Friday, 25 October 2019

गिरनार 6

🌹वृहद-सिलालेख-06🌹
               (चौदह चट्टान लेख-06)
                       ( गिरनार )
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मूल-लेख (लिप्यांतरण):-

१ देवा . . . . . . . . . . सि ] राजा एवं आह अतिक्रातं अंतर [ं]

२ न भूत-प्रुव .[स् ] . [ व् ] . . . [ ल् ] .
अथ-कंमे व पटिवेदना वा त मया एवं कटं

३ सवे काले भुंजमानस मे ओरोधनम्हि
गभागारम्हि वचम्हि व

४ विनीतम्हि च उयानेसु च सवत्र पटिवेदका स्टिता अथे मे जनस

५ पटिवेदेथ इति सर्वत्र च जनस अथे करोमि य च किंचि मुखतो

६ आञपयामि स्वयं दापकं वा स्रावापकं वा य वा पुन महामात्रेसु

७ आचायिके अरोपितं भवति ताय अथाय विवादो निझती व संतो परिसायं

८ आनंतरं पटिवेदेत वयं मे सर्वत्र सर्वे काले एवं मया आञपितं नास्ति हि मे तोसो

९ उस्टान म्हि अथ - संतीरणाय व कतव्य - मते हि मे स [ व ] लोक - हितं

१० तस च पुन एस मूले उस्टानं च अथसंतीरणा च नास्ति हि कंमतरं

११ सर्व - लोक - हितत्पा य च किंचि पराक्रमामि अहं किंति भूतानं आनंणं गछेयं

१२ इघ च नानि सुखापयामि परत्रा च स्वगं पाराघ यंतु त एताय अथाय

१३ अयं ध [ ] म - लिपी लेखपिता किति चिरं तिस्टेय इति १० तथा च मे पुत्रा पोता च प्रपोत्रा च

१४ अनुवतरं सव - लोक - हिताय दुकरं [ त ] . इदं प्रवत्र अगेन पराक्रमेन

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अनुवाद :-

देवानंप्रियस  प्रियदसिनो राञो ऐसा कहता है :

🎯 अतीत काल में पहले बराबर हर समय
      राज्य का काम नहीं होता था,
🎯 न हर समय प्रतिवेदकों से समाचार ही सुने
      जाते थे ।

💥 इसलिए मैंने ये प्रबंध किये हैं -
💥 प्रतिवेदकों को हिदायत है कि,
🔹हर समय चाहें मैं खाता रहूं, या
🔹रनिवास में रहूं, या
🔹शयन गृह में रहूं, या
🔹पशुशाला में भी रहूं या
🔹धम्मोपदेस-स्थान में रहूं, या
🔹उद्यान में रहूं -
💥 सभी जगह प्रतिवेदक मुझे प्रजा का हाल
      सुनावें ।

💥 मैं प्रजा का काम सभी जगह करता हूँ ।
🔸यदि मैं मुख से आज्ञा दूं कि,
🔸दान दिया जाये, या
🔸घोषणा की जाये, या
🔸फिर महामात को कोई महत्त्व का काम
     सौंपा गया हो, और यदि -
🔹उस काम के सिलसिले में परिषद् में कोई
     विवाद उपस्थित हो तो,
🔹तुरंत ही हर घड़ी मुझे उसकी सूचना दी
     जाये।

🌹मैंने ऐसी ही आज्ञा दे रखी है । क्योंकि,
🔸मैं कितना ही परिश्रम करूं, और
🔸कितना ही राजकार्य करूं,
🔸मुझे संतोष नहीं होता ।

🎯सब लोगों का हित करना ही,
🔸मेरा प्रधान कर्त्तव्य है ।
🔸उसका मूल है,
🔸परिश्रम और
🔸राज-काज पूरा करना ।
🔸सबके हित से बढ़कर कोई काम नहीं है ।
🎯 जो कुछ पराक्रम मैं करता हूँ सो इसीलिए
     कि,
🔸प्राणियों का जो ॠण मुझ पर है उससे मैं
     उॠण  हो सकूं और
🔸उन्हें इस लोक में सुखी करूं और
🔸परलोक में उन्हें स्वर्ग दिलाऊं ।

🎯 यह 🌹धम्म-लिपि🌹 इसलिए लिखायी
      गयी कि,
🔸यह चिरस्थायी हो और
🔸मेरे पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र सबके भले के लिए
     इसका पालन करें ।

🔸पर बहुत (ज्यादा) और निरंतर पराक्रम के
     बिना यह कठिन है ।

        - छठा-वृहद-सिलालेख समाप्त -

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टिप्पण :-
इस राजकीय आदेश में सम्राट अशोक ने अपनी राज-नीति को धम्म -लिपि के साथ सार्वजनिक किया है ।

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