔸ब्रजभूमिक (ब्रज=चारागाह , भूमि=दफ्तर),
     और
🔸इसी तरह अन्य निकायों के राजकर्मचारी
     नियुक्त हैं ।

🎯 इसका फल यह है कि

🔸अपने संप्रदाय की उन्नति होती है और

🔸धम्म का गौरव बढता है ।

        - बारहवॉ-वृहद-सिलालेख समाप्त -

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टिप्पण : -
   
इस सिलालेख में -

🌹सभी धर्मों के सार में वृद्धि कैसे हो इसको परिभाषित किया गया है,

🌹विभिन्न सुत्तों कि झलक भी देखी जा सकती है,

🌹विशेष बात यह है कि महिलाओं के लिए 🔸इथीझख-महामाता🔸नियुक्त किये गये ।

🌹चारागाहों की देख-रेख के लिए वचभूमिका
    कि नियुक्ति की गई ।

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