Friday, 25 October 2019

मानसेरा5

🌹वृहद-सिलालेख-05🌹
               (चौदह चट्टान लेख-05)
                      ( मानसेहरा )

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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ देवनंप्रियेन प्रियद्रशि रज एवं अह कलणं दुकरं ये अदिकरे कयणस से दुकरं करोति तं मय बहु कअयणे कटेतं मअ पुत्र च

२ नतरे च पर च तेन ये अपतिये मे अव-कपं तथ अनुवटीशति से सुकट कषति ये चु अत्र देश पि हपेशति से दुकट कषति

३ पपे हि नम सुपदरवे से अतिक्रतं अ [ं]तरं न भुत प्रुव घ्रम-महमत्र नम  से त्रेडश-वषभिसितेन मय ध्रम - महमत्र कट ते सव्र-पषडेष

४ वपुट ध्रमधिथनये च ध्रम-वध्रिय हिद-सुखये च ध्रम-युतस योन-कंबोज-गधरन-रठिक-पितिनिकन ये व पि अञे अपरत भटमयेषु

५ ब्रमणिभ्येषु अनथेषु वुध्रेषु हिद - सुखये ]
ध्रम - युत - अपलिबोधये वियपुट ते बधन-बधस पटिविधनये अपलिबोधये मोक्षये च इयं

६ अनुबध प्रज ति व कट्रभिकर ति व महलके ति व वियप्रट ते हिद बहिरेषु च नगरेषु सव्रेसु
ओरोधनेसु भतन  च स्पसुन च

७ ये व पि अञे ञतिके सव्रत्र वियपट ए इयं
ध्रम - निशितो तो व ध्रमधिथने ति व दन - संयुते ति व सव्रत्र विजितसि मअ ध्रम - युतसि वपुट ते ☝
८ ध्रम - महमत्र एतये अथये अयि ध्रम - दिपि  लिखित चिर - थितिक होतु तथ च मे प्रज अनुवटतु

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अनुवाद :-

देवनंप्रियेन प्रियद्रशि राजा ऐसा कहता है :
अच्छा काम करना कठिन है ।
जो कोई सबसे पहले अच्छा काम पूरा करता है,
वह एक दुष्कर कार्य संपन्न करता है ।
मैंने बहुत से अच्छे काम किए हैं ।

इसलिए यदि मेरे पुत्र, पोते, और उनके बाद जो संताने होंगी वे सब वैसा अनुसरण करेंगी तो वे पुण्य करेंगी ।
किंतु जो इसकी थोड़ी सी भी हानि करेगा वह पाप करेगा ।
पाप का दलन करना चाहिए ।

🎯 पूर्व काल में🔸धम्म-महामात नहीं होते थे।
🔹पर मैंने अपने अभिषेक के तेरह साल बाद 🔹धम्म-महामात नियुक्त किए ।
🔸ये धम्म-महामात सभी संप्रदायों के बीच 💥धम्म की स्थापना व वृद्धि और,
🔸योन (यवन),
🔸कंबोज,
🔸गंधार,
🔸राष्ट्रीक,
🔸पितिनिक, और
🔸अपरांत या पश्चिमी सीमा के लोग भी हैं,
💥उनमें धम्मरत लोगों के हित व सुख के लिए
     नियुक्त किए गए हैं ।

🎯 वे,
🔹सैनिकों और
🔹उनके मालिकों,
🔹ब्रमणिम्येषु (बामण सन्यासियों),
🔹गृहस्थों,
🔹अनाथों और
🔹विकलांग वृद्धों
💥के बीच धम्म में अनुरक्त जनों के,
💥हित व सुख व क्लेश से मुक्ति दिलाने के
     लिए नियुक्त किए गए हैं ।

🎯 वे
🔺वध और बंधन के विरूद्ध प्रतिकार के लिए,
🔺क्लेश से मुक्ति के लिए और
🔺उन लोगों की रिहाई के लिए जिनके बहुत
     से बाल-बच्चे हों, या
🔺जो महाविपत्ति-ग्रस्त हों या
🔺जो अति-वृद्ध हों - नियुक्त हैं ।

🔺वे वहॉ और बाहर के नहरों में,
🔺सभी जगह मेरे भाइयों, बहनों और
🔺दूसरे रिश्तेदारों के सभी रनिवासों में नियुक्त
     हैं।

🔸ये धम्म-महामात मेरे राज्य में सभी जगह 🔸धम्मानुरागी जनों के बीच -
🔸चाहे वे धम्म के प्रति जिज्ञासु हों,
🔸धम्म में प्रतिष्ठित हों, या
🔸अच्छी तरह से दान देते हों - नियुक्त हैं ।

🌹यह 🔸धम्म - लिपि🔸,
🔹इस उद्देश्य से लिखायी गई है कि,
🔸यह चिरस्थायी हो और
🔸मेरी प्रजा इस मार्ग का अनुसरण करे ।

        - पांचवा-वृहद-सिलालेख समाप्त -

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टिप्पण :-

🎯 सम्राट असोक अपने अभिषेक के,
🔸अढ़ाई वर्ष बाद बौद्ध उपासक बना,
🔸चार वर्ष बाद बौद्ध उपासक के रूप में
     उद्योग करना शुरू किया,
🔸आठ वर्ष बाद कलिंग युद्ध विजय किया,
🔸दश वर्ष बाद प्रथम धम्म-यात्रा (बुद्ध-गया)
     की गई,
🔸तेरह वर्ष बाद बौद्ध-धम्म के प्रचार-प्रसार
     हेतु धम्म-महामाताओं (धर्म-महामात्यों) कि
     नियुक्ति की गई ।
🔸अभी तक प्रस्तुत सिलालेखों में यह सिद्ध
      हो चुका है ।

               🌹भवतु सब्ब मंगलं🌹

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