🌹वृहद-सिलालेख-09🌹
(चौदह चट्टान लेख-09)
( कालसी )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-
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१ देवानंपिये पियदसि लाजा आहा जने उचावुचं मंगलं कलेति आबाधसि अवाहसि विवाहसि पजोपदाने पवाससि एताये अंनाये चा एदिसाये जने बहु मगलं कलेति हेत च अबक - जनियो बहु चा बहुविधं चा खुदा चा निलथिया चा मगलं कलंति
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२ से कटवि चेव खो मंगले अप-फले चु खो एसे इयं चु खो-महा-फले ये धंम - मगले हेता इयं दास-भटकसि सम्यापटिपति गुलुना अपचिति पानानं संयमे समन-बंभनानं दाने एसे अंने चा हेडिसे । धंम-मगले नामा से वतविये पितिना पि पुतेन पि भातिना पि सुवामिकेन पि मित-संथुतेना अव पटिवेसियेना पि
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३ इयं साधु इयं कटविये मगले आव तसा अथसा निव तिया इमं कछामि ति ए हि इतले मगले संसयिक्ये से सिया व तं अठं निवटेया सिया पुना नो हिद लोकिके चेव से इयं पुना
धंम-मगले अकालिक्ये हंचे पि तं अठं नो निटेति हिद अठम् पलत अनंतं पुना पवसति हंचे पुन तं अठं निवतेति हिदा ततो उभयेस
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४ लधे होति हिद चा से अठे पलत चा अनंतं पुना पसवति तेना धंम-मगलेन
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६ अस्ति च पि वुतं
७ साधु दन इति न तु एतारिसं अस्ता दानं व अनगहो व यारिसं धंम-दानं व धमनुगहो व त तु खो मित्रेन व सुहदयेन वा
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८ अतिकेन व सहायन व अोवादितव्यं तम्हि तम्हि पकरणे इदं कचं इदं साघ इति इमिना सक
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९ स्वगं आराधेतु इति कि च इमिना कतव्यतरं यथा स्वगारधि
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अनुवाद -
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देवानंपिये पियदसि लाजा ने ऐसा कहा -
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🔹लोग बहुत से मंगल करते हैं ।
🔸विपत्ति में,
🔸लड़के-लड़कियों के विवाह में,
🔸लड़का या लड़की के जन्म पर,
🔸परदेश जाने के समय -
🔸इन और अन्य अवसरों पर लोग तरह-तरह
के मंगल-आचार करते हैं ।
पर इन अवसरों पर,
माताएं और पत्नियां तरह-तरह के,
क्षुद्र और निरर्थक मंगलाचार करती हैं ।
📌मंगलाचार करना चाहिए ।
🔹किंतु इस प्रकार के मंगलाचार अल्प फलदायी होते हैं ।
🔸पर जो 🔸धम्म का मंगलाचार🔸है
वह महाफल देने वाला है ।
🎯इस मंगलाचार में यह होता है :
🔸दास और सेवकों के प्रति उचित व्यवहार,
🔸गुरूओं का आदर,
🔸प्राणियों की अहिंसा,
🔸समण-बाम्हन संन्यासियों को दान,
और
🔸इसी प्रकार के अन्य कामों को धम्म-मंगल
कहते हैं ।
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इसीलिए, पिता या पुत्र या भाई या स्वामी या मित्र या परिचित या पड़ोसी सभी से कहें, -
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🎯"यह मंगलाचार अच्छा है;
इसे तब तक करना चाहिए,
जब तक कार्य की सिद्धि न हो जाये ।"🎯
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क्योंकि जो दूसरे मंगलाचार हैं वे अनिश्चित फल देने वाले हैं । उनमें उद्देश्य की सिद्धि हो न हो । और इहलोक के लिए ही है ।
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पर धम्म का मंगलाचार सब काल के लिए है । यदि इहलोक में उद्देश्य की सिद्धि न भी हो तो भी परलोक में अनन्त पुण्य मिलता है ।
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किन्तु यदि इहलोक में अभीष्ट की प्राप्ति हो जाय तो धम्म के मंगलाचार से दो लाभ होंगे -
🔸इहलोक में अभीष्ट की सिद्धि, और
🔸परलोक में अनन्त पुण्य की प्राप्ति ।
- नौवा-वृहद-सिलालेख समाप्त -
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टिप्पण -
इस लेख में मंगलाचार को परिभाषित किया गया है ।
सिगालोवाद सुत्त को इस लेख के साथ रखकर देखे तो मंगलाचार विस्तार से उपासकों/उपासिकाओं को समझ में आयेगा ।
हिंसायुक्त और नशा इत्यादि व्यर्थ के आचार मंगलाचार से बाहर है ।
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