🌹वृहद - स्तंभ - लेख - 1🌹
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मूल-लेख (लिप्यांतरण) -
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१ देवानंपिये पियदसि लाज हेवं आहा सडुवीसति -
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२ वस - अभिसितेन मे इयं धंम - लिपि लिखापिता
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३ हिदत - पालते दुसंपटिपादये अंनत अगाया धंम कामताया
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४ अगाय पलीखाया अगाय सुसूयाया अगेन भयेना
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५ अगेन उसाहेन एस चु खो मम अनुसथिया
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६ धंमापेखा धंम - कामता पा सुवे सुवे वढिता वढीसति चेवा
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७ पुलिसा पि च मे उकसा पा गेवया चा मझिमा चा अनुविधीयंती
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८ संपटिपादयंति चा अलं चपलं समादपयितवे हेमेवा अंत -
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९ महामाता पि एस हि विधि या इयं धंमेन पालना धंगेन विधाने
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१० धंमेन सुखियना धंमेन गोती ति
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अनुवाद -
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देवानंपिये पियदसि लाजा ने इस प्रकार कहा : -
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🔹अभिषेक के छबीसवें वर्ष में मैने यह,
धम्म-लिपि लिखायी -
🔸इहलोक और परलोक दोनों का पाना
कठिन है ,
🔸सिवाय खूब धम्म प्रेम ,
🔸खूब स्व - परीक्षण ,
🔸खूब शुश्रूषा ,
🔸खूब भय (पाप का भय) और
🔸खूब उत्साह के ।
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किन्तु मेरे धम्मिक उपदेश के कारण धम्म - प्रेम और धम्म के प्रति आदर दिनों - दिन बढ़ा है और बढ़ेगा ।
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और मेरे पुरुष भी चाहे वे ऊंची हैसियत के हों या नीची या मध्यम हैसियत के मेरे अनुदेशों के अनुसार काम करते हैं और उनका संपादन कराते हैं -
🌹" वे इस योग्य है कि जो लोग चपल है,
उन्हें उनके कर्तव्य का ध्यान दिलावें ।"
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इसी प्रकार मेरे अंत - महामात्र भी करते हैं । मेरा आदेश भी यह है :
🔺धम्म से पालन ,
🔺धम्म से नियमन,
🔺धम्म से सुख, और
🔺धम्म से रक्षा ।
- प्रथम-स्तंभ-लेख समाप्त -
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टिप्पण -
1.स्तंभ लेख ई०पू० 244 में जारी किए गए थे।
यह तिथि स्तंभ लेख 4, 5, 6, और 7 में
दुहरायी गई है ।
2.अनुवाद के लिए दिल्ली - टोपरा वाले स्तंभ
के लेखों को आधार बनाया गया है ।
क्योंकि इस स्तंभ पर सातों लेख प्राप्त होते
हैं।
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