रामहेतगौतमः
खमारोढुं सदैवास्मै पक्षाविष्टौ नु पक्षिणे।
मानवास्तु गुरुत्वेन नमन्त्युदीरयन्ति ये।।
किरण आर्या-
उपर्युपरि व्रजितुं खं पक्षावश्यं च पक्षिणे।
मानवास्तु विनम्रेण यावन्नमन्त्युदीरते।।
डयितुं
ऊंचा उड़ने के लिए पंखों की आवश्यकता तो पक्षी को होती है। मनुष्य तो विनम्रता से जितना झुकते हैं उतना ही ऊपर उठते जाते हैं।।
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