Friday, 25 October 2019

कालसी 9

🌹वृहद-सिलालेख-09🌹
               (चौदह चट्टान लेख-09)
                      ( कालसी )

🌹
मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ देवानंपिये पियदसि लाजा आहा जने उचावुचं मंगलं कलेति आबाधसि अवाहसि विवाहसि पजोपदाने पवाससि एताये अंनाये चा एदिसाये जने बहु मगलं कलेति हेत च अबक - जनियो बहु चा बहुविधं चा खुदा चा निलथिया चा मगलं कलंति

२ से कटवि चेव खो मंगले अप-फले चु खो एसे इयं चु खो-महा-फले ये धंम - मगले हेता इयं दास-भटकसि सम्यापटिपति गुलुना अपचिति  पानानं संयमे समन-बंभनानं दाने एसे अंने चा हेडिसे । धंम-मगले नामा से वतविये पितिना पि पुतेन पि भातिना पि सुवामिकेन पि मित-संथुतेना अव पटिवेसियेना पि

३ इयं साधु इयं कटविये मगले आव तसा अथसा निव तिया इमं कछामि ति ए हि इतले मगले संसयिक्ये से सिया व तं अठं निवटेया सिया पुना नो हिद लोकिके चेव से इयं पुना
धंम-मगले अकालिक्ये हंचे पि तं अठं नो निटेति हिद अठम् पलत अनंतं पुना पवसति हंचे पुन तं अठं निवतेति हिदा ततो उभयेस

४ लधे होति हिद चा से अठे पलत चा अनंतं पुना  पसवति तेना धंम-मगलेन

६ अस्ति च पि वुतं
७ साधु दन इति न तु एतारिसं अस्ता दानं व अनगहो व यारिसं धंम-दानं व धमनुगहो व त तु खो मित्रेन व सुहदयेन वा

८ अतिकेन  व सहायन व अोवादितव्यं तम्हि तम्हि पकरणे इदं कचं इदं साघ इति इमिना सक

९ स्वगं आराधेतु इति कि च इमिना कतव्यतरं यथा स्वगारधि

-                  -                  -                 -

🌹
अनुवाद -

देवानंपिये पियदसि लाजा ने ऐसा कहा -

🔹लोग बहुत से मंगल करते हैं ।
🔸विपत्ति में,
🔸लड़के-लड़कियों के विवाह में,
🔸लड़का या लड़की के जन्म पर,
🔸परदेश जाने के समय -
🔸इन और अन्य अवसरों पर लोग तरह-तरह
     के मंगल-आचार करते हैं ।

पर इन अवसरों पर,
माताएं और पत्नियां तरह-तरह के,
क्षुद्र और निरर्थक मंगलाचार करती हैं ।

📌मंगलाचार करना चाहिए ।
🔹किंतु इस प्रकार के मंगलाचार अल्प फलदायी होते हैं ।
🔸पर जो 🔸धम्म का मंगलाचार🔸है
     वह महाफल देने वाला है ।
🎯इस मंगलाचार में यह होता है :
🔸दास और सेवकों के प्रति उचित व्यवहार,
🔸गुरूओं का आदर,
🔸प्राणियों की अहिंसा,
🔸समण-बाम्हन संन्यासियों को दान,
     और
🔸इसी प्रकार के अन्य कामों को धम्म-मंगल
     कहते हैं ।

इसीलिए, पिता या पुत्र या भाई या स्वामी या मित्र या परिचित या पड़ोसी सभी से कहें, -

🎯"यह मंगलाचार अच्छा है;
      इसे तब तक करना चाहिए,
      जब तक कार्य की सिद्धि न हो जाये ।"🎯

क्योंकि जो दूसरे मंगलाचार हैं वे अनिश्चित फल देने वाले हैं । उनमें उद्देश्य की सिद्धि हो न हो । और इहलोक के लिए ही है ।

पर धम्म का मंगलाचार सब काल के लिए है । यदि इहलोक में उद्देश्य की सिद्धि न भी हो तो भी परलोक में अनन्त पुण्य मिलता है ।

किन्तु यदि इहलोक में अभीष्ट की प्राप्ति हो जाय तो धम्म के मंगलाचार से दो लाभ होंगे -
🔸इहलोक में अभीष्ट की सिद्धि, और
🔸परलोक में अनन्त पुण्य की प्राप्ति ।

        - नौवा-वृहद-सिलालेख समाप्त -

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

टिप्पण -

इस लेख में मंगलाचार को परिभाषित किया गया है ।
सिगालोवाद सुत्त को इस लेख के साथ रखकर देखे तो मंगलाचार विस्तार से उपासकों/उपासिकाओं को समझ में आयेगा ।

हिंसायुक्त और नशा इत्यादि व्यर्थ के आचार मंगलाचार से बाहर है ।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

No comments:

Post a Comment